
आखिर क्या कारण है कि अधिकतर बवाल जुम्मे की नमाज़ के बाद ही होते हैं?
क्या नमाज़ के दौरान शांति दूतों को बवाल करने के लिए ही उकसाया जाता है?
आखिर क्यों मंगलवार को हनुमान मंदिरों में पूजा अर्चना के बाद बड़ी से बड़ी संख्या में आए भक्त जन भी शांतिपूर्वक घर वापस लौटते हैं.
शनिवार,
गुरुवार,
एकादशी,
पूर्णिमा,
यहाँ तक कि सूर्य षष्ठी,
शक्ति पूजा के
पर्व दशहरा,
कुम्भ
आदि विभिन्न हिन्दू दिवसों और पर्वों पर उपस्थित जनसमुद्र को नियंत्रित करने के लिए तो कभी भी शासन प्रशासन अथवा पुलिस बल की आवश्यकता नहीं होती बल्कि उपस्थित जनसमूह वापस लौटते समय दानपुण्य करते,
व्यापार वाणिज्य में अभिवृद्धि करने में अपना योगदान देते हुए जाते हैं, किंतु जुमे के नमाजियों की भीड़ जुमाकेंद्रों से निकलते वक्त अधिकतर समय सब कुछ तहस नहस करते हुए ही गुजरते हैं!
क्या भीड़ को उकसाने वाले तथाकथित इबादत स्थलों को कम से कम भारत जैसे शांति प्रिय देश में आगे भी शांति स्थापित रखने के उद्देश्य से प्रतिबंधित नहीं कर देना चाहिए?
या फिर कम से कम ऐसे स्थलों में सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य करते हुए जिला प्रशासन के सतत् देखरेख में ही उनकी गतिविधियाँ चलना सुनिश्चित करने हेतु व्यवस्था बनाई जानी चाहिए जिससे कि भविष्य में देश में दंगे- बवाल की चिंगारी जलाने और उसे हवा देने से रोका जा सके! 🙏