बदतमीजी की भी हद होती है ….. पता नहीं कोई शर्म लिहाज नहीं है इनमें ….डेढ़ वर्षीय मनु को गोद में उठाए सुधा बड़बड़ाती हुई बालकनी से अंदर कमरे में घुसी
अरे क्या हो गया…. और ये इतना गुस्सा किस बात पर हो रहा है मोहन ने अपनी पत्नी सुधा का तमतमाया चेहरा देख पूछा
वो सामने वाली सोसायटी में कोने का दूसरी मंजिल का फ्लैट है ना उसकी बालकनी में से एक बूढ़ा खूसट कई दिनों से मुझे घूर रहा है…. सुधा ने मुंह बनाकर कहा और गोद से नन्ही सी मनु को बैड पर लिटा दिया
ये बात सुनकर मोहन ने बाहर बालकनी में जाकर देखा तो सामने वाली सोसायटी में एक सफेद दाढ़ी वाला बूढ़ा अपनी बालकनी में टहलता हुआ दिखाई दिया
लगता है कोई नया परिवार अभी हाल में ही आया है मोहन अंदर कमरे में जाकर सुधा से कहा जो मनु को थपकियां देकर सुलाने का प्रयास कर रही थी
हां…यही कोई पंद्रह बीस दिन ही हुए हैं आए को
पर मुझे बालकनी में सिवाय उस बूढ़े के कोई और कभी नहीं दिखाई दिया जब देखो कभी कुर्सी डालकर बैठा मिलेगा तो कभी टहलता हुआ मगर नज़रें इधर हमारी बालकनी पर ही गड़ाए रखेगा… बूढ़ा खूसट…
अपनी सफेद बालों का अपनी उम्र का भी ख्याल नहीं है सुधा लगातार बड़बड़ा रही थी
हूह….इन फ्लैटों में बूढ़े बेचारे भी क्या करें बस ऊपर टंगे रहते हैं बालकनी में थोड़ा टहल लिया या बैठकर धूप सेंक ली… तुम बेकार ही बेचारे पर गुस्सा हो रही हो…
मोहन ने हँसते हुए सुधा को समझाने का प्रयास किया
बेचारा… अकेले या मनु को लेकर जब भी बालकनी में जाती हूं तो इस खूसट की नजरें इधर ही गड़ी मिलती है और …तो और… सुधा कहते कहते रुक गई
और … और क्या सुधा…
मत पूछो….कल शाम तो इसने हद ही कर दी ये मोबाइल लेकर खड़ा था और सच कहूं मुझे लगा इसने चुपके से मेरी फ़ोटो भी ली है
क्या ….तुमने ये कल ही क्यों नहीं बताया मुझे
ये सुनकर मोहन को भी उस बूढ़े की इस हरकत पर गुस्सा हो आया …ठहरों अभी जाता हूं और लेता हूं उस ठरकी की क्लास
रुकिए ….मैं भी चलती हूं उस बूढ़े की ऐसी अक्ल ठिकाने लगाऊँगी कि याद रखेगा … और यहां वहां झांकना ताकना हमेशा को भूल जाएगा
तभी कामवाली रमा वहां आ गई अपने काम निपटाने के लिए… अरे रमा …आ गई तू … जरा मनु का ख्याल रखना हम अभी आते है कहकर दोनों तेजी से नीचे उतरे और भन्नाए हुए से उस सोसायटी में रहनेवाले बूढ़े के फ्लैट की सीढ़ियां चढ़ गए
बेल बजाने पर दरवाज़ा बूढ़े ने ही खोला उन्हें देख बूढ़े के चेहरे पर मुस्कान तैर गई अरे आप …. आइए आइए अंदर आ जाइए…कमरे में नाममात्र उजाला था दीवार से लगे एक दीवान पर कोई लेटा था दीवान की बगल में दो कुर्सियां और दो मोढ़े रखे थे इससे पहले मोहन या सुधा कुछ कह पाते एक अस्फुट-सा स्त्री स्वर कमरे में उभरा जिसके शब्द मोहन और सुधा समझ नहीं पाए
बूढ़े ने कमरे की लाइट जला दी तो कमरे की हर चीज़ साफ साफ दिखने लगी
ये पूछ रही हैं की कौन आया है पिछले एक साल से अधरंग है इसे…. बेड पर ही रहती है…
कहते हुए बूढ़ा, बुढ़िया के करीब सिरहाने की तरफ बैठ गया तब तक मोहन और सुधा भी कुर्सियों पर बैठ चुके थे अरी लाजो …परी के मम्मी-पापा आए हैं
बुढ़िया ने लेटे लेटे गर्दन घुमा कर उन दोनों की तरफ देखा और अच्छा अच्छा कहा जिसे बूढ़ा ही समझ पाया बुढ़िया ने फिर कुछ पूछा शब्दों की जगह मुंह से जैसे फूंक-सी निकली रही थी
ये पूछ रही है परी को साथ नहीं लाए
सुधा और मोहन ने एक-दूजे की ओर देखा पर बोले नहीं
कल मैंने आपकी बेटी की फोटो मोबाइल पर इसे दिखाई तो बहुत खुश हुई बोली …ये तो बिल्कुल अपनी परी जैसी है बूढ़े ने भीगी हुई पलकों को साफ करते हुए कहा
और फिर बूढ़े ने बगल वाली दीवार की ओर इशारा करते हुए कहा …ये है हमारी परी…दीवार पर एक जोड़ा दो ढाई साल की बच्ची को उठाये मुस्करा रहा था
ये….ये आपके बहू-बेटा और पोती … सुधा के मुंह से बमुश्किल ये शब्द निकले
हां …हां … बिल्कुल ठीक पहचाना बिटिया तुमने …बूढ़े ने चहक कर कहा…है ना हमारी परी आपकी बिटिया की तरह …बूढ़े का चेहरा खिला हुआ था
मगर ये…. क्या ये अब आपके साथ नहीं रहते… मोहन ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा
इस पर बूढ़े का खिला हुआ चेहरा एकदम से मुरझा गया उसकी आंखें भीग गई …
बेटा… अब ये तीनों वहां चले गए जहां से कोई लौटकर नहीं आता…
मतलब …. सुधा और मोहन एकसाथ बोले
बेटा …. गांव से शहर आए थे सबकुछ बेचकर बेटे बहु और पोती के साथ आखिरी दिन बीताने के लिए मगर … ईश्वर को ना जाने क्या मंजूर है पहले तुम्हारी आंटी को अंधरंग और फिर एक एक्सीडेंट में बेटा बहु और हमारी परी …. हमने सबकुछ खो दिया …. जिंदगी बोझ लगती है मगर जीना तो पड़ता है ना ये मेरी पत्नी है मेरी जीवनसंगिनी इसे अकेले कैसे छोड़ दूं जी रहे थे कि यहां बेटे के फ्लैट में रहने आ गये उस किराए के मकान से … किस्मत देखो मुझे उसदिन बिटिया के हाथों मे हमारी परी दिखाई दी तो यूं लगा जैसे किसी ने रेगिस्तान में किसी प्यासे को पानी दे दिया हो जब मैंने तुम्हारी आंटी को बताया तो ये परी को देखने की जिद करने लगी तो मैंने तुम्हारे साथ उसकी फोटो खींचकर दिखाई मोबाइल फोन पर ये बहुत खुश हुई महीनों बाद इसके चेहरे पर मुस्कराहट आई थी … कहते हुए वह बूढ़ा चुप हो गया
तबतक मोहन और सुधा दोनों खड़े होकर चलने को हुए तो वह बुढ़िया कुछ बोली … दोनों ने पीछे मुड़कर देखा तो बूढ़ा बोला …पूछ रही है कहा जा रहे हो चाय ….
मां से कहिए … उनसे उनकी पोती का मिलन करवाने के लिए उनके बेटा बहु वापस आ रहे हैं दोनों ने साथ जोड़ते हुए कहा …
मोहन और सुधा ने देखा उस बूढ़े की आंखें भीगी हुई थी और दोनों हाथ आशीर्वाद देते हुए उठे हुए थे
एक सुंदर रचना….
.🙏🙏