
एक बार की बात है, एक सेठ जी थे,
जिनके पास बहुत धन-दौलत थी।
सेठ जी की एक बेटी थी, जिसकी शादी उन्होंने एक बड़े और प्रतिष्ठित परिवार में की थी।
मगर बेटी के दुर्भाग्य के कारण उसका पति जुआरी और शराबी निकला, और उनके घर की सारी संपत्ति धीरे-धीरे खत्म हो गई।
बेटी की इस हालत से सेठानी जी बेहद चिंतित रहती थीं।
वे अक्सर सेठ जी से कहतीं, “आप तो दुनिया भर की मदद करते हो, लेकिन अपनी बेटी की मदद क्यों नहीं करते, जो इस कठिन समय से गुजर रही है?”
सेठ जी हमेशा शांत भाव से जवाब देते, “जब उनके भाग्य का वक्त आएगा, तो मदद खुद चलकर उनके पास आएगी।”
एक दिन सेठ जी किसी काम से बाहर गए हुए थे, तभी उनका दामाद अचानक उनके घर आ पहुंचा।
सास, यानी सेठानी जी, ने दामाद का आदर-सत्कार किया और सोचा कि क्यों न अपनी बेटी की मदद की जाए।
उन्हें एक उपाय सूझा – उन्होंने मोतीचूर के लड्डुओं में सोने की अशर्फियां छिपाकर रख दीं, ताकि दामाद को यह लड्डू देकर उसकी आर्थिक मदद हो सके।
सेठानी जी ने दामाद को विदा करते समय पांच किलो शुद्ध घी के लड्डू, जिनमें सोने की अशर्फियां थीं, उसे उपहार में दे दिए।
दामाद लड्डू लेकर वहां से चला, लेकिन रास्ते में उसने सोचा, “इतने भारी लड्डू घर तक ले जाने का कोई फायदा नहीं है, क्यों न इन्हें यहीं बेच दूं?”
उसने पास की मिठाई की दुकान पर लड्डू बेच दिए और उन पैसों को अपनी जेब में डाल लिया।
संयोगवश, उसी दिन सेठ जी घर लौटते वक्त मिठाई की दुकान पर पहुंचे और उन्होंने घर के लिए कुछ मोतीचूर के लड्डू खरीदने का सोचा।
दुकानदार ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को बेच दिया, जिसे कुछ देर पहले दामाद ने बेचा था।
सेठ जी लड्डू लेकर घर पहुंचे और सेठानी जी को लड्डू का वही पैकेट दिखाया।
सेठानी जी ने जैसे ही लड्डू पैकेट देखा, वह चौंक गईं।
उन्होंने एक लड्डू तोड़कर देखा, तो उसमें से वही सोने की अशर्फियां निकलीं जो उन्होंने दामाद के लिए छिपाई थीं।
सेठानी जी अपना माथा पकड़कर बैठ गईं और सेठ जी को पूरी कहानी सुनाई – दामाद के आने से लेकर अशर्फियां छिपाने तक की पूरी बात।
सेठ जी ने यह सब सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, “भाग्यवान, मैंने पहले ही कहा था कि उनका भाग्य अभी नहीं जागा है।
देखो,
न तो अशर्फियां दामाद के भाग्य में थीं और न ही मिठाई वाले के।
इसीलिए कहते हैं कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।”
कहानी का मर्म यह है कि जीवन में सबकुछ अपने समय पर ही मिलता है।
हमें धैर्य रखना चाहिए और जितना ईश्वर देता है, उसमें संतोष करना चाहिए।
जैसे झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे भी आता है – सुख और दुख जीवन के हिस्से हैं, जो समय-समय पर हमारे जीवन में आते रहते हैं।
इसलिए,
किसी की मजबूरी पर कभी मत हंसो।
कोई भी अपनी मुश्किलें खरीदकर नहीं लाता, और बुरा वक्त भी बिना चेतावनी के आता है।
हमें हमेशा समय और किस्मत की कद्र करनी चाहिए।
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