
*धन तेरस क्यु मनाते हैं*
अभी सुबह जब मैं सो कर उठा तो मोबाइल धनतेरस की बधाइयों से भरे पड़े थे..!
लेख – ओमप्रकाश ओझा रतलामी मध्यप्रदेश
जिसमें अधिकांश मैसेज में माता लक्ष्मी एक धन कलश से सोने के सिक्के बरसाती हुई दिख रही थी.
जबकि, कुछेक मित्रों ने टेक्स्ट मैसेज के जरिए धन के देव कुबेर एवं माता लक्ष्मी के कृपा बरसाने की विश की थी.
उनके इतने सारे भक्ति मैसेज देखकर मन स्वतः ही भक्तिभाव में लीन हो गया.
साथ ही, थोड़ा दुख भी हुआ कि
लोग अपने पर्व-त्योहार पर उत्साहित तो रहते हैं लेकिन उसका प्रयोजन नहीं जान पाते.
लेकिन, वास्तव में गलती उनकी भी नहीं है क्योंकि लोग उसी परंपरा का पालन करते हैं जिसे वे जन्म से देखते आये हैं.
इस परंपरा से संबंधित मुझे एक कहानी याद आती है जो इस प्रकार है..!
एक गांव में एक अंधा आदमी और उसकी पत्नी रहा करते थे…
अब वो गांव था और लाइट वगैरह की ज्यादा व्यवस्था नहीं थी तो लालटेन की रोशनी में खाना बनाया जाया था.
लेकिन, एक छोटी सी समस्या यह थी कि जब उसकी पत्नी खाना बनाती थी तो खाना बनाते समय हमेशा एक बिल्ली किचेन में घुस आती थी और डिस्टर्ब करती थी…
जिसे बार बार भगाना पड़ता था.
इस समस्या से निपटने के लिए पत्नी ने एक उपाय निकाला कि…. उसने अपने पति को समझाया कि…
चूंकि, अंधा होने की वजह से वो बिल्ली को देख पाने अथवा उसे भगा पाने में असमर्थ है…
इसीलिए, जब वो किचेन में खाना बनाए तो उसका पति हाथ में एक डंडा लेकर किचेन के पास बैठे..
और, वो उस डंडे को जमीन को पटक कर “ठक-ठक” की आवाज निकालते रहे…
जिससे कि बिल्ली किचेन में न आने पाए.
समझाने के बाद उसका पति ऐसा ही करने लगा और उस ठक ठक की आवाज से डर कर बिल्ली का किचेन में आना बंद हो गया.
इस दौरान… घर के जो छोटे बच्चे थे वे बड़े हो गए और नए बच्चों ने भी जन्म लिया.
तो…. घर के बच्चों ने जन्म से ही देखा कि… जब घर में मम्मी खाना बनाती है तो पिता जी किचेन के पास बैठ कर डंडे से “ठक ठक” की आवाज निकालते हैं.
फिर, जब उन बच्चों की भी शादी हुई तो उन्होंने भी इस परंपरा को जारी रखी और जब उनकी पत्नियाँ खाना बनाती थी तो वो किचेन के पास बैठकर किसी डंडे से ठक-ठक की आवाज निकालते थे..!
कालांतर में उनके भी बच्चे हुए और उनमें से कुछ लोग अमेरिका , फ्रांस आदि में जाकर बस गए..
और, व्यस्तता की वजह से खाना बनाते समय उनके लिए किचेन के पास बैठ ठक ठक का आवाज निकालना संभव नहीं रह गया…
इसीलिए, उन्होंने एक ऐसी मशीन बनवा ली जो स्विच ऑन करने पर डंडे से ठक ठक की आवाज निकालते थे…
और, घर में खाना बनते समय वे इस मशीन को ऑन कर दिया करते थे ताकि उनकी पारिवारिक परंपरा कायम रह सके.
कहने का मतलब कि…. एक सामान्य सी घटना अनजाने में ही पारिवारिक परम्परा बन गई…
और, अगर समय रहते इसकी वैज्ञानिकता को समझा गया होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती…!
कुछ ऐसा ही…. हमारे धनतेरस के साथ है.
आज हम सनातन हिन्दुओं के धनतेरस का त्योहार है.
और, भले ही धनतेरस दीपावली के दो दिन पहले मनाया जाता है…
तथा, धनतेरस के नाम में… “धन” शब्द जुड़ा हुआ है..
लेकिन, धनतेरस का… धन की देवी माँ लक्ष्मी अथवा कुबेर से कोई संबंध नहीं है…!
धनतेरस के नाम में… धन से उतना ही संबंध है…
जितना कि, सोनिया गांधी अथवा राहुल गांधी का महात्मा गांधी से है.
क्योंकि, धनतेरस … माँ लक्ष्मी की पूजा के लिए नहीं मनाया जाता है..!
बल्कि… धनतेरस का ये महापर्व…. आरोग्य के देवता “धनवंतरी” की याद में मनाया जाता है.
तथा… धनतेरस शब्द में “धन” … माता लक्ष्मी के कारण नहीं बल्कि… “धनवंतरी” से लिया गया है.
और, चूंकि ये महापर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के “त्रयोदशी” को मनाया जाता है इसीलिए इसमें “तेरस” शब्द आता है.
ऐसा माना जाता है कि… समुद्र मंथन के दौरान आज के ही दिन आरोग्य के देवता “धनवंतरी” हाथ में अमृत भरे कलश लेकर प्रकट हुए थे.
उन्हीं के याद में आज हम हिन्दू सनातनधर्मी … धनतेरस का महापर्व मनाते हैं.
और, आज के दिन एक न एक पात्र (बर्तन) खरीदने की परंपरा है…
तथा, वो पात्र इस आस्था और विश्वास के साथ खरीदा जाता है कि… हमारे इस पात्र में भी अमृत की कुछ बूंदे मौजूद रहेंगी..
और, हम तथा हमारे परिवार आरोग्य के देवता भगवान धनवंतरी की कृपा से हमेशा स्वस्थ रहेंगे…
क्योंकि, सनातन हिन्दू संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान हमेशा ही धन से ऊपर माना जाता रहा है.
यह कहावत आज भी प्रचलित है कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’
इसलिए, दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है….जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है.
उसी किचेन के पास बैठ कर डंडे से ठक ठक की आवाज निकालने के तौर पर….आजकल अनजाने में लोग धनतेरस के उपलक्ष्य में.. कार, बाइक्स, स्टील की आलमारी वगैरह बहुतायत में खरीदते हैं…
लेकिन, शास्त्रानुसार… धनतेरस के दिन… लोहे का सामान, स्टील के बर्तन, प्लास्टिक की वस्तुएं एवं कोई धारदार सामान खरीदने से परहेज करना चाहिए.
क्योंकि…लोहे का संबंध शनि ग्रह से माना जाता है
और, स्टील को राहु ग्रह का प्रतीक माना जाता है.
उसी तरह.. प्लास्टिक, चीनी मिट्टी एवं कांच के सामान को भी राहु का प्रतीक मानकर उसे खरीदे जाने से वर्जित किया गया है.
इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण ये हो सकता है कि… लोहा, स्टील, प्लास्टिक , चीनी मिट्टी आदि (खासकर इन मेटल्स के बर्तन/प्लेट्स) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं.
साथ ही धारदार चीज से कोई इंज्युरी हो सकती है.
इसीलिए, इन्हें खरीदने को वर्जित किया गया होगा क्योंकि जब खरीदेंगे नहीं तो ऐसी चीजों का प्रयोग भी नहीं करेंगे और हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा.
खैर, आज धनतेरस के दिन… सोना, चांदी, तांबे, कांसे और पीतल के बर्तन खरीदने शुभ माने गए हैं.
और, इसका भी वही कारण मुझे समझ आता है कि… जहाँ सोना और चाँदी हमारे लिए एक रिजर्व धन के रूप में प्रयोग होता है…
वहीं… तांबे, कांसे और पीतल के बर्तन में खाना खाना वैज्ञानिक दृष्टि से स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है.
और, ये तो सामान्य समझ की बात है कि… हम जो बर्तन खरीदेंगे… वही तो प्रयोग करेंगे.
साथ ही साथ आज झाड़ू और भगवान लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा भी खरीदना शुभ माना जाता है.
झाड़ू इसीलिए शुभ माना जाता है क्योंकि… साफ सफाई तो झाड़ू से ही होनी है…
और, झाड़ू /साफ सफाई के बिना तो अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती.
वहीं… प्रतिमा खरीदने के पीछे का उद्देश्य ये होगा कि… घर की साफ सफाई धनतेरस से पहले ही पूरी कर लें..
तभी तो खरीदी गई प्रतिमा को उचित स्थान पर रख पाएंगे.
साथ ही… धनतेरस को ही प्रतिमा खरीद लेने से दीपावली के दिन गहमा-गहमी से भी बचा जा सकता है.
खैर… कारण जो हो लेकिन सभी का लक्ष्य एक ही है कि… लोगों को जागरूक करना एवं उन्हें अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रेरित करना…
तथा, वैसे काम/खरीदारी से परहेज करना जिनसे उनके स्वास्थ्य के प्रभावित होने की आशंका हो.
इसीलिए…. परंपरा का पालन अवश्य करना चाहिए लेकिन साथ ही यह भी बेहद जरूरी है कि हम ये जानें कि आखिर ये परम्परा है क्यों और उसका क्या वैज्ञानिक कारण है.
खैर… ज्ञान और वैज्ञानिकता से इतर आज सभी सनातनी हिन्दू मित्रों को हमारे महापर्व धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ…!
भगवान धनवंतरी… आपको एवं आपके परिवार को हमेशा स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त रखें.
*जय देव धनवंतरी…!!*
*जय महाकाल…!*
*जय श्री राधे कृष्णा जी*