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*राखी… यह सिर्फ एक रस्म नहीं,
भाई की आत्मा पर मर्यादा का तिलक है।*
*भारतीय संस्कृति के इस अनूठे और आत्मीय पर्व की शुरुआत कैसे हुई थी?*
कुछ साल पहले तक हर परिवार में एक ब्राह्मण जाते थे और परिवार के हर सदस्य को प्रतिज्ञा का धागा बांधते थे। आज भी जब हम पूजा, हवन आदि करते हैं तो ब्राह्मण हमें मौली यानी एक धागा बांधते हैं। वो प्रतिज्ञा का धागा होता है। यह कि सही कर्म, सही आचरण, सही संस्कार पर हम अपने जीवन को चलाएंगे। लेकिन धीरे-धीरे समय बदला तो जीवन जीने के तरीके भी बदले। अब हर घर में ब्राह्मण नहीं जा सकते थे तो परिवार की कन्या सभी की कलाई पर धागा बांधती थी प्रतिज्ञा का धागा। और अब यह भाई और बहन का सबसे प्यारा त्योहार बन गया है। इसमें पर्व के अभिप्रायों में ही पवित्रता है।
रक्षाबंधन दो शब्दों से बना है- रक्षा और बंधन। इसका आध्यात्मिक अर्थ है पवित्रता और सुरक्षा। हममें से अधिकतर लोग राखी को एक परंपरा की तरह निभाते हैं, लेकिन हर परंपरा के पीछे एक शक्ति होती है, एक आध्यात्मिक संदेश। राखी उस शक्ति की याद है, जो आत्मा के भीतर है। राखी केवल भाई की कलाई पर बंधने वाला धागा नहीं है। यह आत्मा से आत्मा का एक वादा है कि हम खुद को बेहतर बनाएंगे, रिश्तों को गहराई देंगे और जीवन को बाहर नहीं, भीतर से सजाएंगे। राखी बांधना यानी यह प्रतिज्ञा करना कि जीवन में पवित्रता धारण करना है। जब बहन भाई को राखी बांधती है, तो केवल रक्षा का वादा नहीं लेती, बल्कि मर्यादा में रहने की प्रेरणा भी देती है।
राखी बांधने से पहले जब बहन तिलक करती है, तो वह भाई के आत्मबल को जगाती है। तिलक लगाना अपनी आत्मा की विकारों से रक्षा का प्रतीक है। तिलक लगाते समय याद रखें कि मैं आत्मा हूं और बाकी सब भी मेरे समान आत्मा हैं। इससे हरेक आत्मा के प्रति सम्मान, दुआएं आती हैं। तो आज सबसे पहले आत्मा पर स्मृति का तिलक लगाइए। पवित्रता, शांति, शक्ति, खुशी, प्यार, ज्ञान और आनंद ये सात आत्मा के मूल संस्कार हैं। ये संस्कार आत्मा का धर्म हैं। धर्म यानी जिम्मेदारी, तो ये सात संस्कार आत्मा की जिम्मेदारी हैं। और इस धर्म को हर कर्म में लेकर आना है। तो धर्म के पालन का, स्मृति का तिलक लगाएं कि हम एक-दूसरे के साथ जुड़ जाएंगे।
*येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः*
*तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥*
राखी, तुम अडिग रहना, संकल्प से कभी विचलित न होना। भविष्य पुराण के अनुसार इंद्र की पत्नी के बनाए रक्षासूत्र को बृहस्पति ने इंद्र के हाथों पर बांधते समय यह मंत्र कहा था।