*दादा-दादी, चाचा-चाची से दूर रहो*
“हे भगवान! कैसे माता पिता है ? बच्चे को क्या सीखा रहे हैं?”
“लड़ाई झगड़ा किस घर में नहीं होता, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि छोटे बच्चों को उसमें शामिल किया जाए।”
” किसी बच्चे के मुंह से अपने दादा दादी के लिए ऐसे शब्द मैं तो पहली बार सुन रही हूं।”
” अभी तो यह बच्चा सिर्फ दूसरी कक्षा में ही पढ़ता है और इसकी छोटी बहन एल के जी में।”
” इनके दिमाग में यह क्या भरा जा रहा है?”
वहां खड़ी सारी टीचर्स हैरान परेशान हो रही थी। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या रहा है।
तो मैं आपको शुरू से बताती हूं। मैं एक स्कूल में अध्यापिका हूं। और कई तरह के विद्यार्थियों और उनके माता-पिता से मेरा मिलना होता है। पर इस तरह का मामला हमने पहली बार देखा। जहां बच्चे के मन में अपने दादा दादी के लिए बहुत कुछ गलत भरा हुआ था।
हुआ यूँ कि लंच ब्रेक का टाइम खत्म हुआ था और हम सभी टीचर अपनी-अपनी कक्षाओं की तरफ जा रही थी। तभी हमने देखा कि एक दूसरी क्लास में पढ़ने वाला बच्चा सीड़ियों से फिसल कर नीचे गिर गया, जिससे उसका दाहिना हाथ फैक्चर हो गया।
तब हम कुछ अध्यापिकाएँ उसे ऑफिस में ले गई और एक कपड़ा ले कर उसके हाथ को हमने बांध दिया। क्योंकि साफ पता चल रहा था कि उसकी हड्डी क्रैक हो चुकी है। बच्चा लगातार रोए जा रहा था। हॉस्पिटल ले जाने से पहले प्रिंसिपल मैम ने उसके माता-पिता से कॉंटेक्ट करने की कोशिश की। काफी कोशिशों के बावजूद भी उसके पेरेंट्स फोन रिसीव नहीं कर रहे थे। और बच्चा इतना छोटा था कि अपने आस पड़ोस में किसी का नंबर बता नहीं पा रहा था।
तब एक टीचर ने कहा कि इसके घर से ही किसी को बुला लिया जाए। तो बच्चे ने कहा कि मैम डायरी में जो एड्रेस लिखा है हमने वो घर बदल दिया है।
मैंने पूछा,
“तो फिर पुराने घर में कौन रहता है?”
तो बच्चे ने कहा,
” दादा और दादी रहते हैं”
प्रिंसिपल ने कहा
“तो ठीक है इसके दादा दादी को ही बुला लेते हैं।”
दादा दादी दूर तो रहते नहीं थे तो चपरासी को कह कर उन्हें बुला लिया गया। कुछ मिनटों में ही वे स्कूल में आ भी गए।
पर यह क्या? बच्चा तो उनके पास भी जाना पसंद नहीं कर रहे हैं।
जैसे तैसे उसके दादा जी एक टीचर की सहायता से उस बच्चे को हॉस्पिटल लेकर गए। और दादी स्कूल में उसकी छोटी बहन के पास ही रुक गई।
यहां जब इस बच्ची से उसकी टीचर ने कहा
“देखो तुम्हारी दादी आई है”
तो उसने अपना मुंह फेर लिया और साफ कहा कि मम्मी ने मना किया है कि दादी से दूर रहो।
यह सुनकर के दादी की आंखों में आंसू आ गए तो टीचर ने उन्हें बाहर बैठा दिया। जब टीचर ने उसे समझाया कि बेटा दादा दादी के लिए कभी ऐसा नहीं बोलना चाहिए। वे तुम्हें प्यार करते हैं। और तुम्हारे लिए कई चीजें लेकर के भी आते हैं।
तो जो बच्ची ने कहा उसे सुन कर हम लोगों के तो कान ठंडे पड़ गए।
उसने कहा, “मम्मी ने कहा है कि दादा दादी से दूर रहो। और वो कोई भी चीज दे तो उसे मत लेना। पता नहीं क्या मिलाकर खिला दे। ऐसे लोगों का कोई भरोसा नहीं। ये लोग बहुत ही खतरनाक है।”
हम सभी टीचर्स उसकी बात सुनकर के हैरान-परेशान एक दूसरे की तरफ देख रहे थे और समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हो क्या रहा हैं ?
एक छोटी सी बच्ची के मन में कितना जहर भरा गया है जिसकी कोई हद नहीं है।
अब यह बात हम दादी जी से कैसे पूछते हैं? हम में से किसी को समझ में ही नहीं आ रहा था कि इस बच्ची को कैसे समझाएं।
यही हाल उधर हॉस्पिटल में उस बच्चे का था। उसके दादा ने खाने के लिए बिस्किट ला कर दिए तो उसने लेने से साफ मना कर दिया। कहा कि “मम्मी ने मना किया है। अगर मैंने लिए तो मुझे बहुत मारेंगे।”
दादा जी ने उनके बेटे के किसी मित्र के नंबर दिए। तब जाकर प्रिंसिपल मैम ने उन्हें इनफॉर्म किया ।
माता पिता के आने के बाद दादा दादी आंखों में आंसू ले चुपचाप अपने घर चले गए। लेकिन उनके बेटे बहू ने उन्हें रोका तक नहीं। और हम सभी यही सोचते रहे कि यह कैसी परवरिश है ?अपने ही माता पिता के खिलाफ इतना जहर भरना। आखिर उन बच्चों का भी उनके दादा दादी के प्यार पर पूरा अधिकार था।
यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है। जहां छोटे-मोटे लड़ाई झगड़ों के कारण इतना बड़ा कदम उठा लिया गया। छोटे मासूम बच्चों को भी बेवजह उसमें शामिल कर लिया गया। और माता-पिता ने यह भी नहीं सोचा कि वक्त हमेशा बदलता है और अपने आप को दोहराता है।

