15 डॉक्टर हार मान गए – लेकिन एक झाड़ूवाली के बेटे ने अरबपति को मौत के मुँह से खींच लाया!
अस्पताल की सबसे ऊपरी मंजिल पर अफरातफरी मची हुई थी।
पूरे मुंबई के नामचीन डॉक्टर एक ही कमरे के बाहर खड़े थे। अरबपति उद्योगपति विक्रम मल्होत्रा की हालत बेहद नाजुक थी।
50 साल की उम्र में सफलता की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते वह आज मौत के दरवाजे पर था।
मशीनों की बीपिंग आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी और डॉक्टरों के चेहरे पर हार की झलक साफ दिख रही थी।
“डॉ. मेहरा, हमने हर इलाज आजमा लिया।
पर कुछ असर नहीं हो रहा,” सीनियर सर्जन डॉ. कपूर ने कहा, माथे से पसीना पोंछते हुए।
“हार मानने का सवाल ही नहीं,” डॉ. मेहरा ने तमतमाए स्वर में कहा।
“वह इस देश का सबसे बड़ा उद्योगपति है।
अगर इसे हम नहीं बचा सके तो कौन बचाएगा?”
लेकिन चाहे जितने इंजेक्शन, दवाइयां या मशीनें लगाई गईं, विक्रम की सांसें हर मिनट धीमी पड़ती जा रही थीं।
भाग 2: आर्यन की चिंता
बाहर वेटिंग एरिया में उनका बेटा आर्यन सिर पकड़ कर बैठा था। आंखों में डर और गुस्सा दोनों थे।
“15 डॉक्टर हैं यहां फिर भी कुछ नहीं कर पा रहे।
क्या यह सब बस नाम के डॉक्टर हैं?”
वह चिल्लाया।
वहीं दूसरी तरफ फर्श साफ कर रही थी लक्ष्मी, अस्पताल की सफाई कर्मी।
उसकी झाड़ू धीरे-धीरे चल रही थी, मगर उसकी नजर हर चीज पर थी।
उसके साथ उसका 14 साल का बेटा आरव भी आया था, जो स्कूल की छुट्टी के कारण मां के साथ काम पर आया था।
आरव की आंखों में एक अजीब सी चमक थी।
बचपन से ही उसे मशीनों और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम का शौक था।
घर में पड़े टूटे रेडियो, पुराना मोबाइल सब खोलकर देखता और फिर जोड़ देता।
जब आरव ने आईसीयू के बाहर डॉक्टरों की बेचैनी देखी, तो उसने मां से धीरे से कहा, “मां, यह मशीन कुछ गड़बड़ कर रही है।”
भाग 3: लक्ष्मी की चिंता
लक्ष्मी ने झट से उसे डांटा।
“चुप, यहां डॉक्टर हैं।
तू क्या जाने?”
“नहीं मां, देखो ना, वो हार्ट मॉनिटर का कनेक्शन वो ब्लिंक कर रहा है।
इसका मतलब है कि डाटा सेंसर सही सिग्नल नहीं भेज रहा,” आरव बोला, उसकी नजरें आईसीयू के अंदर लगी वायरिंग पर थी।
उधर डॉ. मेहरा गुस्से में बोल रहे थे, “नया मशीन लाओ, अभी के अभी। हमें डाटा में गड़बड़ी नहीं चाहिए।”
लेकिन नया मशीन लाने में वक्त लगने वाला था।
आरव धीरे से आगे बढ़ा और कांच के दरवाजे से झांका।
उसने देखा कि एक सेंसर का वायर गलत स्लॉट में लगा हुआ था।
यह तकनीकी गलती थी जो इंसानी आंख से नहीं दिखती थी।
पर आरव ने पकड़ ली।
भाग 4: आरव का साहस
लक्ष्मी ने उसका हाथ खींच लिया।
“पागल मत बन, अंदर जाने की सोचना भी मत।”
पर आरव की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी।
उसने देखा कि डॉक्टर आपस में बहस कर रहे थे।
कोई किसी की नहीं सुन रहा और विक्रम मल्होत्रा की सांसें धीरे-धीरे और कमजोर हो रही थीं।
उसे अंदर से आवाज आई, “अगर अभी कुछ नहीं किया तो सब खत्म।”
आरव ने अपने छोटे बैग से एक पेन निकाला और मां से बोला, “मां, मैं बस 1 मिनट के लिए देख लूं।
मुझे लगता है मैं कुछ कर सकता हूं।”
लक्ष्मी डर के मारे कांप रही थी।
“नहीं बेटा, तू समझता नहीं है।
यह लोग तुझे अंदर जाने नहीं देंगे।”
“मां,” उसने दृढ़ता से कहा, “अगर वह मर गया तो सब मुझे याद रखेंगे।
लेकिन अगर बच गया तो शायद तू मुझ पर गर्व करेगी।”
लक्ष्मी ने उसकी आंखों में देखा।
वो मासूमियत नहीं, आत्मविश्वास था और शायद एक मां का दिल जान गया कि उसका बेटा कुछ असाधारण करने वाला है।
भाग 5: समय का दबाव
उधर आईसीयू में मॉनिटर की आवाज धीरे-धीरे धीमी पड़ने लगी।
डॉक्टरों ने सिर झुका लिया। बाहर सब चुप थे।
लेकिन उसी चुप्पी में आरव की आंखों में एक चमक जाग उठी।
वह एक ऐसा पल था जब एक 14 साल का गरीब लड़का, जो फर्श साफ करने वाली का बेटा था, समझ चुका था कि अब वह करेगा वह काम जो 15 डॉक्टर नहीं कर पाए।
क्या वह रुक पाएगा?
क्या अब भाग्य उसी के हाथों में था?
अगले ही पल आईसीयू के बाहर एक अफरातफरी मच गई।
मशीन की बीपिंग अब लगातार हो रही थी और डॉक्टर हड़बड़ी में इधर-उधर भाग रहे थे।
नर्सें इंजेक्शन और ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर दौड़ रही थीं।
“हमें पल्स वापस लानी होगी,” टॉप मेहरा चिल्लाए।
विक्रम मल्होत्रा की छाती पर सीपीआर चल रहा था।
पर कोई असर नहीं था।
सबकी नजरें मॉनिटर पर थी जो लगातार लाल लाइट दिखा रहा था। “नो रिस्पांस।”
बाहर खड़ा आर्यन अपनी आंखों से आंसू रोक नहीं पा रहा था।
उसने अपनी जेब से फोन निकाल कर रोते हुए कहा, “पापा, बस एक बार आंखें खोलो।”
भाग 6: आरव की कोशिश
वहीं पीछे खड़ी लक्ष्मी अपने बेटे आरव को कसकर पकड़े हुई थी।
उसका दिल तेजी से धड़क रहा था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि करें तो क्या करें।
लेकिन आरव का ध्यान अब सिर्फ एक चीज पर था।
आईसीयू के कोने में रखी उस मशीन पर जिसके वायर थोड़े ढीले थे और कुछ पल पहले उसने जिनमें गड़बड़ी देखी थी।
वो धीरे से मां का हाथ छुड़ाकर आगे बढ़ा।
नर्सें इतनी व्यस्त थीं कि किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।
वह कांच के दरवाजे के पास पहुंचा और धीरे से दरवाजा खोला।
“ए रुको!” एक गार्ड ने चिल्लाया।
पर तब तक आरव अंदर जा चुका था।
सारे डॉक्टर पल भर को ठिठक गए।
“अरे यह कौन बच्चा है?
इसे बाहर निकालो अभी।”
लेकिन आरव ने किसी की बात नहीं सुनी।
उसकी नजर सीधी उस मशीन पर थी।
वह झुककर मशीन के नीचे गया और वायर को ध्यान से देखने लगा। उसने एक कनेक्शन निकाला और पेन की नोक से उस ढीले पिन को ठीक किया।
फिर वायर को दोबारा सही स्लॉट में लगाया। …
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