● हाय बेरोजगारी 😭
आलू के दो भारी पराँठे या पाँच रोटियाँ
काबली चने की सब्जी और कढ़ी
प्याज और खीरे की सलाद और साथ में घी/तेल में तली और मसाला लगी हरी मिर्च
एक थाली की कीमत 50 रु
आज दोपहर 2:00 बजे
उस समय मैं कुछ कामों से बाजार में गया हुआ था।
तब मुझे भूख जोर की लगी थी।
मैंने देखा कि उस रेहड़ी के साथ लगे बैंच और तख्त पर बैठे चार लोग खाना खा रहे थे।
उनकी थाली में मैंने कढ़ी देखी तो मेरा मन ललचा गया।
मैंने सोचा कि घर पहुँचने में पता नहीं कितना समय लगेगा तो यहीं पर खाना खा लिया जाये और कढ़ी का स्वाद भी ले लिया जाये। कढ़ी खाना मेरी शुरु से ही कमजोरी रही है।
उन 35-40 मिनटों में मुझ समेत 8 लोग खाना खा चुके थे।
मतलब उस इतनी देर में ही उस रेहड़ी वाले भाई की बिक्री 400 रु हो चुकी थी।
अब यदि वहाँ 100 लोग भी हर रोज भोजन करते होंगे तो उसकी 5000 रु की बिक्री तो होती ही होगी।
उस भाई को न तो दुकान का किराया देना होता है और न ही उसे बिजली और पानी का बिल भरना होता है।
मतलब उन 5000 रु की बिक्री में से उसे 2000 हजार रु तो बचते ही होंगे।
वह भाई रविवार को रेहड़ी नहीं लगाता है।
फिर भी उसकी एक महीने की कमायी कम से कम 40 हजार रु बैठती होगी।
जिन दिनों में उसकी बुकिंग विवाह या पार्टियों के लिये हो जाती है तो वह उन दिनों रेहड़ी क्यों लगाये क्योंकि उसे एक दिन की बुकिंग के लिये कम से कम 10 हजार रु मिल जाते हैं।
उसे इतनी मोटी कमायी पर कोई टैक्स देना तो दूर की बात है उसका EWS वाला पीला या गुलाबी राशन कार्ड तो पक्का बना हुआ ही होगा।
इस सबके चलते हुए भी उसका इंकम टैक्स भरना तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते हैं।
दूसरी और हमारे तथाकथित सवर्ण समाज के ‘अति होनहार’ बच्चे क्या ससुरे राशन पाड़ साँड हैं।
इन कम पढ़े या बीए पास साँडों को कुँवारा मरना नहीं तो एटीएम पर या आऊटसोर्सिंग पर 9-10 हजार रु तनख्वाह की नौकरी मंजूर है पर इन्होंने अच्छी आमदनी वाला वह कोई काम करना नहीं करना है जिससे कि इनकी कमीज मैली होती हो।
■ हाय बेरोजगारी 😀

