*कलेक्ट्रेट में बाबुओं की कमी से प्रशासनिक कामकाज प्रभावित, पदोन्नत पाए कर्मचारी नए पद पर जाने के लिए उत्साहित*
गोरखपुर। कलेक्ट्रेट का प्रशासनिक ढांचा दिनोंदिन दबाव में बढ़ता जा रहा है। कुल 187 बाबुओं के पद सृजित होने के बावजूद वर्तमान में केवल 101 बाबू कार्यरत हैं। इनमें से दो प्रमुख प्रशासनिक पदों को छोड़कर 99 बाबुओं के भरोसे पूरे कलेक्ट्रेट का संचालन किया जा रहा है। इन्हीं 99 कर्मचारियों में से कई को तहसीलों में भेजा गया है, क्योंकि तहसीलें कलेक्ट्रेट का ही हिस्सा होता हैं, जिससे कलेक्ट्रेट मुख्यालय के भीतर भी कार्यबल की भारी कमी महसूस की जा रही है।
कलेक्ट्रेट प्रशासन में बाबुओं की तैनाती इस हद तक असंतुलित है कि एक-एक बाबू को दो से तीन पटलों का काम संभालना पड़ रहा है। कई महत्वपूर्ण पटलों पर बाबुओं की तैनाती नहीं होने के कारण कामकाज में देरी और अव्यवस्था देखने को मिल रही है। सूत्रों के अनुसार, जहां जरूरत सबसे अधिक है, वहां अनुभवहीन या अस्थायी रूप से तैनात बाबुओं के भरोसे काम चल रहा है, जबकि “जुगाड़ू” कहे जाने वाले कुछ बाबू मलाईदार माने जाने वाले पदों पर जमे हुए हैं।
इसी तरह सर्वे विभाग में 6 पद सृजित होने के बावजूद केवल 1 बाबू कार्यरत हैं। बाकी 5 पद सालों से खाली पड़े हैं। पिछले पांच माह से पदोन्नति प्राप्त किए बाबुओं की तैनाती भी अटकी हुई है। पदोन्नत बाबुओं की फाइल उच्चाधिकारियों के पास हस्ताक्षर के लिए टेबल पर अटकी हुई अब तक उस पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं हस्ताक्षर होने के बाद पदोन्नत पाए हुए बाबुओं को नए पटल पर जाने का मौका मिलेगा।
यही कारण है कि पदोन्नति पाने वाले बाबू अपने नए पद पर जाने की आस लगाए इंतजार कर रहे हैं। वहीं, पहले से तैनात कुछ कर्मचारी आशंकित हैं कि नए पदस्थापन होने पर उनकी आरामदायक स्थिति खतरे में पड़ सकती है। इस कारण वे अपने “मलाईदार” पदों से हटने के लिए तैयार नहीं दिखते।
प्रशासनिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की देरी न सिर्फ कलेक्ट्रेट के कार्यप्रणाली को प्रभावित कर रही है बल्कि कार्यक्षमता और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करती है। बाबुओं की कमी के कारण अनेक महत्वपूर्ण मामलों का निस्तारण समय पर नहीं हो पा रहा है। इसका सीधा असर जनता की समस्याओं पर पड़ रहा है जो समय पर समाधान की अपेक्षा लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचते हैं।
इस पूरे प्रकरण में खास बात यह है कि एक ओर कलेक्ट्रेट में केवल 99 बाबुओं पर पूरा कामकाज निर्भर है, वहीं दूसरी ओर तैनाती का इंतजार कर रहे कर्मचारियों का उत्साह भी धीरे-धीरे कम हो रहा है। यही कर्मचारी जब समय पर पदोन्नति पाते हैं तो उनकी कार्यक्षमता और जिम्मेदारी दोनों बढ़ती है, लेकिन देरी से इस भरोसे पर असर पड़ता है।
वहीं, प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही विभागीय पदस्थापन की प्रक्रिया पूरी कर दी जाएगी। फाइलें उच्च अधिकारियों के पास पहुंच चुकी हैं और अंतिम स्वीकृति की प्रतीक्षा है। उम्मीद है कि जल्दी ही बाबुओं की कमी को दूर करने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
फिलहाल 99 बाबुओं पर भारी जिम्मेदारी है, जो अपनी सीमित क्षमता में भी कलेक्ट्रेट के प्रशासनिक संचालन को बनाए रखने में जुटे हुए हैं। हालांकि, इनके ऊपर बढ़ते दबाव और संसाधनों की कमी प्रशासनिक कुशलता को प्रभावित कर रही है। अब देखना है कि कब उच्च स्तर की फाइलों में हस्ताक्षर होते हैं और कलेक्ट्रेट के प्रशासन के पहिए को गति मिल पाती है।

