
*आ गया नवरात्र, नहीं बनी विन्ध्याचल जाने वाली सड़क*
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*आ गया ऊपर से फोन और थाने में बैठाए गए कम्पनी के लोग छूट गए*
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*सड़क बने या न बने, निर्माण कम्पनी पर नहीं आएंगी आंच और न होगी कोई जांच*
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*भारी होगी कठिनाई : गिरेंगे-पड़ेंगे और होंगे लोग घायल*
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मिर्जापुर। जिसका अंदेशा था, वह हुआ सच। नगर से विन्ध्याचल की ओर जाने वाले सड़क अमृत योजना के कार्यों के लिए तोड़ी-खोदी तो गई लेकिन बनाने के नाम पर हर लेविल का प्रयास निरर्थक साबित होता रहा। पिछला वासंतिक नवरात्र कोरोना ने चट कर दिया था और इस बार का शारदीय नवरात्र टूटी-फूटी सड़क चट करेगी। पिछले 6 महीनों में राहगीरों के रह-रह कर गिरने, घायल होने की घटनाओं के आधार पर निष्कर्ष यही निकलता है कि इस नवरात्र में जब दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ेगी तो भारी जाम और दुर्घटनाएं होकर रहेंगी क्योंकि जब सामान्य दिनों में सम्हल-सम्हल कर चलने वाले लोग बच नहीं सके तो फिर आगे भी वही सब कुछ होगा जो पिछले महीनों में हो चुका है।
*मण्डल हिले, लखनऊ हिले और दिल्ली हिले ना*
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मिर्जापुर में प्रसिद्ध ढुनमुनियां कजली की पैटर्न पर ढुनमुनियां सड़क हो गई है लिहाजा उपशीर्षक को तदनुकूल बनाना सड़क की अहमियत बढ़ाने के लिए है। अमृत जल योजना के लिए तकरीबन दो-तीन किमी खोदी गई सड़क न बनाए जाने से कराह रही जनता को राहत दिलाने के लिए किस-किस ने दौरा नहीं किया । किस किस का नाम लिया जाए । सबके *’हां में हां’* मिलाती रही निर्माण कम्पनी और कहती रही कि जल्दी सब *’ओके’* हो जाएग। जुलाई से ही कहा जा रहा कि सड़क बनाने का टेंडर हो गया है । जुलाई बीते 3 माह से अधिक होने के बाद अभी भी पूछने पर यही कहा जाता है कि बस टेंडर होने वाला है। *इस उहापोह से क्षुब्ध होकर कुछ दिन पहले मण्डल के एक बड़े अधिकारी जब मौके-मुआयने पर गए तो सड़क की हालत देखकर भौचक हो गए। आंखे फटी की फटी रह गई, लगा कलेजा बाहर आ जाएगा और कम्पनी की गलतबयानी को लेकर FIR दर्ज करने का हुक्म दिया।* मौके पर उपस्थित पुलिस कम्पनी के दो बड़े कर्त्ता-धर्त्ता को थाने ले आई। विधिक औपचारिकताएँ हो रही थीं कि मण्डल लेविल की कार्रवाई पर लखनऊ-दिल्ली हिलने लगी। फोन की घण्टी घनघनाने लगी कि कम्पनी रसूखदार है, न कोई जांच न कोई आंच आने पाए प्यारी-दुलारी कम्पनी पर।
*क्या क्या गुजरती है यह वही जान सकता है जो इस पथ का राही है*
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नई दिल्ली की इस कम्पनी के सीने में मां विन्ध्यवासिनी की नगरी के प्रति रंच मात्र श्रद्धा होती तो इस नगरी के लोगों की पीड़ा से वह भी कराहती। मुख्य मार्ग *’कुमार्गी’* हो गई है लिहाज़ा विन्ध्याचल जाने के लिए सबरी होते जंगीरोड बाईपास का रास्ता पकड़ना पड़ता है हरेक को। चाहे स्कूली बच्चे हों, चाहे श्रद्धालु हों या लाचार-बीमार लोग हों।
*सबरी की सड़क छोटी मौसी जैसी !*
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यह भी सड़क चिकने-चिकने गालों की तरह नहीं जिसका उदाहरण कभी बिहार के मुख्यमंत्री काल में लालू यादव दिया करते थे। यह भी सड़क झुर्रीदार बूढ़ी दादी की तरह है। यूं कहें तो रामायण-काल की बूढ़ी सबरी माता की तरह शापित। जिसे मुक्ति देने श्रीराम आए थे। इससे बड़ी समस्या ट्रेनों की आवाजाही के कारण जब गेट बंद होता है तो लगता है कि किस्मत का गेट बंद हो गया है।
*क्या जाने जनता का दर्द कम्पनी के हमदर्द लोग?*
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बहरहाल *6 अक्टूबर की मध्यरात्रि से नवरात्र मेला शुरू हो गया है।* श्रद्धालुओं का दर्द कम्पनी के हमदर्द महसूस करते तो फौरन आदेश देते कि बड़ी कंपनी समझ कर काम दिलाया था तो काम में क्यों निचले पायदान पर हो?
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*शिवम् राज गोरखपुरी*