
सम्पादकीय
✍🏾संतोष नारायण बरनवाल सम्पादक✍🏾
किसी को रूला कर कोई हंस नहीं पाया!!
यह बिधि का बिधान है जिसे कोई समझ नहीं पाया!!
परम्परागत ब्यवस्था मे पारंगत इन्सान ज़िन्दगी की हसीन वादियों में कर्मों की फसल उगाने के क्रम में न जाने कितने अपकृत्य कर डालता है। उसे पता ही नहीं चलता है कि जिस राह पर चल रहा है उसकी आहट से किसी के मन में अकुलाहट है उसके दिल दिमाग से खत्म हो रही अपनत्व की चाहत है।मगर आधुनिकता की कसौटी में खरा उतरने की कोशिश ने आदमी को बहसी बना दिया है।न परिणाम की फिकर! न अपनों के दर्द का कही जीकर!जो कल तक बादशाह था! रिन्ग मास्टर था! जिसके इशारे पर मतलवी सर्कस के सारे शागिर्द नाच उठते थे मगर समय जब करवट लिया तो उसी जगह रिन्ग मास्टर बन गया जोककर!आज के समाज मे बढ़ती तिरस्कार की बिमारी ने मानवीय सम्वेदना का सर्वनाश कर दिया! दया करूणा सौहार्द अपनत्व इन्सानियत वर्तमान परिवेश में उपहास बन गया है।आदमीयत कल की बात होकर रह गई है!मासूमियत को लोगों के दिलों की खोटी नियत ने रौंद डाला है।भरोसा शब्द ही अब कहीं उपलब्ध नहीं है। प्रारब्ध के खेल में उलझा मानव जीवन निश दिन कर्म का कडुआ फल फल चख रहा है।परिवर्तन की बहती धारा में भाग्य की सफिना बिना पतवार मझधार में हिचकोले खा रही है! मतलब परस्ती की झंझावात करती हवा जिस तरह का माहौल बना रही उससे आभास होने लगा है कि आने वाले कल में तबाही को लिए दुर्व्यवस्था की भारी वर्षांत होने वाली है!आनी जानी दुनियां में हर कोई राजदार है!कोई बे वफ़ा तो कोई वफादार हैं।फर्क बस इतना ही कौन कितना भविष्य के लिए सोचता हैकौन वक्त को पहचानता है।आज का समाज खुद की चाहत में किसी की आफत में अपनी सहभागिता न कर बेवफाई का किरदार निभा रहा है।लोग बदल चुके हैं समय बता रहा है।जरा गौर करें जब हम आप के पूर्वज अनपढ़ थे गंवार थे उनके समाज में सबके प्रति उम्दा अपनत्व का निभाते किरदार थे! आज हम आप तरक्की कर रहे हैं आधुनिक हो गये तो भूलते जा रहें अपना घर बार महज मियां बीबी तक ही सिमीत हो गया परिवार! फैसन परस्ती की हवा में वही इज्जत दार है जिसका सारा कुनबा बिना पर्दा आबरू को निलाम कर रहा सरे बाजार है! सनातनी भारत फिर पुरानी राह पर चल निकला है सारी दुनियां में डंका बज रहा है बिश्व गुरू की राह पर तेजी से कदम बढ़ा रहा सबके दर्द में शरीक होकर सबके आंसू पोंछ रहा है! बसुधैव कुटुम्ब कम के फार्मूले पर चलकर विश्व कल्याण में लगा है! क्यों की भारतीय संस्कृति की यही पहचान रही है।भारत ही इकलौता देश है जो आज तक किसी पर हमला नहीं किया! हमेशा शान से जिया!।सच कहा गया है किसी को रूला कर कोई हंस नहीं पाया!उदाहरण मे देखिए पाकिस्तान की हालत दिन रात झेल रहा हैजलालत।घर हो या देश जब सभी के किरदार मे पारदर्शिता रहेगी तभी सुरक्षित रह पायेगा खुद का परिवेश!सुख शान्ती का निवेश करें!अपनी संस्कृति देश घर बड़े छोटे का सम्मान करें!अभिमान केवल बर्बादी की ईबारत लिखता है!जो बर्बाद होने के बाद दिखता।
सबका मालिक एक ऊं साई राम🙏🏿🙏🏿
संतोष नारायण बरनवाल प्रधान सम्पादक