
🌹🕉️🚩श्रीमद्भगवद्गीता
परमात्मा से नीचे, संसार वृक्ष की शाखाएँ नीचे, मध्य और ऊपर सर्वत्र फैली हुई हैं। इसमें मनुष्य योनि रूप शाखा ही मूल शाखा है; क्योंकि मनुष्य योनि में नवीन कर्मों को करने का अधिकार है। अन्य शाखाएँ भोग योनियाँ हैं, जिनमें केवल पूर्वकृत कर्मों का फल भोगने का ही अधिकार है। इस मनुष्य योनि रूप मूल शाखा से मनुष्य नीचे (अधोलोक) तथा ऊपर (ऊर्ध्वलोक)—दोनों ओर जा सकता है; और संसार वृक्ष का छेदन करके सबसे ऊर्ध्व (परमात्मा) तक भी जा सकता है।
मनुष्य-शरीर में ऐसा विवेक है, जिसको महत्त्व देकर जीव परमधाम तक पहुँच सकता है और अविवेक पूर्वक विषयों का सेवन करके नरकों में भी जा सकता है।
मनुष्य के अतिरिक्त दूसरी सब भोग योनियाँ हैं। मनुष्य योनि में किये हुए पाप-पुण्यों का फल भोगने के लिये ही मनुष्य को दूसरी योनियों में जाना पड़ता है। नये पाप-पुण्य करने का अथवा पाप-पुण्य से रहित होकर मुक्त होने का अधिकार और अवसर मनुष्य-शरीर में ही है।
सब कुछ भगवान् का
*याद रखो—* सेवा निष्काम तथा विनम्र चित्त में प्रकट भगवान् का विशुद्ध तथा मधुर प्रसाद है। वह कोई लेन-देन का व्यापार नहीं है और न अभिमान उत्पन्न करके दूसरों को नीचा दिखाने वाला सदोष प्रयत्न है।
*सो अनन्य जाके असि मति न टरइ हनुमंत।*
*मैं सेवक सचराचर रूप स्वामी भगवंत॥*
*🌹🚩जय श्रीकृष्ण*