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दुनिया को समझना कोई साधारण यात्रा नहीं है,ये चार पड़ावों से होकर निकलती है और हर पड़ाव आपको थोड़ा तोड़ता है, थोड़ा गढ़ता है, फिर आपको नया बनाकर छोड़ता है :-
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पहला दौर: उपहास —
यहीं लोग आपकी उड़ान पर सबसे पहले हँसते है जैसे आपके सपनों में छेद कर देने का प्रयास कर रहे हो लेकिन यही हँसी, भीतर एक हठ पैदा करती है – “अब दिखाना है!”
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दूसरा दौर: उपेक्षा —
अब वे आपको नज़रअंदाज़ करते है जैसे आपका अस्तित्व उनके लिए कोई मायने ही न रखता हो,यहीं समझ आता है कि आपकी राह, अकेली चलने की मांग करती है!-
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तीसरा दौर: अपमान और तिरस्कार —
ये दौर सबसे कड़वा होता है,जहाँ आपकी नीयत, आपकी मेहनत, सब पर उँगली उठती है,पर यही जगह आपको भीतर से लोहे की तरह मजबूत कर देती है!-
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चौथा दौर: दमन —
ये अंतिम चरण है जहाँ लोग आपकी प्रगति को रोकने की पूरी कोशिश करते है पर अजीब बात ये है कि जब वे आपको दबाने लगते है बस यही संकेत है कि आप ऊपर उठ चुके है!-
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और इन चारों दौर से गुजरने के बाद आप अचानक पाते है लोग नहीं बदले, आप बदल गए,अब आप दुनिया को नहीं,दुनिया आपको पहचानने लगती है!-
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और मै इन चारो दौर से गुजर चुकी हूँ — जिंदगी के ग्राफिक्स का उतार-चढ़ाव ना हो तो वैसे भी मजा कहाँ आता है जीने मे — वैसे ही इन चारो दौर के बिना स्ट्रगल करने मे भी मजा नहीं आएगा!-
तो जब भी आप टूट रहें हो बिखर रहें हो तब समझना की आप एक्चुअली “निखर” रहें हो!-🪻
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