
“गृह लक्ष्मी……
मोहन रोज की भांति सुबह की सैर करने के लिए पार्क में पहुंचा था उसके कुछ दोस्त मोबाइल फोन लिए साथ बैठकर हंस रहे थे मोहन ने सबसे यूं सुबह सुबह खिलखिलाकर हंसने की वजह पूछी तो उन्होंने मोबाइल फोन पर उनके ही एक दोस्त रमेश का व्हाट्सएप पर लगाया गया स्टेटस दिखाया …………..
जिसपर रमेश ने अपनी पिक्चर लगाकर लिखा हुआ था मैं झुकेगा नहीं …………….
अरे भाई ये तो एक फिल्म का फेमस डायलॉग है इसमें हंसने वाली कौन सी बात है मोहन ने फिर आप सभी हैरानी जताते हुए पूछा तो बैठे हुए दोस्तों में से एक दोस्त बोला ……………….
मोहन भाई रमेश का शालिनी भाभी से झगड़ा हो गया है और भाभी रुठकर मायके चली गई और कहकर गई है जबतक खुद माफी मांगकर लेने नहीं आओगे तबतक वापस नहीं आऊंगी बस रमेश भाई ने भी साफ साफ कह दिया मैं झुककर नहीं आऊंगा अब रमेश भाई ने स्टेटस लगाया है मैं झुकेगा नहीं …………
कहकर फिर से सब हंसने लगे ये सब सुनकर मोहन को बहुत गुस्सा आया और वो उन सभी पर गुस्से होते हुए बोला…………..
तुम दोस्त हो या दुश्मन ………….
किसी का घर टूट रहा है बजाय उसे टूटने से बचाने के तुम ये सब देखकर हंस रहे हो शर्म आनी चाहिए तुम्हें ………
कहकर मोहन वहां से निकल गया और तेजी से रमेश के घर पहुंचा …………….
दरवाजा रमेश ने ही खोला …………..
ये सब क्या है रमेश ………….
क्या………….
क्या हुआ मोहन भाई
तुम्हें पता है कि मैं क्या बोल रहा हूं भाभी घर छोड़कर चली गई और तू स्टेटस लगा रहा है में झुकेगा नहीं ये सब क्या है
मोहन भाई तू नहीं समझेगा…………….
अच्छा है तूने शादी नहीं की वरना साली जिंदगी झन्नुम बन जाती है …………
चुप कर बहुत बोलने लगा है बीच में उसके पापा बोले जोकि बीमारी के चलते बिस्तर पर थे
अंकलजी नमस्ते ……………
आखिर क्या बात है आप ही बताइए
बेटा …एक हो तो बताऊं मुझे भी बाद में पता चली की इसने…………….
अरे सुबह सबसे पहले उठती थी बहु और रात को सबसे आखिर में होती है मगर इसे उसकी अहमियत समझ आएं जब ना ……………………
इसे तो बस अपनी ही मेहनत दिखती है घर में औरतें क्या करती है इसे क्या पता दिनभर इतनी गर्मी में रसोईघर में खड़ी रोटी बनाओं सब्जी बनाओ में बूढ़ा हूं बिस्तर पर हूं मेरी दवाओं का खाने का सब चीजों का ध्यान रखती थी बहु नहीं बेटी की तरह मगर ये हर बात पर उसे टोकते रहता था और वो चुपचाप ……………….
मैंने इसे कितनी बार समझाया कि बेटा ये सब ठीक नहीं है मगर …………..
वो कुछ कहासुनी तो कर लेती थी मगर घर छोड़कर नहीं गई पर परसों ना जाने कयुं इसने उसके मायके वालों को कोसना शुरू कर दिया जब उसने कहा कि उसके मायके वालों को बीच में कयुं लेकर आते हो इसने गुस्से में उसपर हाथ उठा दिया आखिर कब तक कोई बर्दाश्त करेगा चली गई वो ……………
अब बना रोटी सब्जी कर झाड़ू पोंछा ……….
औरत के बिना घर घर नहीं भूत बंगला बन जाता है समझता कयुं नहीं अभी गुस्सा है मगर जब ये उतरेगा ना तब एहसास होगा कि …………….
मुझसे पूछ तेरी मां के जाने के बाद ये जिंदगी किसी बेजान शरीर जैसे रह गई…………….
पता नहीं तेरी मां की पूजा पाठ का या मेरे कुछ पुण्य का भगवान ने मुझे फल दिया की इतनी अच्छी बहू मेरे घर भेज दी जो एक बिस्तर पर पड़े हुए बोझ को भी नमी जिंदगी देने की कोशिश में लगी हुई रहती है और एक में नालायक उसे ………….
अभी कहता हूं कि मान जा और उसे मनाकर घर ले आ वरना ये स्वर्ग जैसा घर ……….
घर नहीं बस चारदीवारी बनकर रह जाएगा कहते हुए बुजुर्ग अंकलजी रोने लगे तब मैंने रमेश से कहा…
मेरे दोस्त……………
ये अकड़ किस बात की और एक पत्नी जो तेरी जीवनसाथी है तेरे सुख दुख की साथी उसपर हाथ उठाया तुमने…………..
मोहन भाई वो गुस्से में ………….
यार गलती से हो गया अब बाहर कुछ टेंशन थी और मैं…………..
यार तुझे पता है ना जहां दो बर्तन होंगे वहां खटपट तो होगी ही ना बस …………..
और वो गुस्से में …………..
खुद गई है खुद आ जाएगी पापा वो ………
रमेश…………..
अकड़ना मुर्दों की शान होती है झुकता वहीं है जिनमें जान होती है
और बात जब रिश्तों की हो तो …………..
मेरे दोस्त जिंदगी में ये हुनर भी आजमाना चाहिए
जंग हो अगर अपनों से तो हार जाना चाहिए
रमेश गलती तुने की है मेरे दोस्त तो माफी भी तुझे ही मांगनी होगी चल अब ये अकड़ बाजी छोड़ और भाभी को फोन कर और कह तू आ रहा है उन्हें लेने और हां हमेशा याद रखना मेरे भाई ये बहु बेटियां घर की लक्ष्मी होती है
इनका हमेशा सम्मान करना कभी भूले से भी इनका अपमान मत करना वरना ईश्वर नाराज हो जाएंगे
मोहन भाई मुझे माफ करना यार ……………..
माफी मुझसे नहीं भाभी से जाकर मांगना और पहले फोन पर सौरी कह चल कहकर मोहन ने उसे फोन पकड़ाते हुए कहा …………………
चंद मिनटों में दोनों की हुई लड़ाई प्यार का रुप ले चुकी थी और रमेश तेजी से कपड़े बदलकर अपनी गृहलक्षमी को वापस लेने के लिए चल दिया था………
एक सुंदर रचना…………….
#दीप…🙏🏻🙏🏻🙏🏻