कोरोना की वजह से कुछ महीने पहले उनके पिताजी के गुजर जाने के बाद आज पहली दफ़ा दोनों भाईयों में जमकर बहसबाजी हुई।
फ़ोन पर ही छोटे भाई को बड़े ने खूब खरी-खरी सुना दी।
दोनों में पुस्तैनी संपत्ति को लेकर कुछ समय से विवाद चल रहा था ।
हालांकि अपना पुश्तैनी घर छोड़कर बड़ा भाई कुछ किलोमीटर दूर एक सोसायटी में रहने आ गया था।
उन तंग गलियों में रहना अब उसे और उसके बच्चों को कतई नहीं भाता था।
उन दोनों मियां-बीबी की अच्छी खासी तनख्वाह के बूते उसने एक बढ़िया सा फ्लैट ले लिया था ।
सीधे-साधे से उनके पिताजी ने कोई वसीयत तो की नहीं पर उस पुश्तैनी घर पर दोनों का बराबर का हक बनता था ।
छोटा भाई मना नहीं करता, लिखा-पढ़ी को भी राजी था पर दिक्कत अब ये थी कि वो घर के एक बड़े हिस्से में ख़ुद का एक कोचिंग सेंटर खोलना चाह रहा है।
उसकी प्राइवेट शिक्षक की नौकरी सात महीने पहले कोरोना के दौर में छूट चुकी थी ।
उसके पास औऱ कोई पूंजी या चारा नहीं था। उसकी पत्नी अनपढ़ घरेलू महिला थी।
हालांकि छोटे भाई ने दो महीने पहले ही आस-पास कहीं किराये का कमरा लेकर एक छोटा सा साधारण कोचिंग सेंटर खोला था।
फ़िरभी फोन पर बड़े भाई से आग्रह कर रहा था, “आपके वाले हिस्से में कोचिंग सेंटर खोल लूँ तो फ़िलहाल मेरा किराया बच जाएगा ,इस वक़्त पैसे की जबरदस्त तंगी है ,मरने तक की नौबत है भईया ।”
लेकिन बड़ा भाई सोच रहा था..
अब भला ये क्या बात हुई।
चीज मेरी ,उपयोग करेगा वो ,कल अधिकार भी जमाने लगेगा या हड़प भी सकता है ,क्या भरोसा इस दौर का ।
लेकिन उन दोनों की बहस सुन बड़े भाई की धर्मपत्नी अपने देवर की बात को ही सही ठहराते हुए बोली, “खोलने दो ना उसे कोचिंग सेंटर, छोटा भाई है आपका।
मुश्किल में है कुछ सहारा ही हो जायेगा।
आखिर बड़े भाई हो, कुछ तो फ़र्ज बनता है कि नहीं ,वैसे भी पिताजी ने आख़री वक़्त में मुझसे कहा था..
बहू ,तुम बड़ी औऱ समझदार हो ,विपत्ति में कम से कम अकेले मत छोड़ना परिवार को ।”
लेकिन बड़ा भाई बेहद खड़ूस था ।
अपनी पत्नी की बात सुनकर अब वो क्या बोलता, अखबार मेज पर पटका, थैला उठाया और सब्जी लेने के बहाने घर से निकल आया।
बाज़ार में घुसते ही महीने भर से नदारद उसका सब्जी वाला दिनेश नज़र आया।
वो कई सालों से उससे ही सब्ज़ी लेता आ रहा था ।
फटाफट वहीं जा पहुंचा।
“कहाँ ग़ायब हो गया था रे दिनेश , महीना हो गया मुझे इधर-उधर से औने-पौने दाम में सब्जी लेते हुए।”
बड़े भाई ने कहा ।
” अपने गाँव गया था भईया जी ,जरूरी था ,एक चचेरे छोटे भाई की माली हालत बहुत खराब हो गई थी औऱ अब चाचा भी नहीं रहे ।
वहां गया और सब ठीक कर लौट आया।
अपने घर में ही छोटी सी किराने की दुकान करा दी। चचेरा है तो क्या हुआ , बड़ा भाई भी तो बाप समान होता है ना, भईया जी….
औऱ चाचा ने ही तो मुझें पाल पोषकर बड़ा किया है औऱ यहां तक की मेरी तीन तीन बहनों की शादी भी की है ” सब्जी वाला बोला पड़ा ।
ये सुनकर लगा जैसे बड़ा भाई जम सा गया। सब्जी भरा थैला लेकर सरपट घर भागा औऱ वहां से तुरंत वो उन जानी पहचानी तंग गलियों से होता हुआ अपने पुराने पुस्तैनी घर जा पहुँचा।
बाहर खेलते हुए छोटे भाई के दोनों बच्चे उसे देखते ही ”ताऊ जी, ताऊ जी” कहकर लिपट गए।
उसकी आवाज सुनकर छोटा भाई भी बाहर निकल आया।
बड़ा भाई उसे डाँटते हुए बोला, “क्यूँ रे, बहुत बड़ा हो गया है तू। मैंने जरा सा कुछ बोल क्या दिया, तुझसे तो पलट कर फ़ोन भी ना किया गया।”
“अपने जब साफ़-साफ़ मना कर दिया तो फिर फोन क्यूँ करता भईया ……..
छोटे ने बड़े का पैर छूते हुए जबाब दिया ।”
“हाँ-हाँ जैसे तू तो मेरी हर बात मानता है।”
“क्यों नहीं मानता आप बोल कर तो देखो भईया , जान हाज़िर है तुम्हारे लिए ।”
“ये कुछ पैसे हैं रख ले, तेरी कोचिंग सेंटर के फर्नीचर की खरीददारी के लिए।
यहाँ शिफ़्ट करने से पहले सब ठीक करा लेना जरूर ।”
“मतलब मैं यहाँ अपना……….।
आपका ये एहसान मैं………।”
कहते-कहते उसका गला भर आया।
“एहसान नहीं पगले, ये तो मेरा फ़र्ज है जो मैं भूल गया था।” और ये बोलते हुए बड़े भाई की आँखें भर आयी ………।
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……….विपत्ति में भूलकर भी अपनों का साथ न छोड़े ।इस समाज औऱ परिवार ने हमें बहुत कुछ दिया है ,कुछ वापस भी करना ज़रूरी है ,ये न भूलें…………!!

