
“मुस्कान….
आज भी बिरजू रोज की भांति अपनी कम्पनी में नौकरी के लिए अप डाउन करते हुए जैसे ही मेट्रो से उतरकर स्टेशन के बाहर आया तो रोज की तरह ही उसकी नजर अपने आप एक कोने में बैठे उस बुजुर्ग व्यक्ति की और चली गई थी वह उसे देखकर लगभग रोज की तरह ही मुस्करा रहे थे वह भी रोज की तरह उनके पास गया और मुस्कुराते हुए बोला … कैसे हो बाबा….
ऊपर वाले की दया से ठीक हूं बेटा…. पोपले मुंह से वह बुजुर्ग बोले और फिर वही मुस्कान ….
उसकी मुस्कान में ना जाने क्या कशिश थी कि बिरजू को वो बहुत आकर्षित करती थी उसने भी मुस्कुराते हुए रोज की तरह बीस रूपये का नोट उन बुजुर्ग की हथेली पर रख दिया ….. शायद उसे ऐसा लगता थाकी बीस रूपये के नोट में उन्हे पास के ढाबे से उनके लायक एक वक्त का खाना मिल जाता होगा बिरजू को उस बुजुर्ग की मुस्कराहट की इतनी आदत हो गई थी कि किसी भी कारण से यदि वह किसी दिन उन बुजुर्ग की मुस्कराहट नहीं देख पाता तो उसे पूरा दिन कुछ मिसिंग सा लगता
बार-बार वो याद करने की कोशिश करता कि आखिर उसने ये मुस्कान कहां देखी है
आज बिरजू के पिता का जन्मदिन था सुबह जैसे ही वह नहा धोकर जल्दी से अपने स्वर्गीय पिता की दीवार पर माला टंगी फोटो को माला हटाकर कपड़े से साफ करने लगा फोटो साफ करने के बाद उस फोटो पर माला चढ़ाकर उनकी तरफ देखकर हाथ जोड़कर खड़ा हुआ तो सहसा पिता की यादों का उफान आया और उसने महसूस किया कि उसके पिता की मुस्कान और उन मेट्रो स्टेशन वाले बुजुर्ग बाबा की मुस्कान में कितनी समानता है शायद इसीलिए उन बुजुर्ग बाबा की मुस्कान उसे बहुत भाती थी और इसी मुस्कान के चलते एक अनजान सा मगर बड़ा प्यारा सा रिश्ता कायम हो गया है था उन दोनों में….
एक सुंदर रचना….
दीप…🙏🙏🙏