
*लघुकथा*
*एहसास*…..
*******************************
हफ्ते भर की दवा – इलाज के बाद जब नरमू की तबीयत में कुछ सुधार हुआ और अस्पताल से छुट्टी हुई तो बिरजू जो उसका करीबी दोस्त था…..
मिलने के लिए तेज – तेज कदमों से उसके घर जा रहा था तब तक रास्ते में तूफानी मिल गया।
हाल – चाल के बाद कुछ इधर – उधर की बात शुरू हुई तो बढ़ती ही चली गई ।
तूफानी थोड़ा मनबढ़ किस्म का आदमी था…..
बेवजह दूसरों पर धौंस जमाने और इनकी – उनकी निंदा – चुगली करने में वह अपनी बादशाहत समझता ।
तूफानी की ये आदतें बिरजू को बिलकुल भी अच्छी न लगतीं लेकिन गाँव – समाज में रहने के लिए चाहे –
अनचाहे लोगों से थोड़ा – बहुत हेल – मेल तो रखना ही पड़ता है ।
उधर बीस – पच्चीस मिनट बीतते – बीतते बिरजू को तूफानी की बगैर सिर – पैर वाली बातों से ऊब होने लगी तब छुटकारा पाने के इरादे से उसने अपने दोस्त नरमू की बीमारी और दवा – इलाज के बाद अस्पताल से घर आने की बात बताई ।
फिर भी तूफानी अपनी चौधराहट में मशगूल इधर – उधर की ही बातें करता जा रहा था।
जब बिरजू को लगा कि तूफानी आसानी से उसे छोड़ने वाला नहीं है तब उससे फिर कभी मिलने की बात कह वह आगे बढ़ने लगा । तूफानी ने बिरजू को आगे बढ़ते देख कहा, “मैं समझ रहा हूँ , नरमू तुम्हारा जिगरी दोस्त है, बीमार है, तुम जाओ मिलो उससे ।
मैं क्यों जाऊँ…..
मुझसे तो कोई वास्ता है नहीं उसका ….
लेकिन जाने से पहले जरा एक बात बताते जाओ, जब कभी मैं बीमार पड़ूँगा….
तुम मुझे भी देखने आओगे न… ?
बिरजू तूफानी से पिंड छुड़ाने की फिराक में था किंतु तूफानी की बातों ने उसे उलझाकर रख दिया ।
बिरजू के बढ़ते कदम ठिठक से गए ।
थोड़ा संयत होते हुए उसने तूफानी से कहा,
” आऊँगा….
यार……
क्यों नहीं आऊँगा।
फिलहाल मेरी यही दुआ है कि तुम बीमार ही न पड़ो, रह गई बात देखने आने की तो उसे वक्त पर छोड़ दो ।
यह ठीक है कि नरमू मेरा जिगरी दोस्त है लेकिन तुम मेरे दुश्मन तो हो नहीं?
यह कहते हुए बिरजू वहाँ से चला गया किंतु उसकी कही बातें तूफानी के मन में उथल – पुथल मचा रहीं थीं ।
वह सोच रहा था भले ही नरमू से उसके बहुत अच्छे संबंध न हों लेकिन है तो वह भी अपने गाँव का ही ।
उसे भी बिरजू के साथ चले जाना चाहिए था ।
खैर अभी बहुत ज्यादा देर नहीं हुई है…..
भूल सुधार हो सकती है ।
उसे तुरंत बीमार नरमू के घर जाकर उसका हाल – चाल लेना चाहिए ।
थोड़े ही समयांतराल पर तूफानी भी नरमू के घर पहुँच गया ।
वहाँ पहले से ही मौजूद बिरजू ने जब तूफानी को देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा ।
तूफानी जिसे वक्त की नजाकत का खयाल किए बिना हमेशा बड़ – बड़ करते रहने की आदत थी अब बिलकुल खामोश था ।
उसे बिरजू और नरमू से आँख मिलाने में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी ।
शायद उसे अपनी गलती का बखूबी एहसास हो चुका था ।
(*स्वरचित*)
*सत्य प्रकाश गुप्त*
*”अमूल्यरत्न न्यूज”*
*सिपाह इब्राहिमाबाद जनपद मऊ ( यूपी )*
*मोबाईल …..9452654445*