सम्पादकीय
✍🏿संतोष नारायण बरनवाल अमूल्यरत्न न्यूज सम्पादक ✍🏿
तुम्हारा सिर्फ हवाओं पर शक गया होगा!
चिराग खुद भी तो जल जल के थक गया होगा!!
जीवन की यात्रा में तमाम पड़ाव पार करने होते हैं!
कभी दुःख तो कभी सुख की दरिया में झंझावातों से खेलती भाग्य की सफ़ीना कहीं ना कहीं किनारा पा ही जाती है!
लेकीन जो वक्त इन लम्हों में अपना निशान छोड़ जाते हैं वह ज़िन्दगी भर रात के गहन निशा में जब लोग शुकून से गहरी निद्रा में होते हैं तब आशक्त जीवन बशर करने वाला अपने अतीत को याद कर ब्यतीत हुऐ पलों को चल चित्र के तरह चलते देखकर अश्कों से खुद को भिगोता है।
रोता है मगर साथ कोई नहीं होता है!
सिर्फ तन्हाई मुस्कराते हुए कहती हैं क्यों रे चाहत के चितेरे किसके लिए सारा जीवन व्यर्थ गवां कर अश्कों की वारिश में भीग रहा है?
समय के समन्दर में हलचल आज भी बरकरार है!
भाग्य के तैराक आज भी डूब उतरा रहे हैं!
मगर जिसने लहरों के साथ साथ तैरना सीख लिया वह ज़िन्दगी के सफर को जीतकर मुकाम हासिल कर लिया!
वर्ना जो इन्सान बोया उसको तो वह फसल काटना ही काटना है।
अपने कर्म का फल खुद को भोगना ही भोगना है।
ज़िन्दगी की जमीं पर कभी कभी समय की चंचल चपला अकस्मात घात कर देती है!जो सम्हल गया उस प्रतिघात को याद कर रास्ता बदल देता है!
जो माया की महादशा में शामिल होकर अपनी दुर्दशा का इन्तजाम खुद कर लेता है उसका आखरी सफर भी दुर्भाग्य के दो राहें से होकर गुजरता है!
इस जहां के रश्मों रिवाज में आज जो परिवर्तन हुआ है उसका नजारा तो हर तरफ देखने को मिल रहा है।
क्षण क्षण आधुनिक परिवेश बदल रहा है।वक्त की नजाकत देखिए हर कोई एक दुसरे से जल रहा है।
स्वार्थ की बाजार में बिना मोल बिक जाना आज के जमाना का दस्तूर बन गया है!
अपना तो तभी तक अपना है जब तक उसका पूरा नहीं होता सपना है।
वर्ना इस मतलबी संसार में अधिकार तो सबको मालूम है लेकिन सद विचार सबके गायब है!
मत सोच मुसाफिर रे राम करें सो होई?
को गुन गुनाकर दिल को तसल्ली देना तो आज के जमाने की मजबूरी है।
वक्त कब किसका कब बन बिगड़ जाए जानता कोई नही!
कल को किसी ने देखा नहीं!
फिर भी वर्षों सुख सम्पन्नता का ख्वाब लिए खिन्नता में रहकर उम्र गंवा रहा है आदमी!
साथ जाना कुछ नहीं है!
आज वक्त ने संवारा है तो कल आप से किनारा भी कर लेगा!
समय रहते चेत गए तो आखरी सफर में कोई न कोई रह गुज़र मिल ही जायेगा!
वर्ना जब आशक्ति के साथ ही विरक्ति का समय शुरु होगा उस समय शक्ति साथ छोड़ देगी!
कभी कभी मालिक इन्सान को ठोकरें देकर सम्हलने का संकेत करता हैं!
मगर मूढ़ मानव अहंकार के वशीभूत श्मशानी मसीहा अवघड़ दानी अवधूत के दरबार में जाने तक जार कर्म करता ही रहता है!
जो गुज़र गया वापस नहीं होगा !
जो चल रहा है वह खल रहा है!
कल का भरोसा नहीं !
आनी जानी दुनियां का दस्तूर सदियों से बदस्तूर जारी है।आज को जीएं कल क्या होगा किसे पता!
सुख के साथ ही हम साया बन कदम से कदम मिलाकर चल रही है दुर्दशा!
मालिक के दरबार में सबके कर्मों का हिसाब होता है!
किसी का आज कीसी का कल!
प्रति पल प्रभु स्मरण ही मृत्यु लोक से मुक्ति का एक मात्रा रास्ता है अगर आप की अटूट आस्था है।
सबका मालिक एक………..
गलतियां हम किए होंगे इन्सान हैं!
माफ करना प्रभु आप का काम है?
हम हैं राही……… भटकते रहे उम्र भर!
साथ दे दो तो शायद सुधर जायेंगे!!
🕉️साईराम🙏🏾🙏🏾

