
*सम्पादकीय*
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक✍🏾
*जीवन की फिल्म का संगीत समझ लिजीए*!!——–
*जबतक आप के साथ मे लक्ष्मी कान्त है* !!—–
*तब तक आप सभी के प्यारे लाल है*!!–
दिब्यलोक से मृत्युलोक में आगमन के बाद से ही उम्र का कारवां ज्यों ही जवानी के दहलीज पर कदम रखता है लक्ष्मी कान्त की कमी महसूस होने लगती है।
ऐन केन प्रकारेण हर हाल में हर कोई लक्ष्मी कान्त से घनिष्ठता के लिए आतुर हो जाता है।
सौभाग्य के धरातल पर प्रस्फुटित तकदीर का सानिध्य पाकर जो निहाल हो गया फिर उसके जीवन में अनन्त सुख की गमकती हवाएं हरहराने लगती है।
हर कोई अपनत्व की छाया में मोह-माया का इस कदर संजाल पैदा करता है की पता ही नहीं चलता की कौन अपना है कौन पराया है!
वक्त इस खेल को देखकर मुस्कराता है!
क्यों की उसे पता है लक्ष्मी का ठीकाना महज चन्द दिनो का है!
फिर तो उदास मंजर होगा! तन्हाई के हाथ में खंजर होगा!ज्यों ही लक्ष्मी कान्त से दोस्ती टूटी प्यारेलाल बनने के ख्वाब के साथ ही किस्मत फूटी!
जो कल तक शागिर्द थे वे ही दहशत गर्द नजर आने लगते हैं।जिसे अपना समझा कर हर फर्ज पूरा किया वे ही बेदर्द बनकर उस अफसाने को सच कर दिखाते हैं जो बेगाने किया करते हैं!
इतिहास गवाह है लक्ष्मी कान्त जब तक साथ तभी तक आप प्यारे लाल है! ज्यों ही कंगाल बैंक के मैनेजर घोषित हुए सारे ख्वाब पल भर में धाराशाई हो जाते हैं।
इस मतलब परस्त की दुनियां में हर कोई स्वार्थ की कश्ती पर ही सवार होकर रिश्ते की जमीन तलाशता है।
वक्त तो बादशाह होता है उसी के रियासत में सियासत से लेकर लक्ष्मी कान्त की नफासत का बोलबाला होता है।
कल की बात कुछ और थी! मगर आजकल के हालात तो ऐसे सवा लात सामने खड़ा कर दिए हैं की हर किसी के चेहरे पर मायूसी है!
दुर्भाग्य की तपती दोपहरी में अश्कों से भीगा चेहरा लिए हर शख्स नजर आता है।वजह भी जगजाहिर है जिनके दम पर ख्वाब सजाया था वहीं लक्ष्मी का बेपनाह मोहब्बत पाते ही बदल गया!
घर बार पराया हो गया!धूप-छांव में ज़िन्दगी को तपाकर ख्वाबों के घरौंदे को मकसद के साथ अभिमान से सजाया था वह घरौंदा उन अपनों की बेरुखी के चलते धाराशाई हो गया!
मां बाप के दिलों पर बज्रपात कर अपना वही हमदर्द कसाई हो गया जिसके लिए इस बेदर्द जमाने में कदम कदम पर ठोकरें खाकर हर पल हर मुसीबतों से बचाकर तरक्की की राह का मुसाफिर बनाया!
जब तक इर्द गिर्द खनकती लक्ष्मी की मधुर आवाज़ थी हर कोई अपना था!
हर किसी के लिए प्यारेलाल था! मगर सच की सतह पर पहुंच कर आखरी सफर की गुमनाम राहो में तन्हाई का सानिध्य लिए जीवन उम्र के उपवन में प्यार के पानी बिना देखते ही देखते निर्जीव होकर अपने अस्तित्व को ही खो दिया।
महत्वाकांक्षी मन अग्निपरीक्षा की दहकती ज्वाला में अपनों की मतलब परस्ती का निवाला बन गया! ज़िन्दगी के हर ख्वाब रूआब से जीने के लिए लक्ष्मी कान्त की सहभागिता इस लिए जरूरी है की बिना उनके कभी भी किसी के प्यारे लाल नहीं बन सकोगे!
सच ए भी है सबकुछ मृग तृष्णा है!
भौतिक वादी युग मे जबतक सांस है सुखी जीवन के लिए सिर्फ लक्ष्मी की आस है!
उससे नाता टूटा सभी से साथ छूटा!
वैराग्य के बहती उफनती दरिया में जिसने ग़म से बोझिल वक्त की कश्ती पर सवार उस पार जाने की जिद्द कर लिया फिर उसके लिए न लक्ष्मी कान्त की जरूरत न प्यारेलाल बनने की तमन्ना!
समय रहते सम्हल जाओ भाई किसी का कोई नहीं।सबका मालिक एक 🕉️साईंराम🙏🏾🙏🏾
जगदीश सिंह सम्पादक राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत 7860503468