
❤️ खुद को जानो❤
औरत तेरी यही कहानी , आंचल में दुध आंखों में पानी
आज चाय के साथ पकोड़े खाने का मन हुआ,
फिर सोचा घर मे किसी को पसंद ही नही पकोड़े खाना तो अपने लिए क्या बनाऊ….
चाय ली और दो बिस्कुट लेकर बैठ गई….
सुबह से शाम तक का सोचने लगी….
घर मे जो भी बनता है बच्चो या फिर पतिदेव की पसंद का बनता है….
अपनी पसंद का कभी नही बनाया….
खाना मै ही परोसती हूँ….
पर सभी को खिलाने के बाद अगर सलाद खत्म हो जाए तो अपने लिए सलाद दोबारा नहीं काटती….
सभी की चीजों का मुझे ही ख्याल रखना है….
पर अपनी ही दवाई भूल जाती हूँ….
रात को सारा काम निपटा कर जैसे ही सोने की तैयारी करो तो आवाज़ आती है एक ग्लास पानी तो दे दो…
पर अपने लिए पानी लेने खुद ही उठना पड़ता है…..
जब सभी का ख्याल रख सकती हूँ….
तो खुद के लिए कुछ क्यों नही कर सकती….
अब इसका जवाब देना तो हम गृहनियों के लिए मुश्किल हीं होगा।
रोज़ सब के लिए फलों का प्लेट सजाते सजाते एक-आध टुकड़ा मुँह में डाल ली तो डाल ली…..
खुद की प्लेट भी बनाई होगी, याद हीं नहीं…
इतनी लीन हुई ये दुनियादारी में, की दुनियाँ ने इनकी रीत हीं बना डाली…….
लक्ष्मण रेखा सी खींच डाली………
जकड़ डाला हमने खुद को एक रिवाज में…….
इसकी दोषी हम खुद हैं……
वर्ना कहाँ लिखा है…
किसने कहा है,
कि सब की सेहत का खयाल रखो,
लेकिन खुद की नहीं?
सजाओ सब की थाली,
वही प्यार वाली।
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