*पिता पुत्र के रिश्ते इशारों में बोलता है पिता-पुत्र का अहसास….*
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दुनिया के किसी भी संबंध में अगर सबसे कम बोल-चाल है तो वह है पिता-पुत्र की जोड़ी में एक समय तक दोनों अनजान होते हैं एक-दूसरे की उम्र से फिर धीरे से बिछड़ने का अहसास होता है जब लड़का अपनी जवानी पार कर अगले पड़ाव पर चढ़ता है यहां इशारों से बाते होने लगती है या फिर इनके बीच मध्यस्त का दायित्व निभाती है माँ पिता अक्सर पुत्र की मां से कहता है, उससे कह देना और पुत्र अक्सर मां से कहता है ‘पापा से पूछ लो न’ इन्हीं के बीच घूमती रहती है मां जब एक कहीं होता है तो दूसरा वहां नहीं होने की कोशिश करता है शायद पिता-पुत्र नजदीकी से डरते हैं जबकि वो डर नजदीकी का नहीं है डर है उनके बाद बिछड़ने का भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को कभी कहा हो कि बेटा में तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ पिता के अनंत रौद्र का भी वही होता है क्योंकि पिता जिंदगी में अपने बेटे को अभिमन्यु सा पाता है पिता समझता है कि इसे संभलना होगा इसे मजबूत बनना होगा ताकि जिम्मेदारियों का बोझ इसे बांध न सके जब मैं चला जाऊंगा इसकी मां भी चली जाएगी, बेटियां भी अपने घर चली जाएगी तब सिर्फ यह रह जाएगा इसे हर कदम हर दम परिवार के लिए, आजीविका के लिए व अपने बच्चों के लिए सामाजिक जटिलताओं से लड़ना होगा पिता जानता है कि हर बात घर पर नहीं बताई जा सकती इसलिए इसे खामोशी से गम छुपाने सीखने होंगे परिवार के विरुद्ध खड़ी हर विशालकाय मुसीबत को अपने हौसले से छोटा करना होगा न भी कर सके तो खुद का वध करना होगा इसलिए वो कभी पुत्र प्रेम प्रदर्शित नहीं करता पिता जानता है कि प्रेम कमजोर बनाता है फिर कई बार उसका प्यार झल्लाहट या गुस्सा बनकर निकलता है यह गुस्सा अपने बेटे की कमियों के लिए नहीं होता पिता चाहता है कि पुत्र जल्द से जल्द सीख लें यह गलतियां करना बंद करे क्योंकि गलतियां सभी की माफ है पर मुखिया की नहीं यहां मुखिया का वध सबसे पहले होता है फिर वह समय आता है जब पिता और बेटे दोनों को अपनी बढ़ती उम्र का अहसास होने लगता है बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका है कड़ी कमजोर होने लगती हैं पिता की सीख देने की लालसा और बेटे का उस भावना को समझ पाने की सौम्यता कम हो जाती है सबको फिर बेटे का इंतजार करते हुए मां तो दिखती है पर पीछे रात भर से जागा पिता किसी को नहीं दिखता पिता की उम्र और झुर्रियां और बढ़ती जाती हैं जिन हाथों ने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया था वहीं हाथ उसे मुखाग्नि देते हैं यह कोई पुरुषवादी समाज की चाल नहीं है यह सौभाग्य भी नहीं है, यह बेटा होने का सबसे बड़ा अभिशाप है ये होता है, हो रहा है, होता चला जाएगा जो नहीं हो रहा है और जो हो सकता है वो यह कि हम जल्द से जल्द कहना शुरू कर दें हम आपस में कितना प्यार करते हैं…