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सरनेम बदल गया है या तुम फ़ेसबुक पर हो ही नहीं?
बहुत बार खोजा है, मगर तुम्हारे नाम वाले कोई दूसरे ही लोग नज़र आते है।
छोटी सी जो तस्वीर प्रोफ़ाइल में दिखती है, उसे देखकर लगता है की शायद तुम ही हो पर
मेरा ‘शायद’,
हाँ ‘तुम्ही’ हो में अभी तक बदल नहीं पाया है।
तुम्हारे शहर का भी नाम डालकर देखा है। तुम्हारे नाम वाले, तुम्हारे शहर में बहुत हो गये है।
स्कूल का नाम डालता हूँ या मोहल्ले का तो “not find” लिखा हुआ आ जाता है।
ये ज़ुकरबर्ग अगर देखता होता तो ज़रूर हंसता होगा, मेरी इन बेवकूफ़ियों पर।
कुछ हफ़्तों तक इंतज़ार भी कर के देखा है, इस उम्मीद मे कि अब की बार तुम्हारे नाम वाली कोई प्रोफाइल जब खोलूँगा, तो सीधे तुम नज़र आओगी,
पहले से थोड़ी मोटी।
पर ऐसा भी अब तक हुआ नहीं है। तुम भी मुझे ढ़ूढती हो क्या मेरे नाम से?
मैं तो आसानी से मिल जाता हूँ ,
है ना?
कई दोस्त है लिस्ट में, मगर एक वो नाम मिसिंग है।
“जिस दिन तुम मिल गई तो पता नहीं दिन में कितनी बार तुम्हारी प्रोफ़ाइल को खोल कर देखूंगा।”
“हाँ लेकिन बिना तुम्हें खबर हुए।
बिना तुम्हारे आज में ख़लल डाले।”
जाने कितने ही लोग ऐसे ही होंगें मेरी तरह, जो किसी नाम को खोजते होंगें, दिन में कई दफ़ा।
किसी को किसी का यूँ मिल जाना मुक़द्दर की बात है ✍✍✍
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किसी से दिल लग जाने को मोहब्बत नहीं कहते
जिसके बिना दिल न लगे उसे मोहब्बत कहते हैं….!!