
*दीपावली पर्व पर सूरन की सब्जी का महत्व*
दीपावली पर्व की अवधि में विशेषतः
उत्तर भारतीयों के घरों में सूरन की सब्जी अवश्य बनती है,,,
सूरन को विभिन्न नामों से जाना जाता है।
इसे कहीं कहीं जिमीकन्द,
ओल,
कांद आदि नामों से जाना जाता है।
आजकल तो बाजार में हाईब्रीड सूरन ही आ रहा है।
कभी-कभी देशी वाला सूरन भी देखने को मिल जाता है !
दीपावली के 3-4 दिन पहले से ही बाजार में हर सब्जी वाला ( विशेषतः उत्तर भारत में) इसे जरूर रखता है !
और मजे की बात है कि इसकी लाइफ भी बहुत होती है !
बचपन में ये सब्जी फूटी आँख भी नही सुहाती थी।
लेकिन चूँकि यही सब्जी बनती थी तो झख मारकर इसे खाना ही पड़ता था।
तब मै सोचता था कि पापा लोग कितने कंजूस हैं जो आज त्यौहार के दिन भी ये खुजली वाली सब्जी खिला रहे हैं।
दादी माँ बोलती थीं जो आज के दिन सूरन नहीं खायेगा
अगले जन्म में छछुंदर का जन्म लेगा।
यही सोच कर अनवरत खाये जा रहे है कि छछुंदर न बन जाये।
खाने के बाद हर कोई यह जरूर पूछता था कि तुम्हारा गला तो नहीं काट रहा है ?
बड़े हुए तब सूरन की उपयोगिता समझ में आई-
सब्जियो में सूरन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है और अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम देशी सूरन की सब्जी खा ले तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में महीनों फास्फोरस की कमी नही होगी।
यह बवासीर से लेकर कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों से बचाए रखता है।
इसमें फाइबर,
विटामिन सी,
विटामिन बी6,
विटामिन बी1 और फोलिक एसिड होता है।
साथ ही इसमें पोटेशियम,
आयरन,
मैग्नीशियम और कैल्शियम भी पाया जाता है।
मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचीए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी।
धन्य हों हमारे पूर्वज जिन्होंने विज्ञान को हमारी परम्पराओं,
रीतियों और संस्कारों में पिरो दिया🙏🏻
पूर्वजों को शत -शत नमन🙏🙏
शैलेंद्र त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश पुलिस