रिश्वतखोरी के खिलाफ जंग का ऐलान सरकार का खास प्रयास हो रहा विफल
महराजगंज,, अभी तो रोज खबरों में कम से कम 2 किस्से रिश्वतखोरों के पकड़े जाने के होते हैं। 500 रुपये से लेकर 50 लाख रुपये तक कि रिश्वत और एक कॉन्स्टेबल से लेकर संस्थान के निदेशक तक की रिश्वतखोरी सामने आती है।
मतलब कोई भी वर्ग और क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। कुछ ही दिन पहले सीबीआई ने गेल (गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) के निदेशक रंगनाथन को 50 लाख से अधिक की रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया था। यह एक उदाहरण भर है।
इधर, करीब 2 साल पहले ग्लोबल सिविल सोसायटी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा किए गए एक सर्वे की रिपोर्ट- ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर-एशिया में यह सामने आया था कि रिश्वतखोरी की दर भारत में सबसे आगे (39 प्रतिशत) है।
भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, ऊपरी कमाई का लालच या रातों-रात अथाह सम्पत्ति खड़ी कर लेना सब इन्टरलॉक्ड हैं। ये एक ही लक्ष्य के अलग अलग शॉर्टकट्स हैं। वो रास्ता जिसकी मंजिल अंततः जेल या किसी न किसी सजा तक जाकर ही खत्म होती है। मुश्किल यह है कि यहां इन रास्तों पर चलने वालों के लिए अक्सर डामर और पैचेस का काम दूसरे करते हैं।
और इनमें घर-परिवार के या करीब के लोग भी शामिल होते हैं। गलत तरीके से कमाने वाला व्यक्ति अधिकांश मामलों में जिंदगी भर डर और झूठे ओवरकॉन्फिडेंस के साथ जीता है। डर पकड़े जाने का और झूठा ओवरकॉन्फिडेंस उस डर को छुपाने का। यही कारण था कि पीयूष जैन पुरानी बाइक पर ही चला करता था।
सरकारी दफ्तर और उसमें काम करने वाले लोगों को लेकर अक्सर हमारे मन में एक धारणा होती है कि वहां ‘कुछ’ दिए बिना काम नहीं होगा। जो व्यवस्था बनी हुई है सालों से वो ऐसी ही तस्वीर पेश करती है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि इस व्यवस्था को बढ़ावा कौन देता है? हम खुद।
जब हम जल्दी जाने के चक्कर में सिग्नल पर खड़े सिपाही के हाथ में 50 (या आज के समय मे 100, ज्यादातर यही रेट है) का नोट पकड़ाते हैं तो, लाइन में लगकर दर्शन करने की बजाय किसी भी तरह ‘जुगाड़’ करके वीआईपी दर्शन करते हैं तो, आप अपना काम पहले और थोड़े हेर-फेर के साथ करने के लिए फाइल पर वजन रखते हैं तो…इन सारे ‘तो’ के साथ जुड़ा है भ्रष्टाचार। बस इसी ‘तो’ पर विराम लगाने की जरूरत है जो एक झटके में नहीं होगा। भ्रष्टाचार अब हमारे देश में नमक के जैसा हो गया है। लोग इसका स्वादानुसार उपयोग करते हैं। कुछ कम खाते हैं तो कुछ ऊपर से एक्स्ट्रा डालकर।
इसलिए अगर इस पर लगाम लगाना है तो कड़े कानूनों के साथ आम जनता की नीयत को भी सुधरना होगा, ताकि टेबल के नीचे से या फाइल के ऊपर वजन रखने के लिए कहने को किसी की हिम्मत ही न पड़े। अगर इस समस्या को नकेल डाल साध लेते हैं तो एक अच्छी शुरुआत तो होगी ही।

