
सम्पादकीय
✍🏿संतोष नारायण बरनवाल – सम्पादक✍🏿
उम्र की दहलीज पर जब सांझ की आहट होती है!!
थम जाती है ख्वाहिशें तब शकून की तलास होती है??
जीवन यात्रा का अन्तिम पहर गुजरते लम्हों की तरूणाई के बाद मंजिल की तलास में हर सांस को समर्पित कर मोह माया के आवरण से मुक्त होने की चाह लिए अथाह पीड़ा का एहसास करने के बावजूद भी अपने वजूद को सुरक्षित नहीं कर पाता है! उसका हर क्षण स्वार्थ के पत्थर से टकराता है। विधाता की ब्यवस्था में आस्था के प्रतिपादन का सम्पादन अभिवादन के साथ करने का हूनर जिसने सीख लिया उसकी ज़िन्दगी में तरक्की की चक्की स्वत:ही रफ्तार पकड़ लेती है।आईने की तरह चमकती ज़िन्दगी वक्त की आंधी में स्याह चादर से ढक जाती है जिनके दम पर मुगालता पाले सफर पर निकला उसी ने आखरी सफर के मूस्तकिल मुकाम पर पहुंचने के पहले ही साथ छोड़ दिया परम्पराओं की परिपाटी मे अपनों के खातिर जीवन भर दर बदर होकर भी दर दर की ठोकर खाना नसीब बन जाता है।विधाता के कायनात में कर्म फल को भोगना निश्चित है।इसका दर्द झेलना ही प्रायश्चित है।बदलती दुनियां के सारे रीत रिवाज स्वार्थ की भट्ठी से तप कर ही बाहर निकलते हैं! जीवन के खूबसूरत लम्हें अपने पराए के भेद में ही सरकते है!
गुजर जाते हैं खूबसूरत लम्हे यूं ही मुसाफिर की तरह यादें वहीं खड़ी रही जाती है रास्तों की तरह! एक उम्र के बाद उस उम्र की बातें उम्र भर याद आती है! पर वह उम्र फिर उम्र भर नहीं आती
क्या जमाना आ गया है दोस्तो! वो भी एक समय था जब किसी को स्टेशन तक छोड़ने जाओ तो भीआंखें नम हो जाती थी!अब श्मशान में भी नहीं भीगती!जन्म और मृत्यू भी अब महंगी हो गई है!सीजेरियन के बिना कोई आता नहीं! और वेंटीलेटर के बिना कोई जाता नहीं! कैसे हो हो पायेगी अच्छे इन्सान की पहचान दोनों नकली हो गए है आंसू और मुस्कान! किसी का भी कोई नहीं है जब तक स्वार्थ की रवायत जारी है तभी तक रिश्तेदारी है।वर्ना आजकल तो मां बाप भी बेटों पर भारी है।बदलाव की बहती हवा में दुआ कर असर कम बद्दुआ की शापित दुर्गन्ध हर तरफ कहर मचा रही है।आह, सिसकन, तडपन, घर घर विघटन ,का खेल आजकल बात आम हो गई है।तबाही में गुजरती रात ज़िन्दगी का मुकाम बन गई है।जब तक उफान पर जीवन का मुकाम हासिल था मतलब परस्ती से टकराता साहिल था!मगर जैसै जैसे झंझावात करती दोपहरी के बाद ज़िन्दगी की शाम करीब आने लगी नसीब का पानी तेजी से नीचे उतरने लगा फिर तो हर कोई रौंदने का हूनर सीख लिया!जो कल तक उफान देखकर घबराते थे वहीं आज सामने खड़ा होकर मुस्कराते हैं।समय सबका बदलता है मगर बिरला ही भविष्य सोचकर सम्हलता है।आखरी सफर पर निकलना तो मजबूरी है साथ कौन रहेगा इसी पर मन्थन जरुरी है। साथ कुछ नहीं जायेगा वक्त को पहचानिए मिट्टी की काया को मिट्टी में ही दफन होना है।तभी तक सब अपने है जब तक जेब में रूपया है।सब्र व दयाभाव के साथ गरीब असहाय लाचार बिमार का सहयोग करे! गुजरती जिन्दगी के कुछ अनमोल पलों को मालिक के चरणों मे समर्पित कर हर्षित मन से वक्त को विसर्जित करें कुछ भी साथ नहीं जायेगा!
न कुछ लेकर आए हैं न कुछ लेकर जायेंगे!
आप रहम करना सीखें!
आप पर मालिक रहम करेगा!
सबका मालिक एक 🕉️ साईं राम🙏🏾🙏🏾