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सम्पादकीय
खत्म हो गई कहानी पर अफसाना अभी बाकी है!
एक रिश्ता है यादों का जिसे निभाना अभी बाकी है!!
यूं तो ज़िन्दगी का सफर हम सफ़र के बगैर किसी को भी जीना आसान नहीं है फिर भी प्रारब्ध से उपलब्ध उम्र को जहर बुझे आवरण में रहकर गुजारना मजबूरी बन जाता है।
वक्त का तकाजा देखिए जो कल तक बादशाही जीवन जी रहा था आज गुमनामी में सिसक रहा है। ज़िन्दगी है मगर पराई है! हर कदम पर जग हसाईं है।समय के समन्दर में उठने वाली लहरें आज भी उफान पर है मगर जिनका हसीन ख्वाब अकस्मात दम तोड कर पहुंच चुका हो श्मशान पर उनके सामने तो सिर्फ अंधेरा है!
रातें तो तड़पन में कट जाती मगर हर रोज असह्य दर्द देता सबेरा है!
यही तो जीवन की सच्चाई है!सारी दुनियां पराई है!
जब तक सांस है तभी तक सगाई है!
अवतरण दिवस के बाद जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही ख्वाबों की बस्ती बसाने लगता है इन्सान!
धन दौलत शोहरत के लिए तमाम तरह के जार कर्म भी कर डालता है!
ताकि आने वाला कल सुखमय रहे!
इतना ही नहीं कल के लिए आज को प्रदूषित कर भी हर्षित होता है!
मतलब की इस बस्ती में सस्ती लोक प्रियता की चाहत लिए आहत मन से धन उपार्जन के लिए मन को अशान्त कर लेता है!
लगातार असह्य बेदना भयानक दर्द सहकर भी अपनों की चिंता में रहकर जब सफर के आखरी पहर में पहुंचता हैतब एहसास होती है तन्हाई!
हर कदम पर तडपन, पल पल गुजरता अकेला पन, मनहूस मौसम का उदास मंजर खंजर सरीखे चुभता है!
भाग्य की डोर प्रारब्ध के आखरी छोर पर तब तक मजबूती से बंधी रहती है जब तक कायनाती इन्तजाम कर्ता के बनाए विधान में किराए की इस मकान को खाली करने का निर्देश जारी नहीं हो जाता है!
सब कुछ छोड़कर सबसे मुंह मोड़कर मुस्कराते श्मशान के शरण में ही मंजिल मुकाम पाती है!
न साथ धन दौलत जाती है! न शोहरत ख्याति साथ जाती है!
खुशहाली तभी तक साथ साथ चलती है जिसके जीवन में जीवन संगिनी ऊम्र भर साथ निभाती है!जिसके जीवन की नैया का पतवार मझधार में टूट गया उसके नसीब का मटका तो उसी दिन फूट गया! फिर बची उम्र में खुशी पराई हो जाती है?।
सब कुछ रहकर भी कुछ भी नहीं रह जाता है! खुद के घर में ही बदनसीबी से भरी जीवन भर की कमाई हो जाती है?
जिनके लिए जीवन भर अपने खुशहाली को दरकिनार कर सब कुछ किया वहीं तन्हाई भरी ज़िन्दगी में पराई मिल्कीयत बना देते हैं!जिस दिन सात जन्मों तक साथ रहने का वादा करने वाला बिछड़ जाता है!
उसी दिन से तन्हाई से सगाई निश्चित नियम बन जाती है?
शनै: शनै: गुजरता हर क्षण दारुण दर्द में समाहित करुण क्रन्दन करते चाहत भरी नजरों से अपनो को तलाशता है!
मगर यह केवल ख्वाब बनकर रह जाता है!हकीकत को स्पर्श करती कराहती दिन चर्या सहारा के बगैर सम्बेदनहीन मतलबी जहां में अनिश्चितता के दावानल में झुलस कर दम तोड देती है!
तन्हा सफर में कठिनाईयो का पहाड़ हौसला पश्त कर देता है
मगर आए हैं इस जहां में तो जीना ही पड़ेगा
ज़िन्दगी जहर है तो पीना ही पड़ेगा*!रफ्ता रफ्ता कटता जीवन का सफर एक दिन मंजिल पर ठहर ही जाता है जहां न कोई अपना होता है न पराया?
दूर खड़ी स्वागत करती मुस्कुराती है महा ठगिन माया!जब तक सांस है अपने पास अपनो का एहसास है वर्ना गमजदा जीवन में तो हर लम्हा उदास है!———??
महंगा क्यों लग रहे हैं तुझे ए जिन्दगी*!——
खर्चा सिर्फ सांसों का ही है हमारा*!!——–
सबका मालिक एक 🕉️ साई राम 🕉️🙏🏾🙏🏾