
बड़ी खबर
**********************************
ओडिशा हाई कोर्ट ने कहा है कि झगडे़ या बहस के दौरान किसी शख्स के अपमान के इरादे के बिना उसकी जाति का नाम लेना या उसे जाति के नाम के अचानक गाली देना नहीं बन सकता एससी …
एसटी एक्ट के तहत आपराधिक केस के लिए पर्याप्त आधार …….
कोर्ट ने कहा कि अपराधी का पीड़ित को अपमानित करने का होना चाहिए इरादा……..
कोर्ट ने कहा अगर किसी को उसकी जाति के नाम के साथ गाली दी जाती है या किसी घटना के दौरान अचानक जाति के नाम का इस्तेमाल किया जाता है, तो कोर्ट के विनम्र दृष्टिकोण से यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा कि यह एससी-एसटी के तहत कोई अपराध है…….
हाई कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम के तहत किसी को अपराधी तभी माना जा सकता है जब प्रथम दृष्टया में यह स्थापित हो जाए कि पीड़ित का अपमान इस कारण से किया गया है कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है…….
याचिकाकर्ता का आरोप था कि एक दिन जब वह अपने घर लौट रहा था तब आरोपी ने उसके खिलाफ अभद्र भाषा के साथ ही उस पर हमला किया और उसे आतंकित करने का प्रयास किया था…….
इसी दौरान आसपास के लोगों ने बीच-बचाव किया…….
इसी दौरान आरोपी ने दखल देने वाले एक पीड़ित ( अनुसूचित जाति से संबंधित ) की जाति का लिया था नाम……
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि पीड़ित खुद शिकायतकर्ता नहीं है, ऐसे में यह मानना कि आरोपियों का इरादा उसको उसकी जाति के आधार पर अपमानित करने का था, यह दावा गलत होगा……..कोर्ट ने एससी / एसटी एक्ट के आरोपों को खारिज कर दिया……..
कोर्ट ने आईपीसी के तहत मामले में लगाए गए अन्य आरोपों को खारिज नहीं किया……
इसमें चोट पहुंचाना और आपराधिक धमकी देना शामिल था…….
कोर्ट ने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि एक पुराने केस हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य केस में सर्वोच्च कोर्ट ने कहा था कि ‘एससी / एसटी एक्ट के तहत एक अपराध तब तक स्थापित नहीं हो सकता जब तक पीड़ित को उसकी जाति के आधार पर अपमानित करने का कोई इरादा नहीं हो…..