
भक्त और भगवान
श्री कृष्ण भगवान यह समाचार युधिष्ठिर आदि पांडवों को बताने के लिए दारुक को हस्तिनापुर भेज दिये।
दारूक द्वारा समाचार पाकर अर्जुन द्वारका चले आए। अर्जुन को यह समाचार सुनकर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा- जो वीर गदा और परिघ की मार सह लेते थे, वे एरका नाम घास की लाठी से कैसे मर गए। ऐसा संभव ही नहीं है।
जब अर्जुन द्वारका पहुंचे, तब मामा वसुदेव जी ने सारा समाचार दुखी होकर कह सुनाया। यह हृदय विदारक दारुण समाचार सुनकर अर्जुन और वसुदेव जी खूब विलाप किये। प्रात:काल वसुदेव जी की मृत्यु हो गई और उनका अंतिम संस्कार अर्जुन ने किया। उन्होंने प्रभास क्षेत्र में जाकर वहां का हृदय विदारक दृश्य देखा।
अर्जुन ने वहां प्रमुख लोगों का स्वयं अंतिम संस्कार किया और शेष लोगों का भी अंतिम संस्कार करवाया। सरकार के मंत्रियों और अन्य लोगों को सभा में बुलवा कर उन्होंने यह आदेश दिया कि सब लोग अब द्वारका छोड़कर बाहर चलें। अब यह समुद्र में डूब जाएगी।
अर्जुन का आदेश पाकर सभी नगर निवासी अपना सारा सामान लेकर और स्त्रियों और बच्चों को साथ लेकर अर्जुन के नेतृत्व में द्वारका से बाहर जाने के लिए तैयार हो गए। जब सब लोग बाहर निकल गए, तो उसके बाद द्वारका समुद्र में समा गई।
इस विशाल जनसमुदाय को एक अकेले बूढ़े अर्जुन के नेतृत्व में ले जाते हुए देखकर पंचनद प्रदेश अर्थात् पंजाब के बलवान लुटेरे डाकुओं ने सुंदरी स्त्रियों को और धन- दौलत को लूट लिया। उस समय अर्जुन ने रक्षा करने का भरसक प्रयास किया, परंतु वे सफल न हो सके। जब युद्ध करने के लिए अर्जुन तैयार हुए तो उनको दिव्यास्त्र भूल गए, याद नहीं आ रहे थे।
वे गांडीव धनुष पर डोरी बड़ी कठिनाई से चढ़ा पा रहे थे, पहले जैसा बल भुजाओं में नहीं रह गया था। उनके अक्षय बाण क्षीण हो गए और क्षण भर में समाप्त हो गए। इस कारण लुटेरे धन-जन का अपहरण और लूटपाट करके अपने साथ ले जाने में सफल हो गए।
यह अद्भुत और विस्मयकारी दुखद घटना देखकर अर्जुन अत्यंत खिन्न हो गए और इसे दैव की लीला मानकर संतोष कर लिए। अर्जुन अपने जीवन में कभी पराजय का मुख नहीं देखे थे।
आज पहली बार उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा और उनकी आंखों के सामने ही लुटेरों ने स्त्रियों और धन इत्यादि को लूट लिया। अर्जुन यह सब घटना असहाय होकर देखते रह गए।
नीलोत्पल दल श्याम शंख चक्र गदा धर पीतांबर धारी जनार्दन श्री कृष्ण भगवान की जय।