
एक बुजुर्ग दादी अपने पोते में साथ रोज़ नियमित पूरे तहसील परिसर में झाड़ू लगाती इस प्रत्याशा से कि उनको वेतन मिलेगा,
उनको चार साल से कोई वेतन नहीं मिला,
सुन कर दुख हुआ।मैंने एसडीएम साहब से मिल कर सभी लोग अपना हर महीने दस हज़ार एकत्र कर देने लगे।
दादी और पोते को मैंने सुबह मेरे घर नस्ता कर काम पर जाने की हिदायत दी,
ख़ाली पेट काम करते थे।मुझे पता चला दादी के बेटे की मौत हो गई
एक बेटी है
घर चलाना मुश्किल है
गरीब की जरूरत भी छोटी होती है
दादी सिर्फ एक सिलाई मशीन माँगी
🥹।बच्चे को पढ़ाने के लिए महिला आरक्षी प्रियांशी को लगाया ड्रेस बैग सब दिलाया
लेकिन
प्रियांशी मुझसे रोज शिकायत करती पढ़ना नहीं चाहता और मैं रोज उसको कहता क्या जीवन में झाड़ू ही लगाना या गाड़ी से भी घूमना,
बच्चा सर हिलाता पर करता अपने मन की,
इसी तरह कब मेरा एक वर्ष निकल गया और मेरा ट्रांसफर सहसवान हो गया।
वहाँ जाने से पहले एक दिन मेरे घर के सामने हथेली में छोटी सी पर्ची लिए खड़ा था
जैसे ही मैं ऑफिस के लिए निकला मुझे थमा के दौड़ लगा कर भाग गया
“उसमें लिखा था मुझे भी एक अड्डू जैसी साइकिल 🚲 दिला दो”
पढ़ कर दिल भर गया अगले दिन उसके लिए साइकिल माँगा कर प्रियांशी के हाथों दिलाया ताकि मेरे जाने के बाद भी वो पढ़ाई करता रहे।
एक दिन उसको किसी ने भंग की पकौड़ी खिला दी सारी रात गायब रहा दादी का रो रो कर बुरा हार मैंने सारी जगह खुजवाया पर न मिला अगले दिन जब उसका भंग नशा उतरा तब घर आया इस से समझ आया जरूरत मंद गरीब के बच्चे को कैसे लोग आवारा बनाना चाहते है।
मेरे जाने के एक साल बाद मुझे फिर पता चला वो दिल्ली अपने पिताजी को खोजने चला गया
क्योकि उसकी दादी बोलती थी तुम्हारे पापा दिल्ली में काम करते है
जबकि उनकी मृत्यु हो चुकी थी।
उसके बाद क्या हुआ मुझे नहीं पता
लेकिन स्टोरी का एक मोरल मिला कि क्षणिक में बोले गए झूँठ को कालांतर में जारी नहीं रखना चाहिए सच बता देना चाहिए …