शुख दुख है ,जीवन के दो पहलू
महाराजगंज, गायत्री शक्तिपीठ महराजगंज के संदेश में मंगरु गुप्ता ने कहा कि हम व्यर्थ ही दुखो में रोते हैं।अपने भाग्य व ईश्वर को कोसते है।दुःख प्रकृति माता की वह प्रक्रिया है, ईश्वर का वह वरदान है, जिसमे हम सचेष्ट होते है, जीवन की शक्तिओ को उपयोग में लाते है और इससे हमारे सुखद तथा उज्ज्वल भविष्य का निर्माण होता है।
सुख को हम प्यार कहते हैं, किन्तु दुःख में रोते हैं; चिंता शोक में डूब जाते हैं।यह हमारे एकांगी दृष्टिकोण और अज्ञान का परिणाम है।सुख की तरह ही दुख भी जीवन का अभिन्न पहलू है।यदि दुख न रहे,तो हम सुख से ऊब जाएंगे।सुख के मक़दक नशे में एकदूसरे का नाश कर लेंगें।इतना ही नही,हम सुख का मूल्य ही नही समझ सकेंगे।रात्रि के अस्तित्व मे ही दिन का जीवन है।रात्रि न हो तो दिन महत्वहीन हो जाएगा।जिस तरह रात और दिन एक ही काल के दो पहलू हैं, उसी तरह सूख और दुख भी हमारे जीवन के दो पहलू हैं।जिस तरह रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती है, उसी तरह दुःख के बाद सुख और सुख के बाद दुःख का क्रम चलता ही रहता है।आवश्यकता इस बात की है कि सुख की तरह ही हम दुःख का भी स्वागत कर।उसमें शांतमना, स्थिर,दृढ़ रहकर अपने कर्तव्य में लगे रहें।स्मरण रखिये की जीवन का शाश्वत मूल्यों को समझ लेने पर,कर्तव्य में जुट जाने पर कठिनाई,दुःख नाम की कोई वस्तु शेष नही रहती।

