
✍️विवेकानंद सिंह ठाकुर
18 दिन के युद्ध ने, द्रौपदी की उम्र को 80 वर्ष जैसा कर दिया था…
शारीरिक रूप से भी और मानसिक रूप से भी।
शहर में चारों तरफ़ विधवाओं का बाहुल्य था..
पुरुष इक्का-दुक्का ही दिखाई पड़ता था।
अनाथ बच्चे घूमते दिखाई पड़ते थे और उन सबकी वह महारानी द्रौपदी हस्तिनापुर के महल में निश्चेष्ट बैठी हुई शून्य को निहार रही थी।
तभी श्रीकृष्ण कक्ष में दाखिल होते हैं!
द्रौपदी कृष्ण को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट जाती है,
कृष्ण उसके सिर को सहलाते रहते हैं
और रोने देते हैं।
थोड़ी देर में उसे खुद से अलग करके समीप के पलंग पर बैठा देते हैं।
द्रौपदी : यह क्या हो गया सखा ?
ऐसा तो मैंने नहीं सोचा था।
कृष्ण : नियति बहुत क्रूर होती है
पांचाली………….
वह हमारे सोचने के अनुरूप नहीं चलती !
वह हमारे कर्मों को परिणामों में बदल देती है…………..
तुम प्रतिशोध लेना चाहती थी और तुम सफल हुई, द्रौपदी !
तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हुआ………….
सिर्फ दुर्योधन और दुशासन ही नहीं,
सारे कौरव समाप्त हो गए।
तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए !
द्रोपदी: सखा,
तुम मेरे घावों को सहलाने आए हो या उन पर नमक छिड़कने के लिए ?
कृष्ण : नहीं द्रौपदी………….
मैं तो तुम्हें वास्तविकता से अवगत कराने के लिए आया हूँ।
हमारे कर्मों के परिणाम को हम दूर तक नहीं देख पाते हैं और जब वे समक्ष होते हैं तो हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता।
द्रौपदी : तो क्या, इस युद्ध के लिए पूर्ण रूप से मैं ही उत्तरदायी हूँ कृष्ण ?
कृष्ण : *नहीं, द्रौपदी तुम स्वयं को इतना महत्वपूर्ण मत समझो…लेकिन,तुम अपने कर्मों में थोड़ी सी दूरदर्शिता रखती तो, स्वयं इतना कष्ट कभी नहीं पाती।
द्रोपदी: मैं क्या कर सकती थी कृष्ण ?
कृष्ण:- तुम बहुत कुछ कर सकती थी,
जब तुम्हारा स्वयंवर हुआ……………
तब तुम कर्ण को अपमानित नहीं करती और उसे प्रतियोगिता में भाग लेने का एक अवसर देती तो, शायद परिणाम कुछ और होते !
इसके बाद जब कुंती ने तुम्हें पाँच पतियों की पत्नी बनने का आदेश दिया…………..
तब तुम उसे स्वीकार नहीं करती तो भी, परिणाम कुछ और होते।
और……
उसके बाद तुमने अपने महल में दुर्योधन को अपमानित किया….
कि अंधों के पुत्र अंधे होते हैं।
वह नहीं कहती तो, तुम्हारा चीर हरण नहीं होता………
तब भी शायद, परिस्थितियाँ कुछ और होती।
हमारे शब्द भी हमारे कर्म होते है द्रौपदी और हमें अपने हर शब्द को बोलने से पहले तोलना बहुत ज़रूरी होता है,अन्यथा
उसके दुष्परिणाम सिर्फ़ स्वयं को ही नहीं…………..
अपने पूरे परिवेश को दुखी करते रहते हैं।
संसार में केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसका
“ज़हर” उसके “दाँतों” में नहीं, “शब्दों ” में होता है।
इसलिए शब्दों का प्रयोग सोच समझकर करें।
ऐसे शब्द का प्रयोग कीजिये जिससे किसी की भावना को ठेस ना पहुँचे।
🌹🙏जय जय श्री कृष्ण🙏🌹