
आज मां ने मेरे सामने सुबह से ही दुखड़ा रोना शुरू कर दिया था।
“अरे कौन से बड़े काम करती है तेरी पत्नी ….
यह काम तो हम लोग रोज करते आ रहे हैं …
चूल्हा चौका झाड़ू पोछा चार काम करने में ही पूरा दिन निकाल देती है…
ऊपर से उसका ये दुखता है वो दुखता है …
यह नाटक भी चलते…
जैसे हमने कभी कोई काम किए नहीं हैं… ”
और हमारी पत्नी को कहने गया तो वह सीधे मुंह बात भी नहीं कर रही थी बस चुपचाप सुने जा रही थी।
ऐसे में …
मां की बात मुझे सही लगी …
सही तो है मां भी तो कितना काम करती थी पहले ..
लेकिन यह हमारी भार्या का तो अलग ही नाटक है …
लेकिन मैं भी क्या करता दोनों के बीच पीसना तो मुझे ही था इसलिए पत्नी से बात करने उसके पिछे चला गया।
मैंने भी गुस्से में कह दिया …….
“अरे क्या ही काम करना पड़ता है…
मुझे देखो सुबह से उठता हूं घर के बाहर रहता हूं…
पूरा दिन काम करता हूं …
तब जाकर शाम को आराम करना चाहता तो तुम्हारी किचकिच चल रही होती”।
लेकिन पत्नी कहां मानने वाली थी.. ….
अभी उसके सामने मां भी तो नहीं थी की बोलते समय कोई लिहाज करना पड़े तो मुझे बोल पड़ी
“ठीक है पतिदेव जी एक दिन आप मेरी जिंदगी जीना पसंद करोगे”।
तो मैं भी कह दिया………
“ठीक है कर दूंगा……….
उस दिन तुम कुछ भी काम मत करना बस बैठी रहना ………
यह जो दिन भर यहां वहां अड़ोसी पड़ोसियों के घर चली जाती हो… ……….
बचे कुचे टाइम में अपनी मायके वालों से फोन पर बात करने में लगा देती हो……….
अगर पूरा दिन टाइम पास नहीं करोगी तो 2 घंटे में काम निपट जाएगा”।
पत्नी एक बार मुस्कुराई और कहा “नहीं…….. .
नहीं पति देव जी आपको पूरा दिन घरकाम नही करना है बस आपको मेरे हिस्से के तीन ही काम करने है”।
“बस तीन काम…?
बताओ भला कौन से हैं…”?
मैंने भी पूछ लिया
तो पत्नी बोली “पहला काम …
मैं कपड़े धोऊंगी आपको बस उन्हें सुखाना है ……….
दूसरा काम ‘मैं सारे बर्तन साफ करूंगी आपको उन्हें बस जमाना है …’
और तीसरा काम ‘में सारे घर में झाड़ू-पोछा करूंगी बस आपको कचरा उठाना है’।
मैंने एक शरारती मुस्कान के साथ कहा……….
“तुम भी ना अच्छा खासा मौका दे रहा था आराम करने का हाथ से गवा रही हो चलो ठीक है कल सुबह तैयार रहूंगा”।
सुबह हो गई सबका चाय पानी नाश्ता हुआ उसके के बाद पत्नी ने सारे बर्तन धोकर टोकने में रख दिये।
तो मैं वो बर्तन जमाने के लिए आगे बढ़ा उतने में पत्नी बोली…..
“अरे अरे पतिदेव जी बर्तन के ऊपर का पानी निथारने दीजिए … उसके बाद यह जो चीनी के कप है उनको वहां सामने रखना है और हां पहले कपड़े से पोंछ लेना फिर यह जो प्लेटे है उनको सिंक के नीचे वाले हिस्से में रखना है।
इनको भी अलग-अलग रखना एक के साथ एक रहेगी तो उनके अंदर पसीना जम जाएगा।
और यह चाय की केतली इसे धूप में रखना जो खिड़की से आती है वहीं पर रख दीजिएगा क्योंकि स्मेल चली जाए;
और यह मान जी के दवाई का गिलास उनके कमरे में रखना अच्छे से सुख करके रखना “।
मैंने उसकी बात सुनी और ठीक वैसे ही बर्तन जमाने लग गया बर्तन जमाते जमाते कब 15 मिनट निकल गए पता ही नहीं चला ……
क्या करता चीनी के प्लेटे थी ………
हल्के हाथ से साफ करनी पड़ी टूट जाती तो……….
डर था रोज मां मेरी पत्नी को सुनाती है कहीं आज मुझेना सुनना ना पड़े।
फिर पत्नी ने झाड़ू निकाली और कचरा वही रहने दिया……….
मैं कचरा उठाने निकल गया तो उसने बताया पति देव जी कचरे को अलग-अलग करके डालना गीला कचरा अलग ………….
सुखा कचरा ……….
और किचन में जो मैंने अभी सब्जी साफ की थी उसमें जो हरी घास और कुछ डंठल वगैरा है वह नीचे गाय माता आएगी उनको खिला देना……….
साथ में रात की रोटी भी रखी है.. ……..
वह भी ले जाना………।
मैं भी एक हाथ में गीला कचरा……….
एक हाथ में सूखा कचरा और किचन का कचरा सब लेकर आंगन में दाखिल हुआ कॉलोनी में पहले से ही गाय माता अपने दर्शन दे रही थी तो मैं उनके पास गया उनको रोटी खिलाने लग गया.. तो माताजी ने थोड़ा बहुत खाया थोड़ा बहुत कचरा फैला दिया फिर वापस से झाड़ू लेकर उसे साफ करने में लग गया। कचरे की गाड़ी की आवाज तो आ रही थी
(गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल )लेकिन गाड़ी अभी तक आई नहीं शायद जगह-जगह पर रुकते हुए आती है इसलिए समय लग रहा था।
तो उसका इंतजार करते बाहर खड़ा हो गया अकेले-अकेले इंतजार करने में बोरियत होने लगी तो अपना मोबाइल निकाल के बातचीत करना शुरू कर दिया।
5 -10 मिनट के बाद गाड़ी आ गई तो उसमें कचरा डाल के फिर से घर में दाखिल हो गया…
निकल गए 15-20 मिनट……
थोड़ी देर बैठ गया पत्नी को देखा तो मैडम सारे कमरों से कपड़े इकट्ठा रही थी धोने के लिए।
मैंने सोचा अभी कपड़े धोने में टाइम है तब तक आराम कर लूं।
तो बाथरूम में से जोर-जोर से मोगरी की आवाज आने लगी ऐसा लग रहा था की पत्नी कपड़ों को धो नहीं रही दिन भर के अपने फ्रस्ट्रेशन को निकाल रही है।
इसलिए मैं तमतमाते हुए बाथरुम के पास गया और उसे बोलने ही वाला था कि “गुस्सा निकालना ही है तो मुझ पर निकालो कपड़ों पर नहीं” तब देखा कि वह मेरी ही जींस को रगड़ रही थी जिसके ऊपर मैंने कल सब्जी गिरा के रखी थी।
मैं अपनी बात मुंह में दबाए बाहर निकल आया।
थोड़ी देर बाद वह दो बाल्टी कपड़े मेरे सामने रखते हुए बोली “इन्हें सुखा कर आईए और हां इसमें यह जो साड़ी है इसका रंग जाता है इसलिए इसे छांव में सुखाना और यह जो शर्ट और पैंट है इनको उल्टा करके सुखा दो ताकि इनका भी रंग न जाए और धूप भी लग जाए। सारे कपड़ों को क्लिप लगा देना और अलग-अलग दूर-दूर सुखाना ताकि ठीक से अच्छे से सुख जाए…
पता नहीं बारिश कब आए और इन्हें उठाना पड़े”।
मैंने उसकी इंस्ट्रक्शन सुनते हुए बस हां मैं गर्दन हिलाई और ऊपर छत की ओर चला गया।
छत पर जाते से ही एक-एक कपड़ा अलग-अलग करके सूखाने लग गया…
पैंट को उल्टा करके डाली…….
शर्ट की बटन लगाए ……….
रस्सी पर लगे कपड़े सुखाते हुए देखा की कॉलर और पेंट के ऊपर के दाग निकल चुके थे ………
मन ही मन खुद को पत्नी की तारीफ करने से नहीं रोक पाया।
फिर बच्चों के छोटे-छोटे कपड़े उनको सुखना तो बड़ी मुश्किल का काम लगा ……..
जैसे डालता वैसे ही हवा का झोंका उन्हें उड़ाता था………
एक हाथ से कपड़ा पकड़ता एक हाथ से चिमटी लगाता ……..
जैसे तैसे कपड़े सुखाने में आधा घंटा चला गया……..
तो इतने में पड़ोस की दादी भी उनके छत के ऊपर आ गई……
अब इसे प्रणाम नमस्ते करना जरूरी था अगर नजरअंदाज करते हुए चला आता तो नजाने क्या सोचती………
“कैसा लड़का है बात तक नहीं करी” इसलिए उनसे बतीयाने लग गया। समय तो आगे बढ़ ही रहा था…
थोड़ी देर बात करके नीचे की ओर आ गया तो पत्नी खाना बना चुकी थी……..
सिंक में बर्तन जमा हो चुके थे……..
कढ़ाई……..
तवा चम्मच मिक्सी के जार ………
चकला बेलन और नजाने कितने सारे……..
बीच-बीच में आने जाने वाले भी चल रहे थे इसलिए चाय के बर्तन वापस से सिंक में हाजिर हो गए………..
पत्नी ने वह सारे बर्तन साफ किये और सबको खाना परोसने लग गई..
सबने खाना खाया और फिर से सिंक में बर्तन जमा हो गए सबके खाने के…
मैं जो पहले के बर्तन जमा ही रहा था तब तक पत्नी ने दूसरे बर्तन धोकर रख दिया और दया के भाव से मुझसे बोली “अब इन्हें रहने दीजिए दोपहर बाद जमा दीजिएगा”।
मैंने देखा इतनी देर में सुबह से वह एक बार भी बैठी नहीं.. ना ही उसने अपने फोन को हाथ तक लगाया…
तो मैंने इतराते हुए कहा “क्या बात है आज तुमने एक बार भी फोन नहीं उठाया तो वह हल्की से मुस्कराहट के साथ बोली “आपको ही तो फोन लगाती हू आज आप घर पर हैं … तो क्यों लगाऊ”
इस पर मैंने कहा”क्यों मायके में किसी को नहीं लगाती ..मां तो कहती है कि दिनभर मोबाइल पर लगी रहती है”
“मेरी तरह मायके की औरतें भी काम में ही बिजी रहती है… त्योहार पर छुट्टियों के दिन बातचीत कर लेते हैं… मां ने ऐसा बोला तो ठीक ही बोला… बच्चों की ट्यूशन वाली ;गैस कनेक्शन वाला; डिक्स वाला; कोरियर वाले…आधे से ज्यादा काम तो आजकल मोबाइल पर ही होते हैं..”. वह निर्विकार भाव से बोली
फिर बच्चे स्कूल से घर आ गए तो उसने वापस से गैस जलाया बच्चों को उनके पसंद से खाना खिलाया… बच्चों के टिफिन वापस में सिंक में हाजिरी देने आ गए फिर से उनके खाने की प्लेटें वहां जमा हो गई। पत्नी ने उन्हें भी धोया और एक साइड रख दिया और झाड़ू निकालने लग गई ताकि यह सुबह से ही दूसरी बार के झाड़ू थे कचरा तो हो चुका था।
इतने में ही मां की आवाज आई ..चाय बनाने के लिए ..तो वह चाय बनाने लग गई… वापस से चाय के बर्तन सिंक में चले आए ..पत्नी ने उनको भी धोए और रख दिए।
बच्चे स्कूल से आए थे। तो उनके स्कूल के कपड़े बाथरूम में आ गए ।तो पत्नी और कपड़े धोने लग गई ताकि दूसरे दिन स्कूल में वही कपड़े पहन के जाने थे ।
मैं जो किचन में धुले हुए बर्तनों का ढेर देखकर ही डर रहा था कि इनको पौछकर सुखाकर जमाना है …तभी इतनी देर में पत्नी बाल्टी में बच्चों के स्कूल के कपड़े लेकर आ गई और बोली इन्हें सुखा कर आईए।
यूं ही पूरा दिन चला गया शाम का नाश्ता हुआ वापस से सिंक में बर्तन आ गए फिर रात का खाना हुआ वापस में सिंक में बर्तन आ गए।
पूरा दिन यही चक्कर चला रहा और अभी मैं इस काम से पक गया था। तो सच में मुझे पत्नी की दया आ गई जिन चीजों को सिर्फ सुखाने में मुझे आलसी आ रही है उनको तो मेरी पत्नी धोकर चमकाती है फिर सूखाती है। उसके बाद प्रेस करके अच्छे से जमाती है। न जाने यह काम रोज कर करके वो कितनी ही उब चुकी होगी । और कुछ सालों से तो उसने मुझे भी फरमाइश ही करना छोड़ दिया है… कहीं ना कहीं उसके इस बर्ताव से मैं भी उसे घमंडी समझने लगा था..
रात को मैंने पत्नी से कहा “आज मुझे पता चला कि तुम दिन भर कितना काम करती हो और कितने अच्छे से करती हो”।
लेकिन एक बात बताओ “तुम मेरी मां से बात क्यों नहीं करती ..उनका ख्याल रखती हो फिर वह तुमसे गुस्सा क्यों रहती है…”?
तो पत्नी बोली आज आपने एक दिन मेरे हिस्से का थोड़ा काम करके देखा तो आपको मेरी हालत का पता चला।
मां जी तो यह जिंदगी खुद जी चुके हैं .. दिनभर खुद अपनी आंखों से रोज मुझे देखती है ..इसके बाद भी संतुष्ट नहीं रहती.. कमियां निकालती है.. मेरे शरीर के दर्द को नाटक समझते हैं…..बताओ भला मैं कब तक अपनी सफाई पेश करूंगी….
बोलूं तो बदतमीज… ना बोलूं तो घमंडी
वह कहते हैं “हमारा जमाना…. हमारा जमाना…”
लेकिन पतिदेव जमाना बीत जाता है ….या बदल जाता है।
लेकिन जिंदगी जीए जाती है… उसे अपने हिसाब से नहीं बदला जाता… उनके समय चीज कुछ और थी और हमारे समय कुछ और है….
वह आज भी बीते हुए में जी रहे हैं और मैं आज में जी रही हूं।
..
एक औरत को बुरा तब नहीं लगता जब उसे कोई पुरुष कम आकता है… पुरुष को तो शायद अंदाजा भी नहीं है कि स्त्री उसकी उम्र से भी कितनी ज्यादा बड़ी हो चुकी है। जिम्मेदारियां उठाते उठाते
जब वह पैरों पर खड़ा होना चाहती थी तब उसको शादी के बंधन में बांध दिया जाता है…
जब वह घर संभालना सोचती है इस समय उसके ऊपर बच्चों की जिम्मेदारी आ जाती है जबकि वह खुद ही बच्ची रहती हैं अपने मन से.. और जब घर और बच्चे दोनों संभाल लेती है…
तो आगे उससे उम्मीद की जाती है कि अब वह अपने पैरों पर खड़े रहे चार पैसे कमाए लेकिन क्या इसके लिए अब उसके पास है वह आत्मविश्वास है जो पहले था …अरे वो तो कब का उसके घर वाले उसके अंदर से निकाल चुके है..उसके अंदर छोटी-छोटी चीजों में कमियां निकाल निकाल कर… और वह समाज में एक उपहास ही बनकर रही है सिर्फ इसलिए क्योंकि वह चार दीवारों के बीच रहती है… खैर छोड़िए यह तो हम औरतों का रोज का है.. इसलिए एक समय सीमा के बाद हम अपने बारे में सफाई नहीं देती ….. और चुप्पी को ही अपना गहना समझ कर ओढ लेते हैं ।
स्त्री को सही मायने में बुरा तब लगता है जब एक औरत ही उसकी कदर न जाने…
पत्नी की बातें सुनकर मैं नि:शब्द रह गया..