
मेरा परिवार
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अंजलि की कोविड रिपोर्ट हाथों में लेकर मैं बदहवास-सा सोफ़े पर बैठ गया! क्या करूँ?
आठ-दस दिन के लिए अंजलि को आईसोलेट करना होगा।
उसकी दवाइयों का इंतज़ाम करना होगा व स्वास्थ्य पर भी नज़र रखनी होगी।
बात बिगड़नी नहीं चाहिए।
“अंजलि की रिपोर्ट आ गई?”
चौंक गया मैं!
भैया खड़े थे ऊपर,
पहली सीढ़ी पर।
मुझ से आठ वर्ष बड़े हैं भैया।
भैया-भाभी ने मुझे माता-पिता का-सा प्यार दिया है पर अंजलि के आने के बाद घर का माहौल बदल गया था।
शायद भाभी को अपना राजपाट छिनने का डर लगा या फिर इकलौती संतान होने के वजह से अंजलि संयुक्त परिवार में तालमेल नहीं बिठा पाई, जो भी हो,
छत्तीस का आँकड़ा बन गया था दोनों में।
रोज़-रोज़ ही वातावरण बोझिल हो जाता।
इसलिए जैसे ही ऊपर वाली मंज़िल के किराएदार ने घर खाली किया,
भैया ऊपर शिफ्ट हो गए।
जो सीढ़ी घर के अंदर से ऊपर को जाती थी उसे बंद ही रहने दिया गया था। कभी कभार ही खुलता था।
“जी भैया, पॉज़िटिव है।”
भैया जल्दी से दो कदम पीछे हट गए, मानो उन्हें वहाँ,
उतनी दूर, खड़े-खड़े ही इंफेक्शन हो जाएगा!
“अच्छा! तुम अपना व तन्मय का ख्याल रखना।”
कहकर भैया अंदर चले गए।
मैं भी अपने काम में व्यस्त हो गया।
दवाई वगैरह का इंतज़ाम करके मैंने अपने बॉस को स्थिति से अवगत कराया तथा होम क्वारंटाइन की बात बताई।
उन्होंने घर से ही काम करने की इजाज़त दे दी।
तभी मोबाइल घनघना उठा।
अंजलि थी।
“विनय,
चाय पिला दो।
और दो ब्रेड भी सेंक देना।
बुख़ार की दवाई खानी है।
तन्मय को भी कुछ खिला देना।”
अरे! ये सब इंतज़ाम भी तो करना होगा!
मैं तो भूल ही गया था!
घड़ी में एक बज रहा था।
कैसे होगा सब?
घर-बाहर संभालने के साथ-साथ दस घँटे की नौकरी और साथ में तीन वर्षीय तन्मय की देखभाल….
इतने काम एक साथ करने का तो तजुर्बा ही नहीं था!
हाथ-पैर ठंडे पड़ने लगे थे!
“विनय भइया!”
नीचे वाली सीढ़ी पर भाभी खड़ी थीं, हाथ में ट्रे लेकर।
“जी भाभी।”
मैं कुछ चकित-सा उन्हें देख रहा था।
“ये लो भइया, मैंने आपलोगों का लंच बना दिया है।
लंच और डिनर मैं रोज़ बना दिया करूँगी,
जब तक अंजलि ठीक नहीं हो जाती।
चाय-नाश्ता आप देख लेना।
अंजलि को ताजे फल व बादाम वगैरह खिलाते रहना।
हाँ,
ये बर्तन खाली हो जाएँ तो यहाँ इस मेज पर रख देना। मैं उठा लूँगी।”
मेरे चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित आभार देख भाभी बोल पड़ीं,
“ज़रूरत पड़ने पर परिवार ही तो काम आता है भइया
और मेरा परिवार तो आपलोग ही हो!”……….