बाइकर जिसने गैस स्टेशन पर $10,000 में एक लड़की को खरीदा — लेकिन उसके लिए आज़ादी के लिए।
वो बाइकर रात के 3 बजे एक गैस स्टेशन के बाथरूम में तीन आदमियों को एक किशोरी लड़की पर बोली लगाते हुए सुन रहा था — जैसे वो कोई जानवर हो।
मैं I-70 हाईवे से कान्सास सिटी के पास गैस और कॉफी के लिए रुका था।
बारह घंटे लगातार बाइक चलाने के बाद पूरी तरह थका हुआ था।
तभी मैंने उन्हें बाथरूम की दीवार के उस पार सुना —
तीन आवाज़ें, पैसों पर बहस कर रही थीं।
फिर एक चौथी आवाज़ — लड़की की।
कमज़ोर, डरी हुई, रोती हुई।
वो कह रही थी, “कृपया, मुझे जाने दो। मेरी माँ मुझे ढूँढ रही होगी। उसे फोन करने दो, वो पैसे दे देगी।”
एक आदमी बोला,
> “डेढ़ हज़ार। ये खराब माल है। हाथों पर सुई के निशान हैं। कोई नशेड़ी को नहीं चाहता।”
दूसरा बोला,
> “दो हज़ार। जवान है। चौदह–पंद्रह साल से ज़्यादा नहीं। अभी मुनाफ़ा कमा सकती है।”
मैं सिंक के पास जम गया।
रक्त जैसे ठंडा पड़ गया।
और फिर मैंने वो सुना — थप्पड़ की आवाज़।
उन्होंने उस पर हाथ उठाया था।
तीसरे आदमी की आवाज़ आई — गहरी, डरावनी।
> “पाँच हज़ार। आख़िरी ऑफ़र। मैं इसे डेनवर ले जाऊँगा। सुबह तक काम पर लगा दूँगा। एक महीने में पैसे वसूल हो जाएँगे।”
दरवाज़ा खुला। वो उसे बाहर ले जा रहे थे।
तभी मैंने उसका चेहरा देखा —
सूजा हुआ, रोता हुआ, आँखों में मौत सी ख़ामोशी।
वो मुझे देखती रही, होंठों से बोली — “Help me.” (मदद करो)
मेरे पास सिर्फ़ सात सेकंड थे —
या तो इस लड़की की जान बचाऊँ, या खुद मर जाऊँ।
मैंने वॉलेट निकाला, उनके सामने जाकर कहा —
> “अभी के अभी, दस हज़ार डॉलर नकद दूँगा।”
पूरा गैस स्टेशन ठहर गया।
तीनों ने डरकर अपनी बंदूकें निकाल लीं।
मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही किसी ने मेरे सिर पर बंदूक का बट मारा।
अंधेरा छा गया।
शायद कुछ सेकंड ही बीते, मगर लगा जैसे सदियाँ गुजर गईं।
जब होश आया, सिर फट रहा था, खून बह रहा था।
तीनों उसे दरवाज़े की तरफ़ खींच रहे थे।
वो अब तड़प रही थी, लड़ रही थी, लेकिन उसकी आँखों में अब उम्मीद की एक चमक थी।
मैंने दाँत भींचे, ज़मीन से उठने की कोशिश की।
वॉलेट अब भी मेरे हाथ में था, नोट बाहर निकले हुए।
“हे!” मैंने गुर्राया।
डेनवर वाला आदमी मुड़ा — बंदूक सीधे मेरी छाती पर।
> “नीचे रहो, हीरो। ये तुम्हारा मामला नहीं है।”
लेकिन अब ये मेरा ही मामला था।
मैं ऐसे लोगों को जानता था —
शिकारियों को, जो सिर्फ़ कमज़ोरों पर हावी होते हैं,
लेकिन जब कोई सामने से डट जाए, तो डर जाते हैं।
मैंने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई —
काउंटर के पीछे से क्लर्क फोन पर था, शायद 911 पर।
अच्छा। समय मेरे पक्ष में था।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा,
> “दस हज़ार डॉलर, बिना टैक्स के। तुम लोग पैसे लेकर चले जाओ, मैं लड़की को ले जाऊँ। या फिर पुलिस आए और तुम्हें फेडरल केस में फँसा दे।”
पहला आदमी हिचकिचाया।
उसकी नज़र पैसों पर टिक गई।
लड़की ने कहा, काँपती आवाज़ में —
> “कृपया… उसकी बात मान लो।”
डेनवर वाला गुर्राया,
> “वो ब्लफ़ कर रहा है। कोई इतना कैश लेकर नहीं चलता।”
मैंने वॉलेट फेंक दिया।
नोट बिखर गए — ज्यादातर सौ-सौ डॉलर के।
पूरा दस हज़ार तो नहीं था, लेकिन लाइट में इतना ज़रूर लग रहा था।
> “गिन लो। मगर जल्दी करो। सायरन आ रहे हैं।”
बस इतना सुनना था —
थप्पड़ मारने वाला आदमी झुक गया, पैसे उठाए, जैकेट में भर लिए।
> “भाड़ में जाए। लड़की ले जा। हम निकलते हैं।”
डेनवर वाला गाली बकता हुआ बंदूक नीचे कर गया।
उन्होंने लड़की को मेरी तरफ़ धक्का दिया और भागे।
उनकी वैन के टायर चीख़ते हुए अँधेरे में गायब हो गए।
वो मेरे सीने से लगकर फूट-फूटकर रोने लगी।
> “थैंक यू… भगवान का शुक्र है…”
मैंने उसे थाम लिया।
> “आराम से, बेटी। तुम्हारा नाम क्या है?”
“एमिली,” वो फुसफुसाई। “उन्होंने मुझे ओमाहा के बस स्टॉप से उठाया था। तीन दिन पहले।”
दूर से सायरन की आवाज़ें अब करीब आ रही थीं।
क्लर्क बाहर आया — आँखों में हैरानी।
> “मैंने पुलिस को बुला लिया है। तुम ठीक हो?”
मैंने सिर हिलाया, जबकि दर्द असहनीय था।
पुलिस की लाइटें चमकने लगीं।
मुझे पता था — अब पूछताछ, अस्पताल, बयान, फिर उसकी माँ से मिलवाना बाकी है।
लेकिन कई सालों में पहली बार, सड़क पर अकेले सफ़र करते हुए इतना अकेलापन महसूस नहीं हो रहा था।
कभी-कभी ज़िंदगी मोड़ देती है —
या तो तुम मुड़ते हो, या टूट जाते हो।
उस रात मैंने सीधा चलना चुना।
एमिली ने मेरा हाथ कसकर पकड़ा।
> “आप मेरे हीरो हैं।”

