
पिता के जाने पर वारिस, माँ के जाने पर अनाथ — यही समाज का कड़वा सच!
महराजगंज,समाज की एक गहरी सच्चाई है — जब पिता का निधन होता है, तो बेटा “घर का मालिक” कहलाता है।
लेकिन जब वही माँ इस दुनिया से चली जाती है।
तो वही बेटा “अनाथ” बन जाता है।
यह विरोधाभास सिर्फ शब्दों का नहीं, बल्कि हमारे संस्कारों और भावनाओं की गहराई का आईना है।
पिता हमें जीवन में जीने का आधार देते हैं, पर माँ हमें जीने का अर्थ देती है।
पिता की संपत्ति बेटा संभाल लेता है, लेकिन माँ की ममता कोई नहीं संभाल सकता।
पिता के जाने पर घर का ताला खुला रहता है, पर माँ के जाने पर दिल का दरवाज़ा बंद हो जाता है।
माँ के बिना रसोई की खुशबू, आँगन की रौनक, और घर की आत्मा सब जैसे कहीं खो जाती है।
बेटा चाहे जितना बड़ा क्यों न हो जाए, माँ की गोद में ही सबसे सुरक्षित महसूस करता है — और जब वह गोद चली जाती है।
तो जीवन में खालीपन स्थायी हो जाता है।
समाज में यह सोच गहरी छाप छोड़ती है ।
कि पिता अधिकार का प्रतीक हैं।
जबकि माँ अस्तित्व का।
पिता के बाद घर संभल जाता है।
लेकिन माँ के बाद “घर” केवल एक मकान बनकर रह जाता है।