
✍️✍️✍️✍️✍️😔बुरा बाप😔 ✍️✍️✍️✍️✍️
,❣️कहते हैं कि शादी के बाद बेटी का घर बसेगा या नहीं ये काफी हद तक बेटी की माँ पर निर्भर करता है।
आदर्शवादी लोग मानते हैं कि कन्यादान के बाद बिटिया के जीवन में हस्तक्षेप करना गलत है।
लड़कियों में बचपन से ही सहनशीलता का विकास करना चाहिए ताकि आगे चलकर वे ससुराल की विषम परिस्थितियों का सामना कर सकें।
लेकिन इस विषय में मेरा अपना एक अलग ही नज़रिया है।
मेरी पढ़ी-लिखी बेटी को अगर सिर्फ़ घर संभालने के नाम पर अपने सपने और कैरियर को छोड़ना पड़े तो मुझे उससे ऐतराज है और मैं समझता हूँ कि हर माँ बाप को होना चाहिए।
कितनी रातों की नींद और चैन गंवा कर,
ना जाने कितनी ही चुनौतियों को पार करने के बाद कोई लड़की इस काबिल बनती है कि वो ज़माने की आँख में आँख मिला कर चल सके।
इस सुअवसर को मेरी बिटिया यूँ ही जाने देगी तो मुझे ऐतराज होगा,
चाहे उसका कन्यादान ही क्यों न कर दिया हो।
मैं नहीं सिखा पाऊँगा उसको बर्दाश्त करना एक ऐसे आदमी को जो उसका सम्मान न कर सके।
कैसे सिखाए कोई पिताह अपनी फूल सी बच्ची को कि पति की मार खाना सौभाग्य की बात है?
मैं तो सिखाउंगा कोई एक मारे तो तुम चार मारो।
हाँ, मैं बेटी का घर बिगाड़ने वाला बुरा बाप बनुगां,
लेकिन नहीं देख पाऊँगा उसको दहेज के लिए बेगुनाह सा लालच की आग में जलते हुए।
मैं विदा कर के भूल नहीं पाऊँगा ,
अक्सर उसका कुशल क्षेम पूछने आऊँगा ।
हर अच्छी-बुरी नज़र से,
ब्याह के बाद भी उसको बचाऊँगा।
बिटिया को मैं विरोध करना सिखाऊँगा।
ग़लत मतलब ग़लत होता है, यही बताऊँगा।
देवर हो,
जेठ हो,
या नंदोई,
पाक नज़र से देखेगा तभी तक होगा भाई।
ग़लत नज़र को नोचना सिखाऊँगां,
ढाल बनकर उसकी ब्याह के बाद भी खड़ा हो जाऊँगा
“डोली चढ़कर जाना और अर्थी पर आना”,
ऐसे कठिन शब्दों के जाल में उसको नहीं फसाऊँगा।
बिटिया मेरी पराया धन नहीं, कोई सामान नहीं जिसे गैरों को सौंप कर गंगा नहाऊँगा।
अनमोल है वो अनमोल ही रहेगी।
रुपए-पैसों से जहाँ इज़्ज़त मिले ऐसे घर में मैं अपनी बेटी नहीं ब्याहुँगा ।
औरत होना कोई अपराध नहीं,
खुल कर साँस लेना मैं अपनी बेटी को सिखाऊँगा।
मैं अपनी बेटी को अजनबी नहीं बना पाऊँगा ।
हर दुःख-दर्द में उसका साथ निभाऊँगा,
ज़्यादा से ज़्यादा एक बुरा बाप ही तो कहलाऊँगा…