
नीतीश के बाद खाली हो रही जमीन — कौन भरेगा शून्य? भाजपा या राजद?
बिहार की राजनीति में जब भी कोई शून्य पैदा होता है, वहाँ सत्ता की भूख से प्रेरित नई स्पर्धा जन्म लेती है। नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य के धुँधले होते ही जदयू में एक नेतृत्वहीनता का संकट गहरा गया है।
भाजपा और राजद, दोनों इस परिस्थिति को “राजनीतिक अवसर” के रूप में देख रहे हैं। लेकिन यह संघर्ष केवल सत्ता के लिए नहीं, विकास की दिशा, सामाजिक समरसता और आर्थिक पुनर्गठन के लिए भी होगा।
1. राजनीतिक दृष्टिकोण: सीटों का समीकरण और संगठन का खेल
# भाजपा को क्या लाभ हो सकता है?
* जदयू का कुर्मी वोट बैंक अगर भाजपा में शामिल होता है, तो भाजपा को पहली बार 30% से अधिक वोट शेयर छूने का अवसर मिलेगा।
* भाजपा जदयू के कमजोर होने के साथ एकल नेतृत्व वाले स्थिर शासन का नैरेटिव गढ़ सकती है — “अब बिहारी को डबल इंजन नहीं, सिंगल दमदार इंजन चाहिए।”
* भाजपा उपेंद्र कुशवाहा या अन्य पिछड़ी जातियों के नेताओं को शामिल कर लव-कुश समीकरण को आत्मसात कर सकती है।
# राजद को क्या लाभ हो सकता है?
* नीतीश का मुस्लिम-यादव के बीच समन्वयकारी प्रभाव हटने से MY समीकरण दोबारा से पूर्ण रूप से तेजस्वी यादव के नियंत्रण में आ सकता है।
* “सुशासन बाबू” के हटते ही तेजस्वी खुद को “विकास और युवाओं की राजनीति का प्रतीक” बताकर नया वोट खींच सकते हैं।
* जदयू के “वंचित-अतिपिछड़ा” आधार को राजद “सामाजिक न्याय” के नए विमर्श से जोड़ सकता है।
2. सामाजिक समीकरण: जातीय संतुलन और नया ध्रुवीकरण
भाजपा के लिए:
* भाजपा को अब तक अगड़ी जातियों का समर्थन मिला है, लेकिन जदयू के पतन से ओबीसी/कुर्मी वर्ग को जोड़ने का अवसर मिलेगा।
* जातीय जनगणना जैसे मुद्दों पर भाजपा को अब संवेदनशीलता दिखानी होगी, ताकि वह नीतीश के सामाजिक संतुलन की जगह भर सके।
* राजद के लिए:
* राजद का सदाबहार MY समीकरण अब EBC (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) और दलितों तक विस्तार पा सकता है यदि वह अपनी पुरानी ‘परिवारवाद’ वाली छवि से बाहर निकले।
* यदि तेजस्वी यादव जदयू की खाली जातीय जगह को ‘शिक्षा, रोजगार और ग्रामीण संकट’ से जोड़ते हैं, तो उन्हें दीर्घकालिक लाभ होगा।
3. आर्थिक दृष्टिकोण: केंद्र की मदद बनाम राज्य की आत्मनिर्भरता
* भाजपा के लिए:
* भाजपा “डबल इंजन सरकार” के तहत केंद्र से सीधे सहायता की पेशकश करेगी — बड़ी परियोजनाएँ, इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल बिहार।
* औद्योगिक निवेश, विशेषकर गंगा किनारे उद्योग हब और पूर्वांचल हाईवे जैसे प्रोजेक्ट भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा बन सकते हैं।
* राजद के लिए:
* तेजस्वी न्यूनतम वेतन, बेरोजगारी भत्ता और संविदा कर्मियों की स्थायीकरण जैसे आर्थिक वादों से युवा वर्ग को लुभा सकते हैं।
* उनकी आर्थिक नीति राज्य पर ज्यादा फोकस और “केंद्र के खिलाफ स्वाभिमान” की भाषा में होगी, जो ग्रामीण मतदाताओं में प्रभावशाली हो सकती है।
4. विकास की दृष्टि: केवल पुल और सड़क नहीं, मानवीय विकास का प्रश्न
भाजपा का विकास मॉडल:
* भाजपा के पास डिजिटल कनेक्टिविटी, बुलेट ट्रेन, AIIMS-इंस्टीट्यूट्स जैसे विकास के बड़े विज़न हैं।
* वह “स्टार्टअप बिहार” और शहरीकरण के माध्यम से युवा मतदाताओं को जोड़ेगी।
राजद का विकास मॉडल:
* राजद की प्राथमिकता शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण रोजगार होगी — जहाँ तेजस्वी यादव खुद को “जनता का बेटा” बताते हैं।
* गरीबों के लिए सस्ती बिजली, राशन, कृषि अनुदान जैसे मुद्दों पर ज़ोर होगा — विकास का “समावेशी संस्करण”।
* कौन बनेगा भविष्य का बिहार?
नीतीश कुमार के बाद जदयू का पतन राजद और भाजपा के लिए एक नई राजनीतिक स्पर्धा का अवसर है।
पर यह केवल संख्या या गठबंधन का खेल नहीं रहेगा, बल्कि यह प्रतिस्पर्धा होगी:
* संविधान बनाम कॉरपोरेट नैरेटिव
* युवा रोजगार बनाम डिजिटल विकास
* सामाजिक न्याय बनाम धार्मिक ध्रुवीकरण
अगर भाजपा “संख्याबल और केंद्रीय सहयोग” के बल पर आगे बढ़ेगी, तो राजद “संवेदनशील नेतृत्व और ज़मीनी जुड़ाव” के दम पर।