
प्रिय आत्मीय स्वजन
शुभ दिवस
नानिच्छन्तो चेच्छन्तः परदाक्षिण्यसंयुताः !!
सुखदुःखे भजन्त्येतत् परेच्छापूर्वकर्म हि !!
अमूल्यरत्न न्यूज लेख – विनय कुमार पाण्डेय
भावार्थ :-
शास्त्र कहते हैं कि इस मृत्युलोक में जन्म लेने वाला कोई भी जीव दुःख का भोग नही करना चाहता है, किन्तु स्वार्थपरता के कारण दूसरे को प्रसन्न करने के विचार में फंस कर ही सुख – दुःख को भोगता है, वैसे विधि के विधानानुसार सुख दुःख आदि का भोग तो परेच्छा प्रारब्ध के कारण ही होता है, स्वदोष दिखने पर भी ऐसे प्रारब्ध का परिहार नही किया जा सकता है, क्योंकि प्रारब्ध में जो मनोवृत्ति को उत्पन्न करने का सामर्थ्य है उसे हटाया ही नही जा सकता है !! ॐश्री !!