
* जब सास ससुर तुम्हारे नहीं तो उनकी प्रॉपर्टी भी तुम्हारी नहीं *
आज घर में अचानक पंचायत बैठी हुई थी।
हां, इसे पंचायत ही कहेंगे क्योंकि काफी समय से इस घर ने खामोशी का आवरण ओढ़ा हुआ था। जब तक इस घर की मालकिन दामिनी जी जिंदा थी, तब तक थोड़ी बहुत हलचल तो नजर आती थी।
लेकिन दो महीने पहले उनके गुजर जाने के बाद से इस घर में खामोशी ही खामोशी थी। घर में अब सिर्फ सत्तर साल के बुजुर्ग जनक जी ही बचे हुए थे। पर अब अपनी पत्नी के जाने के बाद वो भी काफी कमजोर हो चुके थे। बीमार रहने लगे थे। अब उन्हें भी देखभाल की जरूरत थी। इतना काम खुद से होता नहीं था।
बस इसीलिए उन्होंने निर्णय ले लिया कि मकान को ट्रस्ट के नाम कर दे। बस जैसे ही ये खबर उनके बेटे बहु को मिली, आज सब लोग यहां जमा हो गए। बहू के माता-पिता जमुना जी और गिरीश जी,और उसका भाई अजीत, खुद उनके बेटे बहु मनीष और मानसी, जनक जी के दोस्त और खुद जनक जी वहां उस कमरे में मौजूद थे।
कितने लोग आज घर में मौजूद थे। सब कुछ ना कुछ बोले जा रहे थे। पर जनक जी बिल्कुल शांति पूर्वक बैठे हुए थे। सब अपनी अपनी बातें बोल रहे थे और वो चुपचाप सुन रहे थे।
” अरे समधी जी क्या सोचकर आपने ये निर्णय लिया है। आप ये मकान ट्रस्ट के नाम कर रहे हो? अपने बच्चों के भविष्य के बारे में भी नहीं सोचा आपने ”
अचानक बहू की मां जमुना जी बोली।
” हां समधी जी, सोचने की बात है। आपके बेटे बहु है। आपका पूरा परिवार अभी मौजूद है। और आप मकान ट्रस्ट के नाम कर रहे हो। माता पिता की प्रॉपर्टी पर तो बच्चों का अधिकार होता है ”
बहू के पिता गिरीश जी भी बोले।
” पापा हम आखिर आपके बच्चे हैं। आप हमें यूं अलग-थलग नहीं कर सकते हो। आपके बाद ये प्रॉपर्टी हमारी ही है ”
मनीष ने कहा।
” पापा जी आप सोच कर तो देखिए। हम किराए के मकान में रहते हैं, जबकि हमारा अपना मकान मौजूद है। कितना बुरा लगता होगा हमें? हम तो सोच कर बैठे थे कि ये सब हमारा ही है। पर आपने तो कुछ और ही निर्णय ले लिया। पर आप ये मत सोचना कि हम आपको ये सब करने देंगे ”
बहु मानसी बोली।
” हम तो आपके इस निर्णय को मानने से इनकार करते हैं। एक बार बाऊजी फिर से सोच कर देखिए ”
मानसी के भाई अजीत ने भी कहा।
जितने मुंह थे, उतनी ही बातें हो रही थी। पर जनक जी तो सिर्फ अपनी पत्नी की तस्वीर को एक टक निहार रहे थे। कितनी मेहनत और प्यार से संजोया था उन्होंने इस घर को। दोनों पति-पत्नी ने मिलकर एक-एक पैसा बचाकर इस मकान को खड़ा किया था।
कोई आलीशान मकान नहीं था। लेकिन इतना तो था कि जो उनके परिवार के लिए काफी था। घर में ले देकर वो तीन लोग ही तो थे। जनक जी, दामिनी जी और उनका बेटा मनीष। मनीष पढ़ लिखकर नौकरी पर लग गया तो देखभाल कर मानसी से उसकी शादी करवा दी।
लेकिन मानसी ने कभी इस घर को अपना नहीं माना। वह अपने में ही रहना पसंद करती थी। वो और उसका पति। इसके अलावा उसे कभी किसी से कोई लेना-देना ही नहीं था। उसे घर के काम करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
कई बार तो वो इस बात को लेकर दामिनी जी से उलझ भी पड़ती,
” अगर नौकरानी ही चाहिए थी तो बहू क्यों लेकर आए थे। मुझसे नहीं होते ये घर के काम”
” बहु अपनी ही घर के काम करने से कोई नौकरानी नहीं बन जाता है। और फिर मैं भी तो तुम्हारी कितनी मदद करा देती हूं। आखिर घर तुम्हारा है तो उसे संभालना भी तुम्हें ही है”
दामिनी जी उसे समझाने की कोशिश करती।
” तो क्या हो गया मम्मी जी? क्या मेरी शादी से पहले आप घर का काम नहीं करती थी? फिर अचानक बहू के आते ही क्या हो गया? मुझे समझ में नहीं आता कि बहू के आते ही सास अचानक बुढ़ी कैसे हो जाती है? बस ससुराल वालो की इसी सोच के कारण आजकल की लड़कियां शादी नहीं करना चाहती”
मानसी दो टुक जवाब देकर वहां से चली जाती।
दामिनी जी इस बारे में मनीष से बात करती तो मनीष का भी यही जवाब होता,
” मम्मी मेरी शादी से पहले भी तो काम करती ही थी ना आप। अब क्या हो गया? बस आप जैसी सास बहूओं को बेटी नहीं मानती हैं। इसी कारण ये सारी दिक्कत होती है ”
उसका जवाब सुनकर दामिनी जी चुप हो जाती।
उन लोगों की शादी के दो महीने बाद घर पर दामिनी जी के भाई भाभी आने वाले थे। जो कि सुबह आठ बजे तक घर पर पहुंच जाते। इसलिए दामिनी जी ने मानसी से रात को ही कह दिया था,
” बहु सुबह जल्दी उठ जाना। घर पर मेहमान आने वाले हैं। मेरी थोड़ी मदद करा देना ”
ये सुनकर मानसी में कोई जवाब नहीं दिया। पर वो सुबह जल्दी उठी भी नहीं। सात बजते-बजते दामिनी जी ने उसके कमरे का दरवाजा खटखटा दिया,
” बहु एक घंटे बाद मेहमान आ जाएंगे। पहले घर की सफाई करवा दो ”
ये सुनकर मानसी चिढ़ गई और उसने हंगामा कर दिया,
” मम्मी जी ये क्या बदतमीजी है? भला कोई ऐसे बेटे बहू के कमरे का दरवाजा खटखटाता है क्या? अगर घर की साफ सफाई नहीं हुई तो आपके मेहमान नहीं आएंगे क्या? ”
” बहु माना कि बेटे बहू के कमरे का दरवाजा नहीं खटखटाना चाहिए। लेकिन आज तुम्हारी मम्मी जी को तुम्हारी जरूरत है तो बात को समझो। आज उसकी मदद करवा दो। आखिर यह घर तुम्हारा भी है। मेहमान आने वाले हैं, तो घर की सफाई तो हो ही जानी चाहिए ”
जनक जी ने कहा।
” ये आपका मकान है, आप सफाई करो। इसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं है। बहु नहीं हुई, नौकरानी हो गई। उसके बगैर तो घर का काम ही नहीं चलता ”
मानसी ने बड़बड़ाना शुरू किया और थोड़ी देर बाद अपना सामान पैक कर अपने मायके रवाना हो गई।
ये बात दामिनी जो और जनक जी को बहुत बुरी लगी। पर उससे भी ज्यादा बुरा इस बात का लगा कि मानसी के माता-पिता ने भी उसी का सपोर्ट किया। यहां तक कि उनके बेटे ने भी अपनी पत्नी का ही साथ दिया। और मानसी को लेकर किराए के कमरे में शिफ्ट हो गया।
जब उन्होंने मनीष को समझाना चाहा तो मनीष ने भी जवाब दिया,
” पापा आप लोग बहू को बहू समझते कहां हो? अगर मम्मी ने शुरू से ही उसे बेटी की तरह रखा होता तो ये नौबत नहीं आती। बहूओं को तो सिर्फ काम करने वाली मशीन समझा जाता है ”
” अच्छा बेटा! तुम्हारे उस किराए के घर में तुमने काम करने वाली लगा रखी है क्या?”
जनक जी ने कहा।
सुनकर मनीष चुप हो गया। उसे चुप देखकर दामिनी जी ने कहा,
” सही बात है बेटा। वहां तो बिना नौकरानी के भी वो सारा काम कर लेगी। लेकिन यहां ससुराल में अगर सास मदद भी करा रही होगी ना तो तब भी खुद को नौकरानी वाली फीलिंग ही आएगी। कोई बात नहीं बेटा। तुम तुम्हारे किराए के घर में ही रहो ”
कहकर दामिनी जी और जनक जी वापस घर आ गए थे। लेकिन अभी दो महीने पहले जब दामिनी जी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई तो जनक जी खुद मनीष और मानसी को लेने उनके घर गए थे।
” बेटा तुम्हारी मम्मी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है। कब वो इस दुनिया से कूच कर जाए, कुछ कह नहीं सकते। अब तो तुम उस घर में आ जाओ और अपने घर को संभालो ”
लेकिन उसके बावजूद भी मनीष और मानसी घर नहीं आए। इस बात को चार दिन ही बीते होंगे कि दामिनी जी इस दुनिया से ही कुच कर गई। अब तो दुनिया को दिखाने के लिए उन लोगों को आना ही था। बस तब से वो लोग यहां आते जाते रहते थे।
लेकिन अब जनक जी को अपने बेटे बहू पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। इसलिए उन्होंने ये मकान ट्रस्ट के नाम करने की ठान ली। ताकि ट्रस्ट जब तक वो जिंदा है, उनकी जिम्मेदारी उठा सके। और उसके बाद उनके जैसे बुजुर्गों की मदद कर सके।
लेकिन ये बात जैसे ही मनीष और मानसी को पता चली उन्होंने सबको यहां बुला लिया। क्योंकि ये उनकी उम्मीद के विपरीत था। आखिर वो तो उम्मीद करके बैठे थे कि अब ये मकान उनका होगा। अभी सब लोग बैठ कर बात कर ही रहे थे कि मानसी ने कहा,
” देखिए पापा जी, ये मकान आप किसी ट्रस्ट के नाम नहीं करोगे। आपने सोच भी कैसे लिया कि हम चुप रह जाएंगे। भूलिए मत, आपके बुढ़ापे का सहारा हम ही है ”
” अरे वाह बहू! आज तुम इस मकान के लिए मुझसे लड़ने के लिए यहां तक आ गई। लेकिन किसी समय में इस मकान का काम करने में भी तुम्हें ऐसा लगता था कि हम तुम्हें नौकरानी बना कर लाए हैं। तब तो तुमने कभी अपनी सास को चैन से भी नहीं रहने दिया ”
अचानक जनक जी बोले, जो काफी देर से शांत बैठे हुए थे।
उनके बोलते ही उस कमरे में बिल्कुल खामोशी सी छा गई। इतनी खामोशी कि यकीन नहीं हो रहा था कि उस कमरे में इस समय इतने लोग बैठे हुए थे। पर जनक जी ने बोलना जारी रखा।
” तुम्हारा होना नहीं होने के बराबर ही है। तुम लोग मेरे बुढ़ापे का सहारा क्या बनोगे। जो अपनी मरती हुई मां के लिए तक नहीं आ पाये। बहु मकान मेरा है। और मैंने निर्णय ले लिया है। अब ये मकान ट्रस्ट के नाम ही होगा। जब तक मैं जिंदा हूं, मेरी सेवा ट्रस्ट के लोग कर लेंगे। क्योंकि तुम लोगों से मुझे कोई उम्मीद नहीं है। कल को तुम कह दोगी कि हम तुम्हें केयरटेकर बनाकर लेकर लाए हैं।
और रही बात मकान तुम्हारे नाम होने की। तो जब सास ससुर की जिम्मेदारी तुम्हारी नहीं तो उनकी प्रॉपर्टी भी तुम्हारी नहीं। तुम्हारा हक सिर्फ तुम्हारे पति पर है। तो जब तुम्हारा पति कोई प्रॉपर्टी बनाएं, उस पर अपना हक जताना। समझी तुम ”
जनक जी ने ये बात कह कर पूरी पंचायत को वही खत्म कर दिया। आखिरकार मानसी के माता-पिता ज्यादा कुछ कह नहीं पाए। क्योंकि कानूनन जनक जी ही प्रॉपर्टी के अधिकारी थे। मनीष और मानसी को वापस किराए के घर में ही जाना पड़ा। जबकि जनक जी की प्रॉपर्टी ट्रस्ट के नाम हो गई।
मौलिक व स्वरचित
✍️ लक्ष्मी कुमावत
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