👉 अमूल्यरत्न न्यूज संवाददाता
👉 नए जिले के फायदे क्या हैं, आम लोगों से लेकर राजनीतिक दल तक क्यों करते हैं इसकी मांग
भारत की आजादी के बाद से ही देश में कभी अलग राज्य तो राज्यों में अलग जिले बनाने की मांग उठती रही है. कई बार सरकारों ने मांग को मानते हुए नए राज्यों की स्थापना की तो कभी नए जिलों में मंजूरी दी गई. इस बार राजस्थान में नए जिले बनाने की मांग जोर पकड़ रही है.प्रदेश में जिलों की बात करें तो यहां एक जिले में औसत 24 लाख की आबादी है. राजस्थान से छोटे राज्य छत्तीसगढ़ और गुजरात में ही 33-33 जिले हो गए हैं. छत्तीसगढ़ में 9 लाख की आबादी पर एक जिला है. हरियाणा में 13 लाख की आबादी पर एक जिला है. मध्य प्रदेश में 52 जिले हैं. राज्य में 15 लाख की आबादी पर एक जिला है.
राजनीतिक दल ही नहीं, सामाजिक संगठन और आम लोग भी नए जिलों की मांग में सुर मिलाने में पीछे नहीं रहते. मध्य प्रदेश में तो आम लोग के साथ सत्ता पक्ष के विधायक भी नए जिले की मांग में शामिल हो गए थे. कमोबेश यही हाल राजस्थान का भी है. राजस्थान के पूर्व चिकित्सा मंत्री और कांग्रेस विधायक रघु शर्मा के केकड़ी को जिला बनाने की मांग पुरजोर तरीके से उठाने के बाद इसने जोर पकड़ लिया है. सीएम अशोक गहलोत ने इस मांग को लेकर पिछले साल एक कमेटी का गठन किया था, जिसका कार्यकाल 14 मार्च को पूरा हो रहा है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि राज्य सरकार को जल्द ही 7 नए जिले और 3 नए संभाग बनाने की रिपोर्ट सौंप दी जाएगी.क्यों नए जिले बनाने से कतराती हैं सरकारें
नए जिलों के बनने से आम लोगों को राजनीतिक दलों को होने वाले फायदों की चर्चा करने से पहले जानते हैं कि आखिर सरकार इस मांग को लटकाती क्यों रहती हैं. दरअसल, सरकार नया जिला बनाने के लिए जनसंख्या घनत्व को आधार मानती हैं. नए लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र भी इसी आधार पर बनाए जाते हैं. इसीलिए राजस्थान से कम जिले वाले गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और कर्नाटक में मरु-राज्य से ज्यादा लोकसभा व राज्यसभा सीटें हैं. इससे ज्यादातर बार राज्य के विपक्षी दलों को फायदा मिलता है. वहीं, राज्य सरकार को नया जिला बनाने पर एकबार बड़ा खर्चा उठाना पड़ता है.
राजस्थान सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे रघु शर्मा के केकड़ी को जिला बनाने की मांग ने सीएम अशोक गहलोत को मुश्किल में डाल दिया है.
नए छोटे जिलों में खुल जाती है विकास की राह
विशेषज्ञों के मुताबिक, छोटे जिले बनने पर विकास की राह बड़े जिले के मुकाबले आसान होती है. वहीं, छोटे जिलों में गुड गवर्नेंस और फास्ट सर्विस डिलिवरी से लोगों के जीवनस्तर में सुधार होता है. शहरों के साथ ही गांवों और कस्बों की दूरी जिला मुख्यालय से कम हो जाती है. इससे आम लोगों और प्रशासन के बीच संवाद बढ़ता है. वहीं, सरकारी मशीनरी की रफ्तार भी बढ़ जाती है. विकास की रफ्तार तेज होने के साथ ही छोटे जिलों में कानून-व्यवस्था नियंत्रण में रखना आसान रहता है. शहरों, कस्बों और गांवों के बीच कनेक्टिवटी बढ़ने से सरकाररी योजनाएं आम लोगों तक जल्दी व आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं. वहीं, राज्य सरकार के राजस्व में भी इजाफा होता है.नए जिले को मिलनी चाहिए आर्थिक आजादी
अर्थशस्त्रियों का मानना है कि बड़े जिलों को बांटकर दो छोटे जिले बननो के साथ ही उनको वित्तीय आजादी मिलना भी बहुत जरूरी है. नए जिले बनाने का मकसद सिर्फ नए कॉलेज और अस्पताल खुलवाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए. बेहद जरूरी है कि नए जिलों को साधन और अधिकार भी मिलें. अगर आम लोगों को नए जिले बनने से होने वाले फायदों की बात करें तो इससे उनकी सभी मुख्यालयों तक पहुंच आसान हो जाती है. वहीं, सड़क, बिजली, पानी जैसी जरूरी सुविधाओं में जिले के छोटे होने के कारण सुधार होता है. इससे पुराने जिलों को भी फायदा होता है. पुराने जिले में लोगों तक सरकारी सेवाओं को आसानी से पहुंचाया जाने लगता है. वहीं, संसाधनों पर बोझ कम होता है.नए और छोटे जिले बनने से विकास को रफ्तार मिलने के साथ ही प्रशासन और जनता के बीच संवाद बेहतर होता है.
नए बने जिलों पर अब तक क्या पड़ा है असर
राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात समेत कई राज्यों में बड़े जिलों को बांटकर दो छोटे जिले पहले भी बनाए गए हैं. अब तक का अनुभव कहता है कि जब जिले छोटे होते हैं तो प्रशासन की पहुंच आखिरी गांव तक हो जाती है. प्रशासनिक अधिकारियों को गुड गवर्नेस के लिए बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ती है. इससे विकास को गति मिल जाती है. वहीं, नया जिला बनने पर बजट बढ़ जाता है. प्रशासनिक व्यवस्थाओं की निगरानी करना भी आसान हो जाता है. जिलों का आकार छोटा होने से प्लानिंग के सफल होने का प्रतिशत बढ़ जाता है. कुल मिलाकर जिला छोटे होने पर संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होने, समय की बचत होने, बेहतर प्लानिंग और प्रशासन-जनता के बेहतर संवाद से विकास को रफ्तार मिलती है

