
“अपराध नहीं, आत्ममूल्यांकन की जरूरत है: भारतीयों का विदेशों में गिरता नैतिक मानक”
कुछ समय पहले अमेरिका में एक भारतीय महिला को चोरी करते हुए पकड़ा गया।
महिला शिक्षित थी, संपन्न लग रही थी, और उसका व्यवहार चौंकाने वाला था — न केवल चोरी, बल्कि पकड़े जाने के बाद भी उसकी प्रतिक्रिया: “मैंने सामान लौटा दिया, अब मुझे पुलिस स्टेशन क्यों ले जाया जा रहा है?”
यह एक अकेली घटना नहीं है।
ठीक एक साल पहले आयरलैंड के डबलिन में तीन भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स को IKEA स्टोर से चोरी करने के आरोप में पकड़ा गया।
उन्होंने लाखों का सामान चुराया, फ्लैट में छुपाया, और जब सबूत सामने आए तो गिरफ्तारी के बाद खुद को निर्दोष साबित करने के प्रयास किए।
नतीजा: गिल्टी साबित हुए, अब जेल और फिर निर्वासन की प्रक्रिया चल रही है।
यह महज़ अपराध नहीं, बल्कि सोचने-समझने की शक्ति में गहरी गिरावट का संकेत है।
# यह मूर्खता क्यों है?
विदेश में रहकर भी जब कोई भारतीय यह सोचता है कि “मैंने सामान लौटा दिया है, अब मामला खत्म समझो,” तो यह सोच इस बात की पुष्टि करती है कि उसका मानसिक ढाँचा अभी भी भारतीय तंत्र की भ्रष्ट और अनैतिक आदतों में जकड़ा हुआ है।
वह ईमानदार और सख्त पश्चिमी व्यवस्था को समझ ही नहीं पाता।
ऐसा क्यों होता है?
# क्यों हमारे अवचेतन में यह ‘छूट’ की मानसिकता घर कर गई है?
हमारा तंत्र वर्षों से एक अधपका लोकतंत्र और पथभ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी की शरण में रहा है:
* शीर्ष स्तर पर ही भ्रष्टाचार का बोलबाला: बड़े रक्षा सौदों से लेकर नीतिगत निर्णयों तक, पैसे की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है।
* राजनेताओं की छवि अपराध और घोटालों से सनी रहती है — फिर भी वे चुनाव जीतते हैं, माला पहनते हैं।
* सरकारी तंत्र — पुलिस, प्रशासन, न्याय व्यवस्था — भी कभी-कभी पैसे या सिफारिश से झुक जाती है।
* समाज में सत्य, न्याय, ईमानदारी जैसी बातें आदर्श बनकर रह गई हैं, व्यवहारिक नहीं।
इस सबका असर आम भारतीय के अवचेतन मन पर पड़ता है।
वह “जुगाड़”, “मैनेज कर लेंगे”, “कुछ नहीं होगा” जैसी मानसिकता लेकर विदेश जाता है — और भूल जाता है कि वहाँ का सिस्टम इस ‘भारतीय अपवादवाद’ को नहीं समझता, ना स्वीकार करता है।
# पश्चिमी समाज अब भी हमसे आगे क्यों हैं?
कई वीडियो, पोस्ट और चर्चाएं आपको यह जताने की कोशिश करती हैं कि अमेरिका, कनाडा, यूरोप बर्बाद हो चुके हैं।
लेकिन ज़रा ठहर कर सोचिए — क्या वाकई?
नहीं।
पश्चिमी समाज अब भी:
* कानून के प्रति ईमानदार और सजग हैं।
* झूठ, दिखावा, चोरी से परहेज़ करते हैं।
* मानवता, सहानुभूति और नागरिक शालीनता में हमसे कहीं आगे हैं।
* जात-पात, तुच्छ दिखावा, पैसे के दंभ से कोसों दूर हैं।
वो लोग चोरी नहीं करते, बीच से पत्थर या पब्लिक प्रॉपर्टी उठाकर घर नहीं ले जाते। फ्री चीज़ें देखकर ललचते नहीं, बल्कि अपना आत्मसम्मान बनाए रखते हैं।
विदेश में क्या करना चाहिए?
1. चुपचाप नियमों का पालन करें। जो देश आपको अवसर दे रहा है, उसे सम्मान दीजिए।
2. कानून तोड़ने की गलती न करें। यह आपको जीवनभर पछतावे में डाल सकता है।
3. अपने देश की छवि के प्रतिनिधि हैं आप। हर भारतीय प्रवासी भारत का चेहरा है।
4. दिखावा, बहस, बहानेबाज़ी, और जुगाड़ की सोच — ये सब भारत में छोड़ आइए।
5. पश्चिम से सीखिए। वहाँ की अच्छी बातों को आत्मसात कीजिए — यही असली देशभक्ति है।
# सच्चा राष्ट्रवाद — सुधार की स्वीकृति में है
यदि आप यह सोचते हैं कि ये लेख अपने देश की आलोचना कर रहा है, तो स्पष्ट हो जाए कि यह आलोचना नहीं, आत्मविश्लेषण है।
सच्चा राष्ट्रवाद यह नहीं कि हम आंखें मूंदकर कहें “हम सबसे अच्छे हैं।”
सच्चा राष्ट्रवाद यह है कि हम अपनी कमजोरियों को स्वीकारें, सुधार की इच्छा रखें, और दुनिया से अच्छी बातें सीखने में झिझक न करें।
भारत एक महान देश है — लेकिन वह और भी महान तभी बनेगा जब उसके नागरिक भी ईमानदार, आत्मसजग और नैतिक रूप से प्रबुद्ध बनेंगे।
“कानून की इज्ज़त अपने देश में नहीं कर सकते, तो कम से कम विदेश में तो शर्मिंदा मत कीजिए।”