
,,अलग
सासु माँ मुझे अपनी बेटियों से भी अधिक मान सम्मान देती हैं , मेरे बच्चों को बेहद प्यार करती हैं, लोक दिखावे के लिए वह अपनी बेटियों को, बड़ी बहू को भी प्यार करती हैं ।
अक्सर मुझे समझाते हुए कहती ,” बहू रानी ! तुम्हारी ननदें और जेठानी चार दिन के लिए आतीं हैं इसलिए उनका आदर भाव करना पड़ता है लेकिन तुम्हें तो मेरे साथ ही रहना है , इसलिए तुम्हारे जैसी ना कोई है और ना हो सकती ।”
” लेकिन वें सभी आकर मस्ती करती हैं और मैं काम में लगी रहूँ , मुझसे नहीं होगा ? ” मेरा यही ज़बाब होता ।
” तुम तब दो चार दिन के लिए अपने मायके मस्ती कर आया करो ” वें प्यार से कहती ।
” ये क्या बात हुई ,कि वें यहाँ आएँ और मैं मायके चली जाऊँ ? आप उन्हें भी तो कह सकती हो कि अब इसको आराम दो । लेकिन आप उनको काम नहीं बता सकती हो ।”
“बहू रानी ! हमारा काम है , हमें ही करना है , चार दिन उन्होंने कर भी लिया , फिर भी तो हमें ही करना है , थोड़ा बहुत तो वें करवा ही देती हैं । ”
” आप उन्हें नहीं बोल सकती हैं ?”
बिटिया ! मैं तो तुम्हें भी नहीं बोलती ; तुम भी मत किया करो । ”
बात बढ़ते – बढ़ते ‘ अलग चूल्हे करने ‘ पर आ गई ।
मैंने कहा ,” मुझे तो अलग कर दीजिए , बहुत दिन साथ
रहकर पिस ली ,अब और नहीं ।”
” बहू रानी ! किससे अलग होना चाहती है , तुम और तुम्हारे बच्चों को हम जान से ज्यादा प्यार करते हैं ,बेटे की हम हाथों छाँव करते हैं ।
हम मियाँ – बीबी दिन भर तुम्हारे ही बारे में सोचते हैं , तुम्हारे लिए ही लगे रहते हैं।”
” मैं अब अलग होकर ही अन्न – जल गृहण करुँगी ।”
मैंने ऊँची आवाज़ में कहा ।
वें मुझे भूखी-प्यासी नहीं देख सकती थी इसलिए उन्होंने मुझे अलग कर दिया ।
उनके लाडले ने मुझसे कहा ,” तुम्हारी जिद़ अलग होने की है ,तो अलग, सबसे अलग रहो । मैं और मेरे बच्चे तो माँ के हाथ का ही खाना खाएँगे ।”
सात – आठ दिन तक सासु माँ ने सबका खाना बनाया लेकिन मैंने अपना बना खाना ही खाया ।
‘ मेरा अलग होना ‘ लोगों से छिपाने का प्रयास करती रही । सोचा कि मैं मान जाऊँगी , लेकिन मैं टस से मस ना हुई ।
अचानक एक रात मैंने देखा सासु माँ को बुखार चढ़ गया , वें उठ नहीं सकी और मुझसे सदा के लिए खुद ही अलग होकर चली गई ।
आँगन में सासु माँ का मृत शरीर पड़ा है , मैं पतिदेव के गले से लगकर विलाप करने लगी तो इन्होंने चीखकर मुझे अपने से अलग करते हुए कहा , ” अब किसलिए नाटक करती हो , तुम ही तो चाहती थी अलग रहना ।
कहती थी , ” माँ-बाबूजी के साथ नहीं रहुँगी , अब तो बिल्कुल ही अलग करके चली गई है , रहो खुश होकर
।
महलों की रानी बन कर रह रही थी , अब धक्के खाना घर,घेर और खेत में दिन रात । ”
” मैंने ऐसे अलग होने का तो कभी सोचा ही नहीं था । प्लीज़ मेरी माँ को ठीक करवा दो , हम उनके बिना नहीं रह सकते हैं ।
मैं उनका साहचर्य चाहती हूँ ,उनके सच्चे प्यार का आभार प्रकट करना चाहतीं हूँ ,अपनी गलती के लिए माफ़ी माँगना चाहती हूँ ।”
मैं फिर ननद के गले लगकर विलाप करने लगी ।
उसने भी मुझे अलग हटा दिया । मैं तड़पकर माँजी की ओर बढ़ी तो आँखें खुल गई सपना टुट गया गलती पता चल गई। अभी तक आँखों से आँसू बह रहे थे ।
घड़ी देखी सुबह के साढ़े पाँच बज़े थे , माँजी के कमरे की ओर दौड़ी , वें दूध बिलोने के लिए रई लगा रही थी । मैंने उनके पैर छुए , और गले से चिपट गई । उन्होंने आश्चर्य से मेरी ओर देखा और खूब आशीर्वाद दिया और गले से और अधिक चिपटा लिया ।