✍🏾 सम्पादकीय ✍🏾
जनाब अब मेरी तो कलम भी कातिल ही लगने लगी है!
कमबख्त हर दर्द को यूं सरेआम लिखती है!!
क्या वक्त ठहर गया! क्या वक्त बदलेगा नहीं!जो आज हो रहा है उसका कल में अन्जाम का पता है क्या! मुझे नहीं लगता इसका जबाब किसी के पास होगा!
लेकिन इतिहास गवाह है जो आज है कल नहीं रहेगा! परिवर्तन तो सार्वभौम सत्य है! वह प्रकृति का अकाट्य नियम है!सदियों से संघर्ष के बाद उत्कर्ष की धारणा पुष्पित पल्लवित होती रही है।मानव समाज स्वार्थ के भावार्थ को परमार्थ का स्वरूप प्रदान कर इन्सानियत का खून करता रहा है।कभी यह देश रियासत के क्रुर बादशाहों की सियासत की चपेट में आकर कराहता था! कभी अंग्रेजियत के पांवों तले रौंदा जाता रहा!कीमती खजानों से लबालब भरा यह देश दुनियां में तब भी अपनी खुबसूरती के लिए विश्व बिख्यात था!सहिष्णुता कूट कूट कर भरा था! बसूधैव कुटुम्बकम के सूत्र का पालन हार था?अतिथि देवो भव: केनाम पर सबकुछ समर्पित कर आत्मसंतोष प्राप्त करता था। नतीजा निकला सैकड़ों साल गुलाम रहकर अपनी पुरातन धरोहर सनातनी संस्कृति का संहार करा लिया!आताताईयो की क्रूरता के चलते सम्वृध समाज विधर्मी बनकर वैमनस्यता की राह पर निकल पड़ा¡ भाई भाई में विभेद हो गया! कोई गया से गयासुद्दीन हो गया! तो कोई मोहन से मोहिनूद्दीन बन गया!जो कल तक अपने थे पराए हो गये?।वक्त का खेल देखिए देश बंट गया! परिवेश बट गया! मौका परस्त स्वार्थी सरपरस्त भरपूर फायदा उठाकर धर्म और मजहब के नाम पर अपनी सोची समझी रणनीति के तहत तफरका का ऐसा खेल किया की अब सम्पूर्ण समाज विषाक्त हो गया है।अन्ध भक्ति के चलन में कहीं मजहबी उन्माद तो कहीं धार्मिक आस्था के नाम पर जबरदस्त परिवाद ने समाज को विभक्त कर एक दुसरे से जबरदस्त नफरत पैदा करा दिया !तमाम लोग जानना चाहतें हैं! सबके मन में जिज्ञासा है! क्यों नहीं मुल्ला मौलवी ,पंडित ज्ञानी, आकाश, पाताल, हवा, पानी, का बंटवारा करा दिए! एक ही मालिक!,एक ही हवा!,एक ही पानी! एक ही आकाश!,एक ही पाताल!,तो धर्म और मजहब का फिर कैसा बवाल! यह सवाल आज तक अनुत्तरित है!हां मजहब व धर्म के नाम पर मलाई काटने वालों की दूकान धड़ल्ले से चल निकली है। कोई मन्दिर में भगवान खोज रहा है! कोई मस्जिद में अजान देकर रसूल का वसूल बता रहा है!मालिक की बनाई दुनियां में सभी को मिट्टी में मिल जाना है! कोई श्मशान में तो कोई कब्रिस्तान मे अपना वजूद खत्म कर देता है! फिर कौन कहां। जाता न मौलवी को पता न पंडित ज्ञान! इस मुद्दे पर पूरी तरह फेल है विज्ञान!कोई नहीं समझ सका उस पार ब्रह्म परमेश्वर का सम्विधान!आधुनिक ब्यवस्था में आस्था के नाम पर इन्सानियत को रौंदने वालों के चलते ही मानव समाज में आज टकराव की हवा जोर पकड़ रही है!खुद के स्वार्थ में परमार्थ को आधार बनाकर खुद के निहितार्थ यथार्थ को दर किनार कर जिस तरह का नया चलन शुरु हुआ है उसका परिणाम कभी भी सुखद नहीं होगा!वक्त सबको ज़बाब देगा! जो आज हो रहा है उसका परिणाम कल भुगतना है।मगर शहंशाह तो हमेशा से ही वर्तमान में ही अपना मान, सम्मान, स्वाभिमान, सुरक्षित ,संरक्षित, कर अपना विधान लागू करता है! न उसे न भूत की चिन्ता रहती! न भविष्य बात करता वह हमेशा मुगालते में रहता! मगर आज तक का तो यही इतिहास रहा है परिवर्तन शास्वत सत्य है।जो हो रहा है वह भी अच्छा है। जो होने वाला है वह भी अच्छा होगा,! जो हो गया वह भी अच्छा था! भगवान श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश में अर्जुन से यही तो कहा था! कौन अपना है! कौन पराया है! क्या लेकर आया है! क्या लेकर जायेगा!आत्मा अमर है!फिर किस बात का संकोच! सब उस मालिक की इच्छा है।कल किसने देखा। जो सामने है उस पर सोचो
समाज की सुरक्षा के लिए उनका बध जरूरी जिनसे समाज असुरक्षित है।वर्तमान इम्तिहान ले रहा है। आज देश का परिवेश उसी राह पर अग्रसर है। क्या सही है क्या ग़लत हो रहा सरासर है इस बहस बाधित है।देखिए आने वाले कल में क्या क्या होता है।
आप लोकतंत्र पडा बन्धक है फिर भी सरकार का हर कदम सार्थक है!——————??
सबका मालिक एक 🕉️ साई नाथ🙏🏿🙏🏿

