
थोड़ी तो #शर्म करो,, किसी के #कमरे से आने वाली आवाजे ,, आपका कोई हक नहीं कि आप उन आवाज़ों को सुनो,,,,,, कमरे के अंदर धीमी रोशनी थी, और वो आवाजें… जो किसी शादीशुदा मर्द को कभी नहीं सुननी चाहिए।
फर्श पर गिरा दुपट्टा, कुर्सी से लटकती चुनरी और बिस्तर पर — नैना और रवि।
रमेश उत्तर प्रदेश के एक गांव से था, जो हर महीने अपने बीवी-बच्चों की ज़रूरतों के लिए शहर जाकर तीन-तीन महीने तक मज़दूरी करता था। गांव में उसकी पत्नी नैना अकेली रहती थी। जब भी रमेश शहर से लौटता, नैना के लिए साड़ी, चूड़ी, मिठाई और प्यार लेकर आता।
रमेश के लिए शादी का मतलब था – जिम्मेदारी निभाना, और नैना के लिए शादी का मतलब था – साथ, संवाद और संभोग का संतोष।
लेकिन तीन महीने की दूरियों ने उनके बीच एक खालीपन छोड़ दिया — वो खालीपन जो जिस्म से ज्यादा मन में था।
नैना पढ़ी-लिखी नहीं थी, पर भावनाओं से भरी हुई थी।
रमेश के जाने के बाद कई रातें वो अकेले जागती, करवटें बदलती, और अपने अतीत में डूब जाती — जहां उसका पहला प्यार था – रवि।
कॉलेज का वो लड़का, जिससे समाज ने उसे अलग कर दिया था।
रवि अब गांव लौटा था, बेरोज़गार था… लेकिन वही पुराना आकर्षण, वही लुभाती हुई बातें अब भी वैसी थीं।
धीरे-धीरे दोनों की बातचीत शुरू हुई… फिर मुलाकातें… और फिर वो हदें पार हो गईं,
जो कभी नैना ने खुद से वादा किया था कि नहीं पार करेंगी।
जब रमेश काम पर होता, रवि उसके ही घर आता।
चुपचाप, दरवाज़ा बंद करके — वो सब होता जिसे नैना प्यार समझ रही थी, और रवि सिर्फ़ संभोग।
लेकिन क़िस्मत का खेल देखिए…
रमेश को अचानक फैक्ट्री से छुट्टी मिल गई।
वो बिना बताए घर पहुंचा — जैसे ही अंदर गया, उसने कमरे में से आती अजीब सी आवाज़ें सुनीं।
दरवाज़ा खोला — और जो देखा, उसकी आंखें वहीं ठहर गईं।
नैना और रवि एक-दूसरे की बाहों में थे।
कमरे में सन्नाटा, नैना का चेहरा सफेद, और रवि की रगों में डर दौड़ पड़ा।
रमेश ने कुछ नहीं कहा… न चीखा, न मारा।
बस फर्श पर बैठ गया और धीरे से बोला —
“मैं पैसे कमाने गया था… तुझे खुश रखने के लिए।
पर शायद तू खुश सिर्फ़ बिस्तर से होती है, मेरी मेहनत से नहीं।”
नैना फूट-फूटकर रोने लगी।
उसे अब एहसास हुआ कि वो प्यार के नाम पर सिर्फ़ अपने शरीर की प्यास बुझा रही थी — वो प्यास, जो इंतज़ार से भरी थी… लेकिन भरोसे से टूटी।
रवि वहां से भाग गया।
नैना ने रमेश के पैरों में गिरकर माफ़ी मांगी।
पर रमेश ने सिर्फ़ इतना कहा —
“माफ़ करना, मैं तुझे संभाल नहीं सका।
शायद तुझे साथ नहीं, सिर्फ़ पास चाहिए था… और मैं दूर ही रहा।”
रमेश ने घर छोड़ दिया… और आज तक वापस नहीं लौटा।
नैना अब उसी घर में रहती है, हर रात दरवाज़ा बंद करके — लेकिन अब कोई अंदर नहीं आता।
बस एक साया होता है… पछतावे का, इंतज़ार का… और उस भरोसे का, जिसे उसने खुद मार डाला।
🙏 आप विचार करें……
ताकि हर रिश्ता ये समझ सके कि अकेलापन वासना से नहीं, संवाद और इंतज़ार से भरा जा सकता है। 💔
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