
पटना में नवमी के मेले में बंसी बिहार में गांधीजी और रावण एक साथ डोसा खा रहे थे।
नीतीश जी ने देखा तो रहा नहीं गया।
” माफ कीजिएगा… पर बहुत कंफ्यूज हो गया हूं। आप दोनों एक साथ कैसे हो सकते हैं? वैष्णव और शाक्त , हिंसा और अहिंसा, कलयुग और त्रेता,…. दो विपरीत लोग एक साथ डोसा खा रहे हैं?
रावण की हंसी ने बंसी विहार को हिला दिया। “हमारा जन्म और मरण दिन जो एक साथ है!”
” कल हमारा दिन है तो सेलिब्रेट भी ना करें!” गांधीजी ने मुस्कुराते हुए कहा।
“अरे गांधीजी आपका तो जन्मदिन है समझे पर रावण जी आपको तो कल जलना है फिर किस चीज की सेलिब्रेशन है?”
“मर गए मारने वाले!” फिर एक बार जोर से ढहाका ।
“समझा नहीं महोदय!” नितीश बाबू भी हिल गए।
“समझना – समझाना छोड़ो मुख्यमंत्री जी। तुम झूठ-मूठ तंग करने चले आए। जाओ जो डाक बंगला में पंडाल बना है ,जाकर देखो। सुना है पटना में अयोध्या का राम मंदिर भी बना है, मैं भी जाऊंगा देखने जरा भीड़ छंट जाए, क्यों मोहनदास, चलोगे ना? ”
“अरे आप सब हमारी सरकारी गाड़ीए पर चलिए ना! हमारे साथ रहिएगा तो कोई टेंशन है? कल महात्मा जी का मूर्ति पर से बीट-पीक सब हट जाएगा। एकदम चकाचक! आपको माला पहनाएंगे गांधीजी और आपको भी ससम्मान जलाएंगे रावण जी।”
बातें करते हुए तीनों बंसी विहार से निकले।
“देखिए नितीश बाबू इस बार न आपकी दाल गलेगी, न हम जलेंगे । काहे कि इंद्र भगवान से सेटिंग हो गई है अपनी।” रावण का इतना कहना था कि जोरों से बिजली कड़कने लगी ।
“वाह रावण तुम भी सेटिंग सीख गए हो!” गांधीजी जगर- मगर सड़कों को देख रहे थे।
“ऐसा अनर्थ मत करिएगा रावण जी! आप नहीं जलिएगा तो जो लाखों का खर्च हुआ है, उसका पैसा कैसे वसूल होगा। जनता सब गरियाएगा। ऊपर से इलेक्शन का टाइम है। गांधीजी, समझाइए ना रावण जी को। इनका जलना कितना जरूरी है… बताइए तनिक इनको। चिंता मत ना करिए! खादी मॉल ले चलते हैं। मनपसंद कपड़ा दिलाएंगे।”