
आजकल माता-पिता बच्चों से इस प्रकार के संबोधन करवाते हैं,
“छोटे पापा, बड़े पापा”।
बाहर का व्यक्ति जब यह शब्द सुनता है,
तो उसे यह पता ही नहीं चलता,
कि “जो सामने पुरुष खड़ा है,
वह इसका पिता है,
चाचा है,
या ताऊ है।”
इसी प्रकार से बच्चे बोलते हैं, “छोटी मम्मी, बड़ी मम्मी”।
अब यह पता नहीं चलता, कि *”सामने जो स्त्री खड़ी है, वह बच्चे की मां है, चाची है, या ताई है।”
आजकल के संबोधनों से इस प्रकार के संशय उत्पन्न हो रहे हैं।
माता पिता, चाचा चाची आदि जो प्राचीन पारंपरिक शब्द हैं,
उन्हें छोड़कर,
“छोटी मम्मी, बड़ी मम्मी”
आदि शब्दों का प्रयोग करके भ्रांति और संशय फैलाना उचित नहीं है।
“माता पिता, चाचा चाची, मौसा मौसी, बुआ फूफा और ताऊ ताई जी आदि अपने पारंपरिक संबंधबोधक शब्दों का ही उपयोग करें। यही उत्तम है।”
लोग समझते हैं कि
“छोटे पापा, बड़े पापा”,
“छोटी मम्मी,
बड़ी मम्मी”
आदि शब्दों का उच्चारण करवाकर बच्चों में और माता-पिता में प्रेम उत्पन्न कर रहे हैं, प्रेम को बढ़ा रहे हैं।
उनमें निकटता स्थापित कर रहे हैं।
कुछ अंश में यह बात सच हो भी सकती है।
“परंतु इसका परिणाम तो यह आ रहा है, कि लाभ की अपेक्षा हानि अधिक हो रही है।
प्राचीन पारंपरिक संबंधबोधक शब्द लुप्त हो रहे हैं।
उससे व्यवहार में अनेक कठिनाइयां भी उत्पन्न हो रही हैं।”
“ईश्वर ने हमारे लिए वेदों में माता पिता, चाचा चाची, मौसी मौसा, बुआ फूफा और ताऊ ताई जी आदि जो संबंधबोधक शब्द निर्धारित किए थे, वे ठीक थे।
प्रत्येक संबंध के लिए अलग अलग शब्दों का प्रयोग होने के कारण, सभी संबंध स्पष्ट थे।
उन शब्दों के प्रयोग से भ्रांति और संशय उत्पन्न नहीं होता था।”
“आपकी बुद्धि ईश्वर से अधिक नहीं है।
आप अपने नये शब्द चला कर लाभ कम और हानि अधिक कर रहे हैं।”
“इसलिए पुराने शब्दों का ही प्रयोग करें।
वे ही उत्तम हैं।
इससे हमारी परंपराएं बची रहेंगी,
जिससे भ्रांतियां नहीं होंगी,
तथा संशय भी नहीं होंगे।”
दूसरी बात — “शब्दों में भावनाएं होती हैं,
जो व्यवहार करते समय व्यवहार निभाने में बहुत सहयोग करती हैं।
जो अपने भारतीय संबंधबोधक शब्द हैं,
उनमें बड़ी उत्तम भावनाएं होती हैं,
जो अंग्रेज़ी आदि भाषा के ‘मम्मी पापा’ आदि शब्दों में नहीं होती।
” क्योंकि वहां की सभ्यता संस्कृति अलग प्रकार की है,
और भारतीय सभ्यता संस्कृति अलग प्रकार की है।
“वेदों पर आधारित होने से भारतीय संस्कृति अधिक उत्तम है।
‘माता पिता’
इन शब्दों में जो भावना है,
वह ‘मम्मी पापा’ आदि शब्दों में नहीं है।
‘चाचा चाची’ शब्दों में जो भावना है,
वह ‘अंकल आंटी’ शब्दों में नहीं है।”
इन शब्दों से भ्रांतियां कैसे उत्पन्न होती हैं?
“जैसे कि मामा भी अंकल,
मौसा भी अंकल,
फूफा भी अंकल,
पड़ोसी भी अंकल।
तो अंकल शब्द बोलने पर यह पता ही नहीं चलता कि सामने खड़ा हुआ व्यक्ति मामा है,
मौसा है,
या फूफा है,
या कोई पड़ोसी है?”
“ऐसे ही आंटी शब्द बोलने से कुछ पता नहीं चलता,
कि सामने खड़ी हुई स्त्री मौसी है,
मामी है,
या बुआ है,
या कोई पड़ोसन है?”
कुछ बच्चों को माता-पिता ने ‘बुआ’ के लिए भी ‘दीदी’ शब्द से संबोधन करना सिखा दिया।
यह भी उचित नहीं है।
‘दीदी’ का अर्थ ‘बच्चे की बहन’ होता है जबकि ‘बुआ’ का अर्थ ‘पिता की बहन’ होता है।
“इससे भी बहुत भ्रांति फैलती है,
कि यह सामने वाली स्त्री,
‘बच्चे की बहन’ है,
या ‘पिता की बहन’ है?”
“कृपया अपने संबंधों को बचाएं।
मम्मी पापा, आंटी अंकल, आदि अल्प भावना वाले विदेशी शब्दों का प्रयोग न करें।
बल्कि माता पिता, चाचा चाची, ताऊ ताई, मामा मामी, फूफा बुआ, मौसा मौसी आदि संबंधबोधक प्राचीन एवं उत्तम भावनापूर्ण भारतीय शब्दों का ही प्रयोग करें।”
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