
कलियुग_का_लक्ष्मण….. दो सगे भाइयों की कहानी
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” भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी (इतवार) का दिन है। आप सभी को आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।” छोटे भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।
” क्या छोटे, किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो ?”
” नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं ।”
” अपना मकान”, भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला।
“छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।”
” बस भैया “, कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया।
” अपना मकान” , ” बस भैया ” ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे।
भरत और लक्ष्मण दो सगे भाई और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब पन्द्रह साल। लक्ष्मण जब करीब सात साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी भरत पर थी। इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।
प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा नहीं किये। जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा।
पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। वैसे भी अब भरत के पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।
मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये।
वो बोली, ” देवर जी के लिये हमने क्या नहीं किया।
कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया।
कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं आये।
दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया,
दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से छिपा के रखी।”
इतवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी,
भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो गयी।
मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी।
मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा सुन्दर।
हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम।
उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन कहा,
” देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है।
दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से (portion) तैयार कराये हैं।
पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा।
और एक मैं हूँ,
जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।”
मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे जिन्हें उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका।
तभी पण्डित जी ने आवाज लगाई,
” हवन का समय हो रहा है,
मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।”
लक्ष्मण के दोस्तों ने कहा,
” पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।”
यह सुन लक्ष्मण बोले,
” इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं,
मेरे बड़े भाई भरत भी हैं।
आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत।
इस मकान के दो हिस्से हैं,
एक उनका और एक मेरा।”
हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा
, ” भैया, बिटिया की शादी की चिन्ता बिल्कुल न करना।
उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे ।”
पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे,
जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान न था ।
भरत जैसे आज भी
मिल जाते हैं इन्सान
पर लक्ष्मण जैसे बिरले ही
मिलते इस जहान..