मैं मुस्लिम नारी हूँ… मुझे पुश्तैनी संपत्ति में मेरे भाई को जितना हिस्सा मिलता है,
मुझे उसका आधा ही मिलता है।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… इस्लामिक कोर्ट में मेरी साक्षी को किसी मर्द की साक्षी का सिर्फ आधा मानते हैं।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… मैं अपने बेटों के साथ उसी पंक्ति में नमाज़ अदा नहीं कर सकती, मुझे उनके पीछे रहना पड़ता है।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… मेरे लिए घर से बाहर निकलने से पहले शौहर की अनुमति लेना ज़रूरी है। शौहर के लिए ऐसा कोई नियम नहीं।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… मेरे शौहर तीन और बीवियाँ ला सकता है, किन्तु मुझे एक समय पर सिर्फ एक निकाह की अनुमति है।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… मुझे मेरे शौहर की हर बात माननी पड़ती है, वरना कुरआन में मेरी पिटाई करने का निर्देश दिया गया है।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… मुझे मेरे शौहर के ज़ायदाद का सिर्फ १/८ हिस्सा मिल सकता है। वह भी यदि मैं उनकी इकलौती बीवी होती हूँ। अगर उनकी चार बीवियाँ हैं, तो फिर मुझे सिर्फ १/३२ हिस्सा ही मिलेगा। किन्तु मेरे मरणोपरांत मेरी जो भी जायदाद है, शौहर को उसका आधा हिस्सा मिलेगा (यदि मैं निःसंतान मरूँ, तो) यदि संतान है, तो शौहर १/ ४ हिस्सा मिलेगा।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… मर्द चाहे कुछ भी पहने, स्टाइल मारे, पश्चिमी लिबास पहने, शॉर्ट्स पहने, सब चलेगा। किन्तु मुझे एक काले बस्ते में बंद रहना है, क्यूंकि मुस्लिम मर्द हवसी हैं।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… मैं शौहर से तलाक नहीं ले सकती, जब तक वह राजी न हो। जब तक इस्लामिक कोर्ट से मुझे खुला की अनुमति न हो। इसमें समय लगता है। किन्तु मेरा शौहर तीन बार तलाक बोलकर मुझे घर से निकाल सकता है।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… मेरा एक्स-शौहर मेरे और उनके बच्चों के लिए कोई पैसा नहीं देता, और कुरआन के मुताबिक़ यह कोई गुनाह नहीं है। भले बच्चे दर दर की ठोकरें खाएं, या समाज पर बोझ बने।
मैं मुस्लिम नारी हूँ… यदि मैं शौहर को सम्भोग के लिए मना करती हूँ, तो मुझपर अल्लाह का कहर बरसेगा। फ़रिश्ते नहीं आएंगे। मैं फॅमिली- प्लानिंग भी नहीं कर सकती, कुरान में मनाई है। किन्तु तलाक के बाद मुझ अकेली को बच्चों को ढोना पडेगा।

