
मेरा नाम शिवम् राज गोरखपुरी है। मुझे गांव के घर से काफी दूर की बड़ी सिटी में नई #नौकरी मिली थी। इस शहर में किराए का घर लेकर रहने लगा। मेरे पड़ोस में एक घर था जिसमें एक बुजुर्ग जोड़ा रहता था। दोनों बिल्कुल अकेले थे, ना कोई #बेटा, ना #बेटी, ना नाती-नातिन, ना पोते-पोतियाँ.. यानी कि #संयुक्तपरिवार नहीं था।
मैं एक #संयुक्तपरिवार का सदस्य था, इसलिए मुझे अक्सर उनके बारे में विचार आते रहते थे। मुझे देखकर बुरा लगता था कि इतनी उम्र होने के बाद भी उनकी #देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
जब मैं सुबह #ऑफिस के लिए निकलता था, तो देखता था कि दादी जी अपने कपकपाते हुए हाथों से दादा जी को #चाय देती थीं। वैसे ही कपकपाते हाथों में कप लिए दादा जी चाय पीते थे। वहां रहते हुए कुछ दिन होने के बाद मुझे पता चला कि ये दोनों मिलजुल कर धीरे-धीरे घर के सारे काम करते थे। कोई भी उनसे जाकर #बात नहीं करता था। इतने दिनों में मैंने उनकी आवाज तक नहीं सुनी थी। जब मैं शाम को ऑफिस से घर आता था, तब दोनों को घर के आंगन में बैठा पाता था और उनके चेहरों पर साफ #थकान दिखाई देती थी।
मेरा मन कई बार करता कि उनसे जाकर #बात करूं, लेकिन फिर किसी वजह से मेरे पैर वहीं थम जाते। जब भी उन्हें देखता था, मुझे मेरे #दादाजी और #दादीजी की बहुत याद आती, और मैं घर पर फोन करके उनसे #बात कर लिया करता।
एक #रविवार जब मुझे ऑफिस में छुट्टी थी, तो मैंने देखा दादी जी काम कर रही थीं, लेकिन उन्हें रोज़ की अपेक्षा आज काम करने में कुछ ज्यादा ही #तकलीफ हो रही थी। मैंने उनके पास जाकर पूछा कि दादी जी आपकी #तबीयत तो ठीक है ना? क्या मैं आपकी कोई #मदद कर सकता हूं? उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी! मैंने दोबारा उनसे पूछा, बताइए दादी जी, मैं क्या करूं आपके लिए? उन्होंने फिर भी कोई उत्तर नहीं दिया! मुझे काफी #आश्चर्य हुआ!
कुछ मिनटों बाद दादा जी वहां आए, और वह भी कुछ नहीं बोले। मैंने ही बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, मुझे लगता है कि दादी जी की तबीयत खराब है, इसलिए मैं यहां आया हूँ। मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ, बताइए मैं कैसे आपकी #मदद कर सकता हूं?
दादाजी इशारों से मुझसे बातें करने लगे। उन्होंने इशारों से मुझे बताया कि दादी जी #सुन और #बोल नहीं सकतीं! उन्होंने यह भी बताया कि वह खुद भी बोल नहीं सकते, पर सुन सकते हैं और मेरी बात समझ सकते हैं।
उन्होंने इशारों से दादी से कुछ कहा, और दादी ने मेरी तरफ देखकर मेरे माथे पर #हाथ फेरा। मैं उन दोनों की तरफ देखते ही रहा और न जाने कब मेरे आंखों से #आंसू बहने लगे…
उस दिन के बाद जब भी मुझे समय मिलता, मैं उनके पास चला जाता। वह मुझ पर बहुत #प्यार बरसाते। अब तो मुझे उनके इशारे की #मीठी भाषा भी बहुत अच्छे से समझ में आने लगी थी।
एक दिन मैंने दादा जी से पूछा कि वह अकेले क्यों रहते हैं? क्या उन्हें कोई #औलाद नहीं है? दादा जी ने दादी को इशारे से समझाया कि मैंने उनसे क्या पूछा। फिर दोनों मेरा हाथ पकड़कर मुझे आंगन में ले आए और अपने #आंसू पोंछते हुए उंगली का इशारा करते हुए एक #साइकिल मुझे दिखाई।
साइकिल को देखकर मैं समझ गया कि उनके परिवार वाले उन्हें छोड़कर कहीं जा चुके हैं, और अब उनके हिस्से में केवल #यादें ही बची हैं।
उन्हें रोता हुआ देखकर मैं भावुक हो गया और मैंने दोनों को गले से लगा लिया। उन्होंने मेरे ऊपर अपने सीने में सालों से बंद #प्यार के बादलों से इतनी #प्यार की बारिश कर दी कि मैं पूरी तरह उसमें भीग गया!
*दोस्तों, इस कहानी से कई लोग कनेक्ट कर पाएंगे, क्योंकि यह सिर्फ एक #कहानी नहीं है, बल्कि कई बुजुर्गों की सच्ची #दास्तां है।*