
नई दिल्ली । नए आईटी नियमों को लेकर सोशल मीडिया दिग्गजों और भारत सरकार/कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच रस्साकशी के बाद लाखों भारतीयों के पास ज्वलंत सवाल यही है कि आखिरकार इसका हल कैसे निकलेगा? इसकी वजह ये है कि तमाम हो-हल्ला के बावजूद फेक न्यूज का प्रसार ज्यों का त्यों जारी है।
फेक सूचना पर एक समर्पित कानून की अनुपस्थिति के बीच भारत में वर्तमान में सोशल नेटवर्क को विनियमित करने के लिए अपर्याप्त आईटी नियम हैं। अब पंख फैला चुके सोशल मीडिया साइट्स पर नकेल कसने के लिए केवल नोटिस देने से काम नहीं चलने वाला है।
इस बहस के बीच, भारत में उपयोगकर्ताओं को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने बारे में नकली समाचार / गलत सूचना के प्रसार को हटाने या अक्षम करने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
अग्रणी साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को सोशल मीडिया कंपनियों को एक कड़ा संदेश देने की जरूरत है । तात्पर्य ये है कि नकली समाचार/गलत सूचना के प्रकाशन और प्रसारण के मामले में उपयोगकर्ताओं को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
प्रमुख साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने आईएएनएस को बताया, “भारत फेक न्यूज के प्रसार को नियंत्रित करने में विफल रहा है, क्योंकि गलत सूचना को नियंत्रित करना कभी भी एक राजनीतिक प्राथमिकता नहीं रही है। भारत ने इस संबंध में राष्ट्रों की दौड़ में खुद को पीछे रहने दिया है, जबकि मलेशिया, सिंगापुर और फ्रांस जैसे छोटे देश गलत सूचना से निपटने के लिए समर्पित कानूनी ढांचे के साथ आ गए हैं।”
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 फेक न्यूज पर कानून नहीं है। नतीजतन, आईटी (संशोधन) अधिनियम, 2008 के आधार पर आईटी अधिनियम, 2000 में संशोधन भी धारा 66 ए को छोड़कर, फर्जी खबरों से निपट नहीं पाया।
धारा 66 ए ने इसे अपराध बना दिया जब कोई ऐसी जानकारी भेजता है जिसे वह जानता है कि वह झूठी है, लेकिन ये झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, चोट, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना पैदा करने के उद्देश्य से भेजी जाती है।